क्या है सावन विशेष: 'नागेंद्रहाराय, त्रिलोचनाय...' 'शिव पंचाक्षर' से भगवान शिव का स्वरूप?

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क्या है सावन विशेष: 'नागेंद्रहाराय, त्रिलोचनाय...' 'शिव पंचाक्षर' से भगवान शिव का स्वरूप?

सारांश

सावन का पावन महीना 11 जुलाई से आरंभ हो रहा है, जब भक्त भगवान शिव की भक्ति में लीन होंगे। इस दौरान 'शिव पंचाक्षर स्तोत्र' का पाठ उन्हें आत्मिक शांति और पुण्य प्रदान करेगा। आइए, इस अद्भुत स्तोत्र के माध्यम से भगवान शिव के विराट स्वरूप का अन्वेषण करें।

Key Takeaways

  • सावन का महीना भगवान शिव के प्रति भक्ति का समय है।
  • 'शिव पंचाक्षर स्तोत्र' का पाठ असीम पुण्य देता है।
  • भगवान शिव का विराट स्वरूप इस स्तोत्र में वर्णित है।
  • यह पाठ आध्यात्मिक शांति का स्रोत है।
  • शिव के भक्त सावन में इस स्तोत्र को पढ़कर कृपा प्राप्त करते हैं।

नई दिल्ली, 6 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। सावन का पवित्र महीना 11 जुलाई से आरंभ हो रहा है। यह समय भगवान शिव की भक्ति और साधना के लिए अत्यधिक विशेष माना जाता है। इस दौरान 'शिव पंचाक्षर स्तोत्र' का पाठ भक्तों के लिए अनंत पुण्य और आध्यात्मिक शांति का स्रोत बनता है। 'नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय...' जैसे शब्दों से सजा यह स्तोत्र भगवान शिव के विराट स्वरूप को उजागर करता है, जो उनकी महिमा, शक्ति और करुणा को दर्शाता है। 'नम: शिवाय' पंचाक्षर मंत्र में विश्व के नाथ का स्वरुप समाहित है।

'शिव पंचाक्षर स्तोत्र' पांच शब्दांशों 'न, म, शि, व, य' के माध्यम से भगवान शिव के गुणों का वर्णन करता है। प्रत्येक शब्द उनके एक विशिष्ट रूप को प्रकट करता है। 'नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय' में शिव को सर्पों के राजा को हार के रूप में धारण करने वाले और त्रिनेत्रधारी महेश्वर बताया गया है। उनके शरीर पर भस्म और दिगंबर स्वरूप उनकी शाश्वत पवित्रता को दर्शाता है। 'मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय' में उनकी पूजा मंदाकिनी नदी के जल और चंदन से होने का वर्णन है, जो उनकी भक्तों के प्रति करुणा को उजागर करता है।

'शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय' में शिव को माता गौरी के चेहरे को कमल की तरह खिलाने वाले और दक्ष यज्ञ के संहारक के रूप में चित्रित किया गया है। उनके नीले कंठ और वृषभ ध्वज दैवीय स्वरूप की महिमा को और बढ़ाते हैं। 'वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतम' में वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम जैसे महर्षियों द्वारा पूजित शिव को ब्रह्मांड का मुकुट बताया गया है, जिनकी चंद्र, सूर्य और अग्नि के समान तीन आंखें हैं। 'यक्षस्वरूपाय जटाधराय' में शिव को त्रिशूलधारी, जटाधारी और दिगंबर दिव्य देवता के रूप में चित्रित किया गया है।

इस स्तोत्र का पाठ सावन में विशेष फलदायी माना जाता है। यह भक्तों को शिव के स्वरूप से जोड़ता है और मन को शांति प्रदान करता है। स्तोत्र के अंत में कहा गया है, "जो शिव के समीप इस पंचाक्षर का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है और उनके साथ आनंदित होता है।" सावन में इस स्तोत्र का पाठ भक्तों को भोलेनाथ की कृपा और आशीर्वाद दिलाता है।

संस्कृत में पंचाक्षर मंत्र इस प्रकार है:- नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै 'न' काराय नमः शिवाय।

यानी जिनके पास सांपों का राजा उनकी माला के रूप में है और जिनकी तीन आंखें हैं, जिनके शरीर पर पवित्र राख मली हुई है। वह शाश्वत हैं और चारों दिशाओं को अपने वस्त्रों के रूप में धारण करते हैं, उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "न" द्वारा दिखाया गया है।

मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय। मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय। तस्मै 'म' काराय नमः शिवाय। जिनकी पूजा मंदाकिनी नदी के जल से होती है और चंदन का लेप लगाया जाता है, जो नंदी और भूत-पिशाचों के स्वामी हैं, मंदार और कई अन्य फूलों के साथ उनकी पूजा की जाती है। उस शिव को प्रणाम, जिन्हें शब्दांश "म" द्वारा दिखाया गया है।

शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द-सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय। तस्मै 'शि' काराय नमः शिवाय। जो शुभ हैं और जो नए उगते सूरज की तरह हैं, जिनसे गौरी का चेहरा खिल उठता है, वह दक्ष के यज्ञ के संहारक हैं, जिनका कंठ नीला है और जिनके प्रतीक के रूप में बैल है, उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "शि" द्वारा दिखाया गया है।

वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य- मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै 'व' काराय नमः शिवाय। वे जो श्रेष्ठ और सबसे सम्मानित संतों - वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम और देवताओं द्वारा भी पूजित हैं और जो ब्रह्मांड का मुकुट हैं, जिनकी चंद्रमा, सूर्य और अग्नि तीन आंखें हैं, उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "वा" द्वारा दिखाया गया है।

यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै 'य' काराय नमः शिवाय। जो यज्ञ का अवतार हैं, जिनकी जटाएं हैं, जिनके हाथ में त्रिशूल है, जो शाश्वत हैं, जो दिव्य हैं, जो चमकीले हैं, और चारों दिशाएं जिनका वस्त्र हैं, उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "य" द्वारा दिखाया गया है।

स्त्रोत के अंत में कहा गया है, पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते, जिसका अर्थ है, जो शिव के समीप इस पंचाक्षर का पाठ करते हैं, वे शिव के निवास को प्राप्त करेंगे और आनंद लेंगे।

Point of View

हर भक्त की भक्ति का केंद्र भगवान शिव होंगे। 'शिव पंचाक्षर स्तोत्र' का पाठ न केवल आध्यात्मिक शांति का स्रोत है, बल्कि यह भक्तों को शिव के विराट स्वरूप से जोड़ता है। यह विशेष अवसर न केवल धार्मिक आस्था को बढ़ाता है, बल्कि हमारे समाज में एकता और एकजुटता की भावना को भी प्रोत्साहित करता है।
NationPress
21/07/2025

Frequently Asked Questions

सावन में शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ क्यों महत्वपूर्ण है?
सावन में शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ विशेष फलदायी माना जाता है। यह भक्तों को शिव के स्वरूप से जोड़ता है और उन्हें आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
क्या 'नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय' का अर्थ है?
'नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय' का अर्थ है, जो सर्पों के राजा को हार के रूप में धारण करने वाले और त्रिनेत्रधारी हैं।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र में कितने शब्दांश हैं?
शिव पंचाक्षर स्तोत्र में पांच शब्दांश हैं: 'न, म, शि, व, य', जो भगवान शिव के गुणों का वर्णन करते हैं।
इस स्तोत्र का पाठ किस प्रकार किया जाता है?
इस स्तोत्र का पाठ श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाना चाहिए, विशेष रूप से सावन के महीने में।
क्या पाठ करने से कोई विशेष लाभ होता है?
जी हाँ, 'शिव पंचाक्षर' का पाठ करने से भक्त शिवलोक की प्राप्ति करते हैं और शिव के साथ आनंदित होते हैं।