क्या भारत की सरकारी तेल कंपनियों ने अमेरिका से 2.2 एमटीपीए एलपीजी आयात करने के लिए ऐतिहासिक डील की है?
सारांश
Key Takeaways
- भारत ने अमेरिका से 2.2 एमटीपीए एलपीजी आयात करने के लिए अनुबंध किया है।
- यह निर्णय किफायती गैस उपलब्धता के लिए महत्वपूर्ण है।
- समझौता भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा।
- प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में यह कदम उठाया गया है।
- गैस की कीमतों में स्थिरता लाने के लिए सरकार प्रयासरत है।
नई दिल्ली, 17 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत की सरकारी तेल कंपनियों ने अमेरिका से 2.2 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) एलपीजी आयात करने के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। यह जानकारी केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी द्वारा सोमवार को साझा की गई।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पुरी ने कहा कि यह ऐतिहासिक निर्णय है, जो दुनिया के सबसे बड़े और तेजी से विकसित हो रहे एलपीजी बाजारों में से एक को अमेरिका के लिए खोलता है।
मंत्रालय ने बताया, "हम अपने लोगों को सस्ती दरों पर गैस उपलब्ध कराने के लिए अपनी एलपीजी आपूर्ति में विविधता ला रहे हैं।"
पुरी ने आगे बताया, "सरकारी तेल कंपनियों ने 2.2 एमटीपीए एलपीजी आयात करने के लिए एक साल का अनुबंध किया है, जो हमारे कुल वार्षिक आयात का 10 प्रतिशत है। इसमें यूएस गल्फ कोस्ट से एलपीजी का आयात किया जाएगा। यह भारतीय बाजार के लिए अमेरिका से एलपीजी आयात का पहला अनुबंध है।"
इस समझौते में एलपीजी खरीदने के लिए मोंट बेल्विउ को बेंचमार्क के तौर पर उपयोग किया गया है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल के अधिकारियों की एक टीम ने अमेरिका का दौरा किया था और पिछले कुछ महीनों में प्रमुख अमेरिकी उत्पादकों के साथ बातचीत की थी, और अब यह समझौता पूरा हो गया है।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियां हमारी सभी माताओं और बहनों को सबसे कम वैश्विक कीमतों पर रसोई गैस उपलब्ध करा रही हैं।
मंत्री ने कहा, "पिछले वर्ष वैश्विक कीमतों में 60 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि के बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी ने यह सुनिश्चित किया कि हमारे उज्ज्वला उपभोक्ताओं को केवल 500-550 रुपए में रसोई गैस सिलेंडर मिलते रहें, जबकि सिलेंडर की वास्तविक कीमत 1,100 रुपए से अधिक थी।"
उन्होंने कहा, "हमारी माताओं और बहनों को बढ़ती अंतरराष्ट्रीय रसोई गैस कीमतों का बोझ महसूस न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने पिछले साल 40,000 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए।"