क्या सऊदी अरब और अमेरिका के बीच हुआ ऐतिहासिक डील, परमाणु समझौते और एफ-35 की बिक्री पर?
सारांश
Key Takeaways
- सऊदी अरब और अमेरिका के बीच ऐतिहासिक परमाणु समझौता हुआ।
- सऊदी अरब को अमेरिका द्वारा एफ-35 फाइटर जेट की बिक्री की मंजूरी मिली।
- सऊदी अरब का अमेरिका में निवेश 1 ट्रिलियन डॉलर के करीब पहुंचने वाला है।
- क्राउन प्रिंस का दौरा दोनों देशों के रिश्तों को मजबूती देगा।
- सऊदी अरब को महत्वपूर्ण गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा मिला।
नई दिल्ली, 19 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) ने अमेरिकी दौरे के दौरान मंगलवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की। यह दौरा लगभग 7 साल के बाद किया गया है। इस दौरान दोनों देशों के बीच कई ऐतिहासिक समझौते संपन्न हुए।
व्हाइट हाउस में क्राउन प्रिंस और अमेरिकी राष्ट्रपति ने मुलाकात की, जिसमें ऐतिहासिक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। दोनों देशों ने सिविल न्यूक्लियर एनर्जी पर एक संयुक्त घोषणा को मंजूरी दी है।
इससे पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति ने घोषणा की थी कि अमेरिका सऊदी अरब को एफ-35एस फाइटर जेट बेचेगा। सऊदी अरब द्वारा मांगे गए 48 एफ-35एस फाइटर जेट्स की डिलीवरी भी तय की गई है। इसके साथ ही, दोनों देशों ने लगभग 300 अमेरिकी टैंक की डिलीवरी पर भी सहमति जताई है।
व्हाइट हाउस के बयान के अनुसार, असैन्य परमाणु ऊर्जा, महत्वपूर्ण खनिज ढांचे और एक एआई समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर भी समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। इसके अलावा, अमेरिका-सऊदी रणनीतिक रक्षा समझौते (एसडीए) पर भी सहमति बनी।
अब तक इजरायल को ही एफ-35एस मिलने की अनुमति थी, लेकिन इस नए सौदे के साथ यह स्थिति बदलने वाली है। जब ट्रंप से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि इजरायल को इस डील की जानकारी पहले से थी। सऊदी अरब और इजरायल दोनों ही अमेरिका के करीबी सहयोगी हैं।
सऊदी अरब का अमेरिका में निवेश अब 600 बिलियन डॉलर से बढ़कर 1 ट्रिलियन डॉलर होने वाला है, जिसकी जानकारी खुद क्राउन प्रिंस ने दी है। अमेरिकी पत्रकार जमाल खरगोशी की हत्या के बाद से दोनों देशों के रिश्ते में खटास आई थी, लेकिन अब अमेरिकी राष्ट्रपति सऊदी के साथ संबंधों को सुधारने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
क्राउन प्रिंस के स्वागत में आयोजित एक भव्य डिनर पार्टी के दौरान ट्रंप ने सऊदी अरब को मेजर नॉन-नाटो एलाय (महत्वपूर्ण गैर-नाटो सहयोगी) घोषित किया। अमेरिका ने अब तक यह दर्जा केवल 19 देशों को दिया है।