क्या साबरकांठा में सखी मंडल की महिलाएं ईको फ्रेंडली गणपति बना रहीं हैं?

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क्या साबरकांठा में सखी मंडल की महिलाएं ईको फ्रेंडली गणपति बना रहीं हैं?

सारांश

साबरकांठा के कुकड़िया गांव की महिलाएं सुन्दर और इको-फ्रेंडली मिट्टी की गणेश मूर्तियां बना रही हैं। यह पहल न केवल पर्यावरण की सुरक्षा करती है, बल्कि सखी मंडल की सदस्यों को आत्मनिर्भर भी बनाती है। जानें इस अनोखी मुहिम के बारे में।

Key Takeaways

  • महिलाएं आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं।
  • प्रकृति की सुरक्षा के लिए ईको-फ्रेंडली मूर्तियां बनाई जा रही हैं।
  • गणेश मूर्तियों का विसर्जन घर पर किया जा सकता है।
  • स्थानीय स्तर पर आर्थिक विकास हो रहा है।
  • महिला सशक्तिकरण योजना के तहत प्रशिक्षण दिया गया है।

साबरकांठा, 20 अगस्‍त (राष्ट्र प्रेस)। पूरे देश में गणेश उत्‍सव की तैयारियों का जोश देखने को मिल रहा है। इस बीच, साबरकांठा के इदर के कुकड़िया गांव में महिला समूह ने पर्यावरण-अनुकूल मिट्टी की गणेश मूर्तियों का निर्माण आरंभ किया है। यह मूर्तियां इको-फ्रेंडली होने के कारण पर्यावरण को किसी भी प्रकार से नुकसान नहीं पहुँचातीं।

सखी मंडल का यह प्रयास स्थानीय स्तर पर अत्यधिक लोकप्रिय हो रहा है। इससे सखी मंडल की सदस्‍यें आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत हो रही हैं।

सखी मंडल की सदस्‍य नयना बेन प्रजापति ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में बताया कि सखी मंडल की बहनों ने मिट्टी से गणेश मूर्ति बनाने की प्रक्रिया शुरू की है। इसका उद्देश्य प्रकृति की सुरक्षा और प्रदूषण से बचाव करना है। प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी मूर्तियां पानी में घुलती नहीं हैं, जिससे प्रकृति को बड़ा नुकसान होता है। इसी कारण मिट्टी की प्रतिमा बनाने का निर्णय लिया गया। हम सभी बहनें इको-फ्रेंडली गणपति बना रही हैं। हमारी बनाई मूर्तियों की ऊँचाई एक से तीन फुट तक होती है। इस प्रतिमा का विसर्जन घर पर भी किया जा सकता है, जिससे नदी या तालाब पर जाने की आवश्यकता नहीं होती।

सखी मंडल की सदस्‍य जागृति प्रजापति ने बताया कि पर्यावरण-अनुकूल गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन घर के आंगन में किया जा सकता है। जबकि पीओपी की मूर्तियों के विसर्जन के बाद भी पूरी तरह से विसर्जन नहीं होता है, जिससे मूर्तियां क्षतिग्रस्त अवस्था में दिखाई देती हैं और आस्था को ठेस पहुँचती है।

डीआरडीए की किंजल पटेल ने बताया कि कुकड़िया गांव की बहनों ने लगभग तीन साल पहले राज्य सरकार की महिला सशक्तिकरण योजना के तहत प्रशिक्षण प्राप्त किया था। शुरूआती दौर में लगभग 30 बहनों ने इस प्रशिक्षण को ग्रहण किया। वर्तमान में लगभग 10 बहनें भगवान गणेश की मूर्तियां बना रही हैं, जिनमें कुकड़िया गांव की सखी मंडल की महिलाएं एक फुट से लेकर तीन फुट तक की मूर्तियां बना रही हैं। साथ ही, वे जल, थल और पर्यावरण की रक्षा के लिए भी कार्य कर रही हैं। आज भी, कुकड़िया गांव में सखी मंडल द्वारा बनाई गई मूर्तियां आसपास के क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण साबित हो रही हैं। हालांकि, आने वाले समय में यह आवश्यक है कि पर्यावरण-अनुकूल गणेश अंतिम व्यक्ति तक पहुँचें।

Point of View

बल्कि वे पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति भी जागरूक हैं। यह पहल न केवल आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती है, बल्कि युवा पीढ़ी को भी सिखाती है कि वे अपने पर्यावरण की रक्षा कैसे कर सकते हैं।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

कुकड़िया गांव में महिलाएं किस प्रकार की गणेश मूर्तियां बना रही हैं?
कुकड़िया गांव की महिलाएं पर्यावरण-अनुकूल मिट्टी की गणेश मूर्तियां बना रही हैं।
इन मूर्तियों का विसर्जन कैसे किया जा सकता है?
इन मूर्तियों का विसर्जन घर के आंगन में किया जा सकता है।
क्या ये मूर्तियां पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं?
हाँ, ये मूर्तियां इको-फ्रेंडली हैं और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचातीं।
कितनी महिलाएं इस परियोजना में हिस्सा ले रही हैं?
वर्तमान में लगभग 10 महिलाएं इस परियोजना में सक्रिय हैं।
सखी मंडल का उद्देश्य क्या है?
सखी मंडल का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण की सुरक्षा करना है।