क्या कोंकणा सेन शर्मा की एक्टिंग देखकर निर्देशक भी रह जाते हैं दंग?
सारांश
Key Takeaways
- कोंकणा सेन शर्मा ने अद्भुत अभिनय से कई पुरस्कार जीते हैं।
- उन्होंने अपने करियर में महत्वपूर्ण और चुनिंदा किरदारों का चयन किया है।
- उनकी एक्टिंग में गहराई और भावनाओं की झलक है।
- वह निर्देशन में भी सक्रिय हैं और कई शॉर्ट फिल्म्स में काम कर चुकी हैं।
- कोंकणा ने 'ओंकारा' जैसी चर्चित फिल्मों में भी काम किया है।
मुंबई, 2 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। बॉलीवुड की प्रसिद्ध अदाकारा कोंकणा सेन शर्मा अपने अद्भुत अभिनय के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने हमेशा फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाए हैं। उनकी एक्टिंग में गहराई और भावनाओं की झलक दिखाई देती है, जो दर्शकों के दिलों को छू जाती है। उनके निभाए किरदार दर्शकों के मन में बस जाते हैं। ऐसा ही एक किरदार था इंदू, जो उन्होंने विशाल भारद्वाज की फिल्म 'ओंकारा' में निभाया था।
इस रोल में उन्होंने न केवल भाषा और बोली पर पूरी तरह से पकड़ बनाई, बल्कि हाव-भाव और गांव की मानसिकता में इतनी सहजता दिखाई कि निर्देशकों ने खुद कहा है कि कोंकणा किरदार में पूरी तरह डूब जाती हैं।
कोंकणा सेन शर्मा का जन्म 3 दिसंबर 1979 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ। उनके पिता मुकुल शर्मा एक लेखक और पत्रकार थे, जबकि उनकी मां अपर्णा सेन फिल्म निर्माता और अभिनेत्री हैं। उनके नाना चिदानंद दासगुप्ता फिल्म क्रिटिक और लेखक थे। इस खास परिवेश में पली-बढ़ी कोंकणा को बचपन से ही अभिनय में रुचि थी। उन्होंने महज चार साल की उम्र में फिल्म 'इंदिरा' से अपने करियर की शुरुआत की। बाल कलाकार के रूप में उनके हाव-भाव और सहजता ने दर्शकों का ध्यान खींचा। इसके बाद उन्होंने 2000 में बंगाली फिल्म 'एक जे आछे कन्या' से कदम रखा, जिसमें उनके निगेटिव रोल को दर्शकों ने सराहा।
कोंकणा को पहली बड़ी पहचान 2001 में मिली, जब उन्होंने अपनी मां अपर्णा सेन की फिल्म 'मिस्टर एंड मिसेज अय्यर' में काम किया। फिल्म में कोंकणा ने अपने किरदार की गहराई को इतनी प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नेशनल अवॉर्ड
2005 में रिलीज हुई 'पेज 3' में कोंकणा ने पत्रकार माधवी शर्मा का किरदार निभाया। इस रोल में उन्होंने फिल्म उद्योग के अंधेरे पक्ष को बखूबी उजागर किया। उनकी एक्टिंग की सराहना पूरे देश में हुई और फिल्म को कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इसके बाद उन्होंने 'लाइफ इन ए मेट्रो' जैसी फिल्मों में भी बेहतरीन काम किया।
2007 में आई विशाल भारद्वाज की फिल्म 'ओंकारा' उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। इंदू का किरदार निभाने के लिए कोंकणा ने गांव की भाषा, बोली और व्यवहार पर पूरी तरह से पकड़ बनाई। उनके हाव-भाव और मासूमियत ने किरदार को जीवंत बना दिया।
निर्देशक विशाल भारद्वाज ने खुद इस बात को स्वीकार किया कि कोंकणा अपने किरदार में पूरी तरह डूब जाती हैं। यह उनकी विशेषता है कि वह किरदार को केवल अभिनय के माध्यम से नहीं बल्कि पूरी तरह महसूस करके प्रस्तुत करती हैं।
कोंकणा ने अपने करियर में सिर्फ फिल्मों में ही नहीं, बल्कि निर्देशन में भी हाथ आजमाया। 2006 में उन्होंने बंगाली शॉर्ट फिल्म 'नामोकोरन' से निर्देशन में कदम रखा। इसके अलावा, उन्होंने कई वेब सीरीज और शॉर्ट फिल्म्स में भी काम किया है।
अभिनय के क्षेत्र में कोंकणा ने कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए हैं। नेशनल अवॉर्ड्स, फिल्मफेयर और अन्य कई पुरस्कारों से उनकी प्रतिभा को मान्यता मिली है। उन्होंने हमेशा अपने करियर में महत्वपूर्ण और चुनिंदा किरदारों का चयन किया है।