क्या शेखर कपूर ने बर्फीली पहाड़ियों में अपने गुरु की खोज में तीन दिन बिताए?

सारांश
Key Takeaways
- गुरु की खोज जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- बर्फीली पहाड़ियों में बिताया गया समय आत्म-ज्ञान की ओर ले जाता है।
- सन्नाटा और ध्यान से आप अपने भीतर की आवाज़ सुन सकते हैं।
- समय का महत्व समझना जीवन के अर्थ को खोजने में मदद करता है।
- आत्मा की खोज में अपने गुरु का महत्व है।
मुंबई, 16 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने बुधवार को इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर साझा करते हुए पहाड़ों की यात्रा से जुड़ा एक विशेष अनुभव साझा किया। उन्होंने अपनी काव्यात्मक शैली में बताया कि कैसे उन्होंने अपने गुरु से मिला और आत्म-ज्ञान का गहरा अनुभव किया। शेखर कपूर की तस्वीर बर्फीली पहाड़ियों के बीच में बैठे हुए है, जिसमें वे शांत और चिंतनशील नजर आ रहे हैं। तस्वीर के साथ उन्होंने एक विस्तृत नोट लिखा है, जिसमें बताया कि वे तीन दिन तक वहीं बैठे रहे।
उन्होंने नोट में लिखा, ''मैं वहां तीन दिन तक बैठा रहा। मैं इतनी ऊंचाई पर चढ़ चुका था और थक गया था... लेकिन मेरे गुरु मेरी तरफ देख भी नहीं रहे थे। मैं बस उनकी सांसें सुन रहा था... और शायद प्रार्थना की आवाजें भी... हो सकता है कि वह आवाजें पहाड़ों से टकराती हवाओं की हों। अंत में, मैंने हिम्मत जुटाकर उनसे बात करने की कोशिश की।''
शेखर कपूर ने आगे कहा, ''मैंने अपने गुरु की तलाश कई वर्षों तक की, सच कहें तो यह मेरी पूरी जिंदगी रही। एक पल ऐसा लगता था कि मैंने उनकी आवाज सुनी है, और अगले पल लगता कि शायद यह केवल मेरी कल्पना थी, क्योंकि चारों ओर बस हवा की आवाजें थीं। मेरे आंसू चेहरे पर गिर रहे थे। मैंने प्यार किया है, प्यार पाया है, धोखा दिया है और धोखा भी खाया है। मैंने कई सफलताएं देखी हैं और गहरी निराशा भी महसूस की है। कभी-कभी मैंने अपने अस्तित्व का अनुभव किया है, और कभी-कभी ऐसा लगा है कि मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। फिर भी, मुझे पता है कि जो कुछ भी मैंने किया या नहीं किया, वह सब केवल एक सांस का काम था, एक कदम उस खोज की ओर, जिसमें मैं अपने गुरु को ढूंढ रहा था।''
उन्होंने लिखा, ''वहां सन्नाटा था, फिर एक आवाज आई। मुझे समझ नहीं आया कि वह आवाज गुरु की थी या तेज हवाओं की। लेकिन मैंने हिम्मत करके सवाल पूछा, 'गुरुजी, मेरे जीवन का अस्तित्व क्या है? मैं यहां क्यों हूं?' लेकिन गुरु ने मुड़कर जवाब नहीं दिया। कुछ देर बाद एक आवाज आई, 'जब तुम समय का असली महत्व समझ लोगे, तब तुम अपने जीवन का मतलब भी समझ जाओगे। तुमने मुझे अपनी कहानी सुनाई, जो तुम अपनी जिंदगी समझते हो। लेकिन वही कहानी तुम्हारे समय को बनाने में मदद करती।'
शेखर कपूर ने नोट के अंत में लिखा, ''मैंने गुरुजी से कहा, 'मैं समय कैसे बना सकता हूं?' कृपया समझाइए। इस पर गुरुजी ने कहा, 'वर्तमान, भूत या भविष्य कुछ भी नहीं है, केवल अस्तित्व है, शुद्ध, समय रहित और सरल। जब तुम इसे समझ लोगे, तभी तुम अपने अस्तित्व को समझ पाओगे।' इस बात की सादगी और गहराई से मैं अवाक रह गया। फिर मैंने कहा, 'गुरुजी, क्या आप मुड़कर अपना चेहरा दिखा सकते हैं?' गुरुजी ने कहा, 'क्या? तुम अपनी कहानी में और जोड़ना चाहते हो? फिर से समय बढ़ाना चाहते हो? क्या तुम सच में चाहते हो?' फिर गुरुजी धीरे-धीरे मुड़े और जो सामने थे, उनमें मैंने अपनी आत्मा को महसूस किया।''