क्या स्वतंत्रता संग्राम के अनमोल रत्न देशबंधु चित्तरंजन दास का सफर स्वराज तक अद्वितीय था?

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क्या स्वतंत्रता संग्राम के अनमोल रत्न देशबंधु चित्तरंजन दास का सफर स्वराज तक अद्वितीय था?

सारांश

देशबंधु चित्तरंजन दास का जीवन स्वतंत्रता संग्राम की गाथा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनकी वकालत से लेकर राजनीति तक का सफर प्रेरणादायक था। जानें कैसे उन्होंने अपने अद्वितीय प्रयासों से भारत के लोगों को स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया।

Key Takeaways

  • चित्तरंजन दास का जीवन स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक है।
  • उन्होंने स्वराज पार्टी की स्थापना की।
  • उनका योगदान भारतीय इतिहास में अमूल्य है।
  • उनकी वकालत ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
  • उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास किए।

नई दिल्ली, 15 जून (राष्ट्र प्रेस)। जब ब्रिटिश शासन भारत पर काबिज था और भारतीयों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा था, तब देशबंधु चित्तरंजन दास आशा की किरण बनकर उभरे। उन्होंने अंग्रेज जज के सामने अपने विचारों को दबने नहीं दिया और तर्क ऐसे प्रस्तुत किए कि परिणाम उनके पक्ष में आया। अलीपुर बम कांड (1908) और ढाका षड्यंत्र केस (1910-11) जैसे मामलों में उनकी विशेषज्ञता का लोहा ब्रिटिश अधिकारियों ने स्वीकार किया।

५ नवंबर १८७० को कोलकाता के एक सम्पन्न बंगाली परिवार में जन्मे चित्तरंजन दास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अद्वितीय प्रतीक थे। उनके पिता भूबन मोहन दास एक प्रतिष्ठित वकील और पत्रकार थे, जबकि उनके चाचा दुर्गा मोहन दास समाज सुधारक थे। इस प्रगतिशील परिवार ने चित्तरंजन के जीवन को एक दिशा दी। स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान और स्वराज पार्टी की स्थापना उन्हें इतिहास में अमर बना देती है।

चित्तरंजन ने प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और फिर इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई की। भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में असफल होने के बावजूद, १८९४ में उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। १९०८ में अलीपुर बम कांड में श्री अरबिंदो घोष का बचाव कर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। उनकी कुशलता और देशभक्ति ने उन्हें युवाओं का आदर्श बना दिया। ढाका षड्यंत्र केस में भी उनका प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा।

१९१७ में, चित्तरंजन ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। १९१७ के भवानीपुर प्रांतीय सम्मेलन में उनके ओजस्वी भाषण ने सबका दिल जीत लिया। १९२० में, उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन में पूरे जोश के साथ भाग लिया। उन्होंने अपनी यूरोपीय परिधान को जलाकर खादी को अपनाया, जो स्वदेशी का प्रतीक बना। १९२१ में, अपनी पत्नी बसंती देवी और बेटे के साथ गिरफ्तारी ने उनके समर्पण को और साबित किया।

१९२२ में, चौरी-चौरा की घटना के बाद असहयोग आंदोलन के स्थगित होने पर चित्तरंजन ने मोतीलाल नेहरू के साथ मिलकर १९२३ में स्वराज पार्टी की स्थापना की। उनका लक्ष्य विधान परिषदों में प्रवेश कर ब्रिटिश शासन को भीतर से चुनौती देना था। स्वराज पार्टी ने १९२४ में कोलकाता नगर निगम का चुनाव जीता और चित्तरंजन पहले निर्वाचित मेयर बने। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए बंगाल पैक्ट का प्रस्ताव रखा, जो सामुदायिक सद्भाव का प्रतीक था, हालांकि इसे कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया।

चित्तरंजन एक कुशल वकील, राजनेता, कवि और लेखक भी थे। उनकी काव्य रचनाएं ‘मालंचा’ और ‘सागर संगीत’ राष्ट्रीय भावनाओं से भरी हुई हैं।

१९२५ में अधिक कार्य के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। दार्जिलिंग में इलाज के दौरान १६ जून १९२५ को उनका निधन हो गया। गांधीजी ने उनकी अंतिम यात्रा के दौरान कहा, “देशबंधु के दिल में हिंदू और मुस्लिम के बीच कोई भेद नहीं था।” उनकी स्मृति में कोलकाता में चित्तरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान और चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स जैसे संस्थान आज भी उनकी विरासत को जीवित रखते हैं।

Point of View

हम सभी को चित्तरंजन दास जैसे महान नेताओं के योगदान को समझना चाहिए। उनका संघर्ष न केवल उस समय की जरूरत थी, बल्कि वर्तमान पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है। हमें उनकी विचारधारा और कार्यों को आगे बढ़ाना चाहिए।
NationPress
19/06/2025

Frequently Asked Questions

देशबंधु चित्तरंजन दास का जन्म कब हुआ?
उनका जन्म ५ नवंबर १८७० को कोलकाता में हुआ था।
उन्होंने किस केस में प्रसिद्धि पाई?
उन्होंने अलीपुर बम कांड और ढाका षड्यंत्र केस में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।
स्वराज पार्टी की स्थापना कब हुई?
स्वराज पार्टी की स्थापना १९२३ में की गई।
उनका निधन कब हुआ?
उनका निधन १६ जून १९२५ को हुआ।
चित्तरंजन दास का योगदान क्या था?
उनका योगदान स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण रहा और उन्होंने कई सामाजिक सुधारों में भी भाग लिया।