क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले से करिश्मा तन्ना का दर्द छलका?

सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट का आदेश आवारा कुत्तों को शेल्टर होम भेजने का है।
- करिश्मा तन्ना ने इस पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं।
- जॉन अब्राहम ने कुत्तों को समुदाय का हिस्सा बताया।
मुंबई, १३ अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में भेजने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देशभर में चर्चा तेज हो गई है। सामान्य जनता के साथ-साथ कई सेलेब्रिटीज भी इस निर्णय पर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर गुस्सा, चिंता और भावनात्मक प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। टीवी और फिल्म जगत की प्रसिद्ध अभिनेत्री करिश्मा तन्ना ने भी इस मामले में अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा की।
करिश्मा तन्ना ने अपने इंस्टाग्राम पर एक स्ट्रीट डॉग की फोटो साझा की और लिखा, "जब आप एक कुत्ते को उसकी गली से हटा देते हैं, तो आप केवल एक जानवर नहीं, बल्कि उसकी पूरी दुनिया उससे छीन लेते हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "वो गली उसका घर है, वो चायवाला उसका दोस्त है, वो स्ट्रीट लाइट उसकी छत है। वे कुछ नहीं मांगते, बस उसी दुनिया में जीने का हक चाहते हैं जिसमें वे पले-बढ़े हैं। यदि हम उनकी रक्षा नहीं कर सकते, तो हमें इंसानियत दिखानी चाहिए, लेकिन अफसोस हम इसमें भी असफल हो रहे हैं।"
इस पर, मंगलवार को अभिनेता जॉन अब्राहम ने इस फैसले से संबंधित प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई को पत्र लिखा था और निर्देश की समीक्षा तथा संशोधन का आग्रह किया। उन्होंने पत्र के माध्यम से कहा कि कुत्ते आवारा नहीं हैं, बल्कि समुदाय का हिस्सा हैं और बहुत से लोग उन्हें प्यार करते हैं।
उन्होंने लिखा, 'मुझे उम्मीद है कि आप इस बात से सहमत होंगे कि ये आवारा नहीं, बल्कि सामुदायिक कुत्ते हैं, जिनका बहुत से लोग सम्मान करते हैं, उन्हें बेजुबानों को खिलाते-पिलाते और प्यार करते हैं। खासकर दिल्ली के लोग जो उन्हें आवारा कुत्ते नहीं, बल्कि सोसायटी का हिस्सा समझते हैं।'
उन्होंने कहा कि यह निर्देश पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, २०२३ और इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय के पिछले फैसलों के बिल्कुल विपरीत है। अभिनेता का मानना है, 'एबीसी नियम के अनुसार कुत्तों को किसी शेल्टर होम में नहीं रखना चाहिए। इसके बजाय उनकी नसबंदी और टीकाकरण करने के बाद उन्हें उन्हीं इलाकों में वापस छोड़ देना चाहिए जहां वे रहते हैं, जहां एबीसी के नियम को ईमानदारी से लागू किया जाता है।' साथ ही यह भी बताया कि जयपुर और लखनऊ जैसे शहरों में भी यही नियम अपनाया गया है।