क्या त्रिपुर सुंदरी मंदिर वास्तव में आध्यात्मिक पर्यटन का प्रतीक है?

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क्या त्रिपुर सुंदरी मंदिर वास्तव में आध्यात्मिक पर्यटन का प्रतीक है?

सारांश

क्या आप जानते हैं कि त्रिपुर सुंदरी मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह आध्यात्मिक पर्यटन का एक महत्वपूर्ण प्रतीक भी है? पीएम मोदी के विजन के तहत इसका पुनर्विकास त्रिपुरा के विकास में एक नया अध्याय जोड़ रहा है।

Key Takeaways

  • त्रिपुर सुंदरी मंदिर आध्यात्मिक पर्यटन का प्रतीक है।
  • मंदिर का पुनर्विकास क्षेत्रीय विकास में मदद करेगा।
  • यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है।
  • मंदिर परिसर में नई सुविधाएं जोड़ी जा रही हैं।
  • भारतीय सरकार ने इसे विकास परियोजना में शामिल किया है।

नई दिल्ली, 22 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर पर्यटन को विरासत और विकास के बीच एक पुल के रूप में देखते हैं, और उनका मानना है कि भारत के विकास में आध्यात्मिक पर्यटन का विशेष महत्व है। उनके इस दृष्टिकोण के तहत त्रिपुर सुंदरी मंदिर का पुनर्विकास पूर्वोत्तर के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, जिसने त्रिपुरा को भारत के आध्यात्मिक पर्यटन मानचित्र पर मजबूती से स्थापित कर दिया है।

माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर, त्रिपुरा के गोमती जिले के उदयपुर कस्बे में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक है। स्थानीय लोगों के बीच इसे त्रिपुरेश्वरी मंदिर या माताबाड़ी के नाम से भी जाना जाता है।

किंवदंती के अनुसार, यह मंदिर वह स्थान है, जहां देवी सती का दाहिना पैर गिरा था। मां त्रिपुर सुंदरी, जिन्हें षोडशी और ललिता भी कहा जाता है, को सर्वोच्च देवी और तीनों लोकों की सबसे सुंदर के रूप में पूजा जाता है।

इस मंदिर का निर्माण महाराजा धन्य माणिक्य ने वर्ष 1501 ई. में कराया था। यह माना जाता है कि 15वीं शताब्दी के अंत में त्रिपुरा के राजा को एक रात देवी त्रिपुरेश्वरी ने दर्शन दिए, और उन्हें अपनी पूजा आरंभ करने का निर्देश दिया।

इसके बाद बार-बार स्वप्न आने पर महाराजा ने मंदिर में त्रिपुर सुंदरी की मूर्ति स्थापित की। यह ऐतिहासिक मंदिर एक अनूठी आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है, जो हिंदू धर्म के वैष्णव और शाक्त संप्रदायों को जोड़ता है।

यहां भगवान विष्णु की पूजा 'शालग्राम शिला' के रूप में की जाती है। काली मंदिर में देवी शक्ति के साथ विष्णु की पूजा का यह उदाहरण न केवल दुर्लभ है, बल्कि इस मंदिर की एक अनूठी विशेषता भी है। यह शिव और शक्ति का मिलन स्थल भी है।

यहां देवी शक्ति की पूजा मां त्रिपुरसुंदरी के रूप में की जाती है और उनके साथ स्थित भैरव को त्रिपुरेश कहा जाता है। मंदिर का गर्भगृह चौकोर आकार का है और इसे विशिष्ट बंगाली एक-रत्न शैली में डिजाइन किया गया है।

मूर्ति के पैरों के नीचे एक श्री यंत्र उत्कीर्ण है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड व पुरुष और स्त्री ऊर्जाओं के मिलन का प्रतीक माना जाता है।

इस मंदिर में हर साल लाखों भक्त दीपावली मेले के लिए एकत्रित होते हैं। यह मेला त्रिपुरा के बहु-सांस्कृतिक ताने-बाने का चित्रण करता है।

हाल ही में, मंदिर परिसर के जीर्णोद्धार के लिए एक प्रमुख परियोजना शुरू की गई है, जिसमें नए रास्ते, पुनर्निर्मित प्रवेश द्वार, ध्यान कक्ष, अतिथि आवास और पेयजल जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

यह पुनर्विकास केवल एक मंदिर के बारे में नहीं है, बल्कि उदयपुर को एक धार्मिक-पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए है। इससे लाखों अतिरिक्त पर्यटकों के आने की उम्मीद है, जिससे जिले की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।

भारत सरकार ने 2021 में 'माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर परिसर के विकास' परियोजना को मंजूरी दी है, जिसका कुल लागत 54.04 करोड़ रुपए है।

वर्तमान में माताबाड़ी में हर दिन लगभग 3,000 से 3,500 तीर्थयात्री आते हैं, और परियोजना पूरी होने के बाद, यह संख्या दोगुनी होकर 5,000-7,000 तक पहुंचने की उम्मीद है।

Point of View

बल्कि यह क्षेत्रीय विकास और आर्थिक समृद्धि का भी प्रतीक है। यह भारत के आध्यात्मिक पर्यटन मानचित्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
NationPress
22/09/2025

Frequently Asked Questions

त्रिपुर सुंदरी मंदिर कहाँ स्थित है?
त्रिपुर सुंदरी मंदिर त्रिपुरा के गोमती जिले के उदयपुर कस्बे में स्थित है।
मंदिर का निर्माण कब हुआ था?
मंदिर का निर्माण महाराजा धन्य माणिक्य ने वर्ष 1501 ई. में कराया था।
इस मंदिर की विशेषता क्या है?
यहां देवी शक्ति की पूजा मां त्रिपुरसुंदरी के रूप में की जाती है और भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है।
मंदिर में हर साल कितने भक्त आते हैं?
हर साल करीब 12-15 लाख लोग इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने आते हैं।
सरकार ने मंदिर के विकास के लिए क्या कदम उठाए हैं?
भारत सरकार ने 2021 में 'माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर परिसर के विकास' परियोजना को मंजूरी दी है।