क्या उत्तराखंड के इन ‘पांच’ मंदिरों का रहस्य भगवान शिव के अंगों से जुड़ा है?

सारांश
Key Takeaways
- पंच केदार मंदिर भगवान शिव के अंगों का प्रतीक हैं।
- महाभारत की पांडवों की कथा से जुड़े हैं।
- प्राकृतिक सुंदरता से भरे ये मंदिर धार्मिक पर्यटन का केंद्र हैं।
- महाशिवरात्रि और सावन में विशेष भीड़ होती है।
- हर मंदिर का अपना विशिष्ट महत्व है।
देहरादून, 23 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। सावन का पावन महीना चल रहा है। भगवान शिव के मंदिरों में भक्तों की लंबी कतारें हैं और ‘हर हर महादेव’ की गूंज हर ओर सुनाई दे रही है। देश में कई ऐसे मंदिर हैं जो न केवल भक्तों के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि रहस्यों से भरे भी हैं। इनमें एक प्रमुख नाम है उत्तराखंड का ‘पंच केदार’ मंदिर। यहाँ के पंच केदार मंदिर में केदारनाथ, मद्महेश्वरनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वरनाथ का आध्यात्मिक महत्व है, साथ ही यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और पौराणिक कथाएँ भी अद्भुत हैं।
यह मंदिर भगवान शिव के विभिन्न अंगों से जुड़े हुए हैं, जो महाभारत की पांडवों की कथा से संबंधित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के युद्ध के बाद प्रायश्चित के लिए पांडव भगवान शिव का आशीर्वाद लेने हिमालय की ओर गए थे। किंतु भगवान शिव, जो एक बैल के रूप में छिपे हुए थे, पांडवों से बचना चाहते थे। भीम ने उन्हें पहचान लिया, और जब शिव धरती में समाने लगे, तब उनके शरीर के विभिन्न हिस्से पांच स्थानों पर प्रकट हुए। ये स्थान आज पंच केदार के रूप में पूजे जाते हैं। केदारनाथ ‘कूबड़’, मद्महेश्वर ‘नाभि’, तुंगनाथ ‘भुजाएं’, रुद्रनाथ ‘चेहरा’ और कल्पेश्वरनाथ ‘जटा’ के रूप में जाने जाते हैं।
उत्तराखंड पर्यटन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, पंच केदार यात्रा केवल आध्यात्मिक अनुभव नहीं है, बल्कि यह हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता को करीब से देखने का एक अद्वितीय अवसर भी है। यहां वर्ष भर भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन महाशिवरात्रि और सावन के दौरान विशेष रूप से भीड़ देखने को मिलती है।
केदारनाथ मंदिर, जो शिव के कूबड़ का प्रतीक है, रुद्रप्रयाग जिले में 3,584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह बर्फीली चोटियों और घने जंगलों से घिरा हुआ है। गौरीकुंड से शुरू होने वाला 19 किलोमीटर का ट्रैक तीर्थयात्रियों को प्रकृति और आध्यात्म का अनूठा संगम दिखाता है।
तुंगनाथ मंदिर विश्व का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है, जो 3,680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ शिव की भुजाओं की पूजा होती है।
रुद्रनाथ का मंदिर 2,286 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहाँ शिव को नीलकंठ महादेव के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर अल्पाइन घास के मैदानों और रोडोडेंड्रोन जंगलों से घिरा हुआ है। गोपेश्वर से शुरू होने वाला 20 किलोमीटर का ट्रैक सूर्य कुंड और चंद्र कुंड जैसे पवित्र जलाशयों से भक्तों को आकर्षित करता है।
इसके पश्चात मद्महेश्वरनाथ मंदिर का स्थान है। 3,289 मीटर की ऊंचाई पर बसा यह मंदिर शिव की नाभि का प्रतीक है और यहाँ शांति और भक्ति का अद्भुत संगम है।
कल्पेश्वरनाथ मंदिर को जटाओं का धाम भी कहा जाता है। यह मंदिर साल भर खुला रहता है और पंच केदार मंदिरों का अंतिम पड़ाव है।