क्या 'पे फेयरनेस सेंटीमेंट' में भारत सबसे आगे है?
                                सारांश
Key Takeaways
- भारत में फेयर सैलरी की भावना में सुधार हो रहा है।
 - सिर्फ 11 प्रतिशत कर्मचारी ही अपनी सैलरी के प्रति असंतुष्ट हैं।
 - उम्र के साथ उचित सैलरी के प्रति असंतोष कम होता है।
 - महिलाओं की तुलना में अधिक पुरुष असंतोषित हैं।
 - नियोक्ताओं को फेयरनेस को अवसरों और पहचान तक बढ़ाना चाहिए।
 
नई दिल्ली, 4 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। पिछले एक वर्ष में कंपनियों में काम करने वाले ऐसे कर्मचारियों की संख्या 31 प्रतिशत से घटकर 27 प्रतिशत रह गई है, जिन्हें अपनी सैलरी उचित नहीं लगती। मंगलवार को जारी की गई एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि वैश्विक स्तर पर कर्मचारियों की फेयर सैलरी के प्रति सोच में सुधार हो रहा है।
ह्यूमन कैपिटल मैनेजमेंट कंपनी एडीपी की रिपोर्ट के अनुसार, सर्वे में शामिल 34 मार्केट में भारत उचित सैलरी मिलने की भावना में सबसे आगे है। भारत में सिर्फ 11 प्रतिशत कर्मचारियों ने अपनी सैलरी के प्रति असंतोष व्यक्त किया है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि विभिन्न बाजारों में भिन्नता देखने को मिल रही है। दक्षिण कोरिया और स्वीडन में 'पे फेयरनेस सेंटीमेंट' क्रमशः 45 प्रतिशत और 39 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक है।
इस रिपोर्ट में जेंडर पे गैप की भी जानकारी दी गई है। 34 में से 15 मार्केट में महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत से अधिक की अनफेयर पे दर्ज की गई है, जबकि पुरुषों के लिए यह केवल 5 मार्केट में है।
हालांकि, भारत उन कुछ बाजारों में से एक है जहां महिलाओं की तुलना में उन पुरुषों की संख्या अधिक है, जिन्हें अपनी सैलरी उचित नहीं लगती।
भारत में उचित सैलरी के प्रति असंतोष उम्र के साथ कम होता है। 18 से 26 वर्ष'पे फेयरनेस डिससैटिस्फैक्शन' 13 प्रतिशत है, जबकि 555 प्रतिशत है। यह वैश्विक प्रवृत्ति के विपरीत है।
एडीपी इंडिया और साउथईस्ट एशिया के मैनेजिंग डायरेक्टर राहुल गोयल ने कहा, "जब कर्मचारियों को उचित सैलरी मिलती है, तो वे काम में बेहतर ढंग से ढलते हैं, प्रेरित रहते हैं और संस्थान के प्रति वफादार रहते हैं। इसलिए फेयर पे केवल एक कम्पनसेशन कनवर्सेशन से कहीं अधिक है।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि पे फेयरनेस सेटीमेंट में भारत की प्रमुख स्थिति समान पे करने की प्रथाओं में सुधार को दर्शाती है। लेकिन नियोक्ताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे इस फेयरनेस को केवल सैलरी तक सीमित न रखें, बल्कि अवसरों, विकास और पहचान तक बढ़ाएं ताकि संस्थान में कर्मचारियों को लंबे समय तक बनाए रखा जा सके।