क्या आप जानते हैं सिने जगत की 'परी-चेहरा' नसीम बानो के बारे में?

सारांश
Key Takeaways
- नसीम बानो भारतीय सिनेमा की पहली सुपरस्टार थीं।
- उन्होंने सिनेमा में फैशन और मेकअप में क्रांति लाई।
- उनकी खूबसूरती और अभिनय ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।
- उनकी कहानी हमें प्रेरणा देती है कि हमें अपने सपनों का पीछा करना चाहिए।
- नसीम का योगदान आज भी सिनेमा जगत में महसूस किया जाता है।
मुंबई, 17 जून (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय सिनेमा की 'पहली सुपरस्टार', 'पहली रानी' और 'परी-चेहरा' के नाम से मशहूर नसीम बानो का आजीवन योगदान अद्भुत रहा है। 18 जून को इस हिंदी सिने जगत की प्रतिष्ठित हस्ती की पुण्यतिथि है। 4 जुलाई 1916 को पुरानी दिल्ली में जन्मी नसीम ने 1930 और 1940 के दशकों में अपनी खूबसूरती और अभिनय के दम पर सिनेमा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
जब हिंदी सिनेमा में स्वर्णलता, मुमताज शांति और नूरजहां जैसी अभिनेत्रियों का बोलबाला था, तब भी नसीम की चमक फीकी नहीं पड़ी। उनकी खूबसूरती का जिक्र प्रसिद्ध साहित्यकार सआदत हसन मंटो ने अपनी रचनाओं में किया था।
उन्होंने लिखा, “उन दिनों अभिनेत्रियों में से एक थीं नसीम बानो, जो खासा मशहूर थीं। खूबसूरती की बहुत चर्चा थी। इश्तिहारों में 'परी चेहरा नसीम' कहा जाता था। उनकी बड़ी, पुर-कशिश आंखें थीं और जब आंखें आकर्षक हों तो सारा चेहरा भी ऐसा ही बन जाता है।”
प्रसिद्ध संगीतकार नौशाद ने उन्हें 'परी-चेहरा' उपनाम दिया, जो उनकी खूबसूरती का प्रतीक बना। दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गजों ने उन्हें भारतीय सिनेमा की सबसे खूबसूरत अभिनेत्री करार दिया।
उनकी बेटी और पूर्व युग की लोकप्रिय अभिनेत्री सायरा बानो ने बताया, “उनकी खूबसूरती केवल चेहरे तक सीमित नहीं थी, यह उनके संस्कारों में भी झलकती थी।”
नसीम बानो की कहानी केवल एक अभिनेत्री की नहीं, बल्कि एक ऐसी महिला की है, जिसने अपने समय की रूढ़ियों को तोड़ते हुए भारतीय सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी।
उनका जन्म रोशन आरा बेगम के रूप में एक ऐसे परिवार में हुआ, जहां कला और संगीत की गहरी जड़ें थीं। उनकी मां चमियान बाई, जिन्हें शमशाद बेगम के नाम से भी जाना जाता था, उस समय की मशहूर गायिका और तवायफ थीं। नसीम की परवरिश दिल्ली में हुई, जहां उन्होंने क्वीन मैरी हाई स्कूल में पढ़ाई की।
नसीम का सपना था कि वह भी बड़े पर्दे पर चमकें। यह सपना तब साकार हुआ, जब सोहराब मोदी ने उन्हें अपनी फिल्म 'खून का खून' में अभिनय के लिए चुना। हालांकि, उनकी मां नहीं चाहती थीं कि नसीम अभिनय की दुनिया में कदम रखें, लेकिन नसीम ने भूख हड़ताल कर अनुमति प्राप्त की और इस तरह उनके सिनेमाई सफर की शुरुआत हुई।
नसीम की पहचान 1939 में आई सोहराब मोदी की फिल्म 'पुकार' से बनी, जिसमें उन्होंने महारानी नूरजहां का किरदार निभाया। दर्शकों ने सिनेमा हॉल में जूते उतारकर प्रवेश करना शुरू कर दिया, मानो वे मुगल दरबार में कदम रख रहे हों।
नसीम ने अपने करियर में कई परीक्षण किए। उन्होंने सिनेमा में फैशन और मेकअप के क्षेत्र में क्रांति ला दी। उनकी बेटी सायरा बानो की पहली फिल्म जंगली (1961) के लिए नसीम ने कॉस्ट्यूम डिजाइन पर विशेष ध्यान दिया, जिसने भारतीय सिनेमा में फैशन के नए मानक स्थापित किए।
सायरा बानो अपनी सफलता का श्रेय अपनी मां को देती हैं। वह अक्सर सोशल मीडिया पर अम्मी की कहानियाँ साझा करती हैं। उन्होंने कहा, “मैंने जो कुछ भी हासिल किया, वह उनकी मेहनत और बलिदानों का नतीजा है।”
नसीम की व्यक्तिगत जिंदगी भी प्रेरणादायक रही। उन्होंने अपने बचपन के दोस्त, आर्किटेक्ट मियां एहसान-उल-हक से शादी की और ताज महल पिक्चर्स बैनर की शुरुआत की। उनके दो बच्चे, सायरा बानो और सुल्तान अहमद हुए। विभाजन के बाद उनके पति पाकिस्तान चले गए, लेकिन नसीम अपने बच्चों के साथ भारत में रहीं। उन्होंने सायरा और सुल्तान को लंदन में पढ़ाया, लेकिन उन्हें भारतीय संस्कृति से जोड़े रखा।
नसीम का करियर 1950 के दशक तक चला। उन्होंने सिनेमा को अपने अभिनय, सादगी, मेहनत और नए प्रयोगों से समृद्ध किया। 18 जून 2002 को 85 वर्ष की आयु में मुंबई में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी हिंदी सिनेमा के प्रेमियों में जीवित है।