क्या रोहित शर्मा ने 'ब्रोंको टेस्ट' में प्रभाव डाला? इन खिलाड़ियों ने भी किया टेस्ट पास

Key Takeaways
- ब्रोंको टेस्ट खिलाड़ियों की फिटनेस का एक महत्वपूर्ण मानक है।
- रोहित शर्मा ने इस टेस्ट को सफलतापूर्वक पास किया है।
- यह टेस्ट सहनशक्ति और स्टैमिना को चुनौती देता है।
- खिलाड़ियों के लिए यह अभ्यास आवश्यक है।
- टेस्ट में कोई रेस्ट इंटरवल नहीं होता।
नई दिल्ली, 1 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने खिलाड़ियों की फिटनेस के स्तर को बढ़ाने के लिए 'ब्रोंको टेस्ट' को राष्ट्रीय पुरुष टीम में शामिल होने की इच्छा रखने वाले खिलाड़ियों के लिए एक नया मानक स्थापित किया है। जानकारी के अनुसार, 38 वर्षीय रोहित शर्मा ने बीसीसीआई के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में आयोजित फिटनेस कैंप के दौरान ब्रोंको टेस्ट और यो-यो टेस्ट को सफलतापूर्वक पास किया है।
रोहित शर्मा की सहनशक्ति में काफी सुधार देखने को मिला है, जिसने कोचिंग स्टाफ को संतुष्ट किया है। इनके अलावा, शुभमन गिल, जसप्रीत बुमराह ने भी इस टेस्ट को पास किया है। इसके अलावा, मोहम्मद सिराज, वाशिंगटन सुंदर, शार्दुल ठाकुर और यशस्वी जायसवाल ने भी इसे सफलतापूर्वक पूरा किया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रसिद्ध कृष्णा ने भी ब्रोंको टेस्ट के दौरान सभी का ध्यान आकर्षित किया।
ब्रोंको टेस्ट तीव्रता और एथलीट की सहनशक्ति, स्टैमिना और रिकवरी की चुनौतियों के लिए जाना जाता है। भले ही क्रिकेट में यह टेस्ट नया हो, लेकिन इसे रग्बी में लंबे समय से फिटनेस मानक के रूप में उपयोग किया जा रहा है।
आज के समय में, क्रिकेट का शेड्यूल खिलाड़ियों को व्यस्त रखता है, जिसके लिए उन्हें एलीट फिटनेस की आवश्यकता होती है।
इसी को ध्यान में रखते हुए, ब्रोंको टेस्ट का निर्माण किया गया है। यह खिलाड़ियों की कार्डियोवैस्कुलर क्षमता और मानसिक क्षमता की गहरी परीक्षा लेता है, जो आधुनिक क्रिकेट की शारीरिक आवश्यकताओं को दर्शाता है।
ब्रोंको टेस्ट का सेटअप जितना सरल है, उतना ही यह शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण भी है। इस टेस्ट में चार कोन 0 मीटर, 20 मीटर, 40 मीटर और 60 मीटर के अंतराल पर रखे जाते हैं। प्रत्येक सेट में 20 मीटर के निशान तक दौड़ना और वापस आना, फिर 40 मीटर के निशान तक दौड़ना और वापस आना, और अंत में 60 मीटर के निशान तक दौड़ना और वापस आना शामिल है।
इस शटल पैटर्न में प्रत्येक सेट में कुल 240 मीटर की दौड़ होती है। खिलाड़ियों को इसके पांच सेट पूरे करने होते हैं, जिससे कुल दौड़ 1,200 मीटर की होती है। इसमें किसी भी प्रकार का रेस्ट इंटरवल नहीं होता।
खिलाड़ी का लक्ष्य इसे जितनी जल्दी हो सके पूरा करना होता है। इस टेस्ट के दौरान खिलाड़ी के कुल समय के आधार पर एथलीट के एरोबिक प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जाता है।
ब्रोंको टेस्ट खिलाड़ियों के लिए सिर्फ एक फिजिकल ड्रिल नहीं है, बल्कि यह इस बात का भी माप है कि खिलाड़ी उच्च तीव्रता वाले प्रयासों को कितनी देर तक सहन कर सकता है, खासकर जब इसमें बार-बार दिशा बदलना और तेजी से स्प्रिंट लगाना शामिल हो। चाहे बल्लेबाजी हो या क्षेत्ररक्षण, कुछ ऐसा ही क्रिकेट में भी देखा जाता है।