क्या सुप्रीम कोर्ट में बिहार एसआईआर मामले की सुनवाई में 3.66 लाख मतदाताओं के नाम हटाने पर उठेंगे सवाल?

सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के एसआईआर मामले में सुनवाई की।
- 3.66 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने पर सवाल उठाए गए हैं।
- चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न उठाए गए।
- कोर्ट ने आयोग को उचित सूचना देने का निर्देश दिया।
- सुनवाई का अगला आदेश जल्द ही जारी किया जाएगा।
नई दिल्ली, 7 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट में बिहार के एसआईआर मामले की सुनवाई सोमवार को प्रारंभ हुई। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच इस मामले पर गौर कर रही है। याचिकाकर्ता एडीआर के वकील प्रशांत भूषण ने न्यायालय को बताया कि फाइनल वोटर लिस्ट के प्रकाशन के बाद उन्हें इस मामले की गंभीरता का अहसास हुआ।
प्रशांत भूषण ने कहा कि एसआईआर के संबंध में 2003 और 2016 में न्यायालय द्वारा जारी निर्देश मौजूद हैं, जिनमें फर्जी मतदाताओं को हटाने के नियम स्पष्ट रूप से बताये गए हैं। लेकिन आयोग ने समस्याओं को हल करने के बजाय स्थिति को और भी जटिल बना दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि पारदर्शिता का पूर्ण रूप से अभाव है। 65 लाख से अधिक मतदाताओं को हटाने की जानकारी न्यायालय के आदेश के पश्चात ही उपलब्ध कराई गई। आयोग ने आवश्यक दिशा-निर्देशों के अनुसार जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया।
इसी बीच, वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि जिन 3.66 लाख लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं, उनमें से किसी को भी इस विषय में कोई नोटिस नहीं दिया गया। न ही किसी को हटाने का कारण बताया गया और न ही उनकी बात सुनने का अवसर दिया गया। उन्होंने कहा कि भले ही अपील का प्रावधान हो, लेकिन जानकारी की कमी के कारण अपील करना संभव नहीं है।
चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने इस आरोप का खंडन करते हुए कहा कि हटाए गए सभी मतदाताओं को सूचित किया गया था। उन्होंने बताया कि ड्राफ्ट सूची और फाइनल सूची दोनों की प्रतियां सभी राजनीतिक दलों को भी उपलब्ध कराई गई हैं।
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "यदि आप हमें उन 3.66 लाख मतदाताओं की सूची दें, जिन्हें हटाए जाने के सम्बन्ध में सूचना नहीं दी गई है, तो हम उन्हें सूचित करने का निर्देश देंगे। हर व्यक्ति को अपील का अधिकार मिलना चाहिए।"
न्यायालय ने चुनाव आयोग के वकील से पूछा कि उन्हें कितनी शिकायतें या आपत्तियां प्राप्त हुई हैं और उन पर क्या कार्रवाई की गई है। राकेश द्विवेदी ने उत्तर दिया कि ड्राफ्ट सूची में नाम होने और फाइनल सूची से नाम कटने की कोई शिकायत नहीं आई है। उन्होंने कहा कि आपत्तियों, दावों और नए वोटरों के नाम शामिल करने के लिए समय-समय पर कार्रवाई की जा रही है।
सुनवाई में यह मुद्दा उठाया गया कि मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया में पारदर्शिता का गंभीर अभाव है और लोगों को उनके अधिकारों से अवगत नहीं कराया गया। न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए कि वह सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराए और हटाए गए मतदाताओं को उचित नोटिस प्रदान करे।
सुनवाई जारी है और न्यायालय शीघ्र ही इस मामले में अगला आदेश दे सकता है।