क्या यूके ने ग्लोबल हेल्थ फंड में 15 फीसदी कटौती कर अफ्रीकी देशों को नुकसान पहुंचाया?

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क्या यूके ने ग्लोबल हेल्थ फंड में 15 फीसदी कटौती कर अफ्रीकी देशों को नुकसान पहुंचाया?

सारांश

यूके द्वारा ग्लोबल हेल्थ फंड में 15 फीसदी की कटौती ने वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों को चिंतित कर दिया है, क्योंकि इसका असर अफ्रीकी देशों पर पड़ेगा। ये देश पहले से ही स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे हैं। क्या यह निर्णय वैश्विक स्वास्थ्य प्रयासों को कमजोर करेगा?

Key Takeaways

  • यूके ने ग्लोबल हेल्थ फंड में 15 फीसदी कटौती की है।
  • इससे अफ्रीकी देशों में स्वास्थ्य संकट बढ़ सकता है।
  • आर्थिक परेशानियों के कारण यह निर्णय लिया गया।
  • स्वास्थ्य संगठनों ने चिंता व्यक्त की है।
  • एचआईवी, टीबी और मलेरिया की रोकथाम पर प्रभाव पड़ेगा।

नई दिल्ली, 15 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। यूके द्वारा ग्लोबल हेल्थ फंड में 15 फीसदी की कटौती का निर्णय कई प्रमुख स्वास्थ्य संगठनों के लिए चिंता का विषय बन गया है। ग्लोबल फंड, यूएनएड्स, डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन), एमएसएफ और मलेरिया नो मोर यूके ने स्पष्ट किया है कि इस निर्णय का सबसे अधिक प्रभाव अफ्रीकी देशों पर पड़ेगा, जहाँ पहले से ही सीमित संसाधनों के साथ बड़ी जनसंख्या एचआईवी, टीबी और मलेरिया जैसी बीमारियों से प्रभावित है।

यूके पहले ग्लोबल फंड में लगभग 1 अरब पाउंड स्टर्लिंग का योगदान करता था, लेकिन अब यह घटकर 850 मिलियन पाउंड स्टर्लिंग रह गया है। ग्लोबल फंड ने कहा कि यह कटौती अफ्रीका के लिए “सीधा झटका” है, क्योंकि इन बीमारियों से लड़ने के लिए सबसे अधिक निर्भरता इसी फंड पर है। यूएनएड्स ने चेतावनी दी है कि इससे कई देशों में एचआईवी रोकथाम कार्यक्रम धीमे पड़ जाएंगे और कई लोग समय पर दवा न मिलने के कारण खतरे में आ सकते हैं। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि अफ्रीका, जहाँ स्वास्थ्य ढांचा पहले से ही कमजोर है, वहाँ यह कटौती “जिंदगियों की कीमत” पर पड़ेगी।

अक्टूबर में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, ग्लोबाल फंड में 20 फीसदी की कटौती से 2040 तक अकेले मलेरिया से 3,30,000 अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं। यह कोष मलेरिया के लिए 59 फीसदी अंतर्राष्ट्रीय फंड प्रदान करता है।

एमएसएफ, जो दुनिया के सबसे कठिन इलाकों में चिकित्सा सेवाएं प्रदान करता है, ने कहा कि अब देशों को “असंभव फैसले” लेने होंगे—किसे मलेरिया की दवा मिलेगी और किसे इंतजार करना पड़ेगा, किस गांव में एचआईवी टेस्ट उपलब्ध होंगे और कहाँ रोक दिए जाएंगे। मलेरिया नो मोर यूके ने बताया कि कम फंड का सीधा असर मच्छरदानियों की सप्लाई, दवाइयों के वितरण और जांच अभियानों पर पड़ेगा, जिससे संक्रमण बढ़ने की संभावना है।

यह कटौती उस समय हुई है जब अफ्रीका के कई देशों में दवाइयों की कीमतें बढ़ रही हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण मलेरिया का खतरा बढ़ रहा है और एचआईवी तथा टीबी की रोकथाम के लिए लगातार निवेश की आवश्यकता है।

ब्रिटिश सरकार का कहना है कि आर्थिक परिस्थितियों और बजट दबाव के कारण यह निर्णय लिया गया है, लेकिन इससे मिलने वाली सहायता फिर भी “जीवन बचाएगी।”

हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य समुदाय चिंतित है कि जब एक बड़ा दाता फंड में कटौती करता है, तो इसका प्रभाव केवल वित्तीय पहलुओं तक सीमित नहीं होता—यह वैश्विक बीमारी नियंत्रण की पूरी लड़ाई को कमजोर कर देता है। अफ्रीका में कार्यरत संगठनों का मानना है कि यह कदम उन देशों के लिए बड़ा झटका है, जहाँ स्वास्थ्य फंड किसी जीवनरेखा से कम नहीं है।

Point of View

मेरा मानना है कि यूके का यह निर्णय न केवल अफ्रीकी देशों के लिए, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य प्रयासों के लिए भी गंभीर खतरा है। ऐसे समय में जब हम सभी को मिलकर स्वास्थ्य संकटों का सामना करना चाहिए, ऐसे फैसले हमारी सामूहिक जिम्मेदारी को कमजोर करते हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि स्वास्थ्य सहायता निरंतर बनी रहे।
NationPress
15/11/2025

Frequently Asked Questions

यूके ने ग्लोबल हेल्थ फंड में कितनी कटौती की है?
यूके ने ग्लोबल हेल्थ फंड में 15 फीसदी की कटौती की है।
इस कटौती का अफ्रीकी देशों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
यह कटौती अफ्रीकी देशों में एचआईवी, टीबी और मलेरिया जैसी बीमारियों की रोकथाम में बाधाएं उत्पन्न कर सकती है।
ग्लोबल हेल्थ फंड का मुख्य उद्देश्य क्या है?
ग्लोबल हेल्थ फंड का उद्देश्य एचआईवी, टीबी और मलेरिया जैसी बीमारियों के खिलाफ लड़ाई के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
क्या अन्य देशों ने भी इस पर चिंता व्यक्त की है?
हाँ, कई अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन इस कटौती को लेकर चिंतित हैं।
यूके सरकार का इसे लेकर क्या कहना है?
यूके सरकार का कहना है कि आर्थिक परिस्थितियों के कारण यह फैसला लिया गया है, लेकिन इससे मिलने वाली मदद जीवन बचाने में सहायक होगी।
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