क्या हरीतकी आयुर्वेद की अमूल्य विरासत है, जो कई समस्याओं से लड़ने में कारगर है?

सारांश
Key Takeaways
- हरीतकी एक प्राकृतिक औषधि है जो कई स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान करती है।
- यह इम्यूनिटी को बढ़ाने में सहायक है।
- इसके चूर्ण का उपयोग बवासीर के उपचार में किया जा सकता है।
- सही मात्रा में सेवन करने पर यह वजन प्रबंधन में मदद करती है।
- चिकित्सीय सलाह के बिना इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
नई दिल्ली, 20 जून (राष्ट्र प्रेस)। भारत में कई औषधियां हैं, जिन्हें संजीवनी के रूप में जाना जाता है। इनमें से एक है हरीतकी, जिसे संस्कृत में "अभया" कहा जाता है। आयुर्वेद में इसे औषधीय गुणों का भंडार माना गया है; इसे हर्र या हरण के नाम से भी जाना जाता है।
इसमें विटामिन-सी, विटामिन-के, मैग्नीशियम, अमीनो एसिड, फ्लेवेनॉइड और एंटीऑक्सीडेंट जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं। यह ब्लड शुगर को नियंत्रित करने, पाचन में सुधार करने और इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक होता है। इस फल को भारत और दक्षिण एशिया के कई क्षेत्रों में पाया जाता है और इसका वैज्ञानिक नाम टर्मिनलिया चेबुला है। इसका उपयोग आयुर्वेद में हजारों वर्षों से किया जा रहा है। इसके सूखे फल का प्रयोग चूर्ण, काढ़ा और गोली के रूप में किया जाता है।
चरक संहिता में इसे "कषाय" (कसैला) कहा गया है, जबकि सुश्रुत संहिता में इसे "त्रिफला" में शामिल किया गया है।
सुश्रुत संहिता के अनुसार, हरीतकी का उपयोग मुख्य रूप से पाचन, श्वसन, त्वचा और मूत्र संबंधी समस्याओं के लिए किया जाता है। इसके चूर्ण का उपयोग बवासीर के लक्षणों को कम करने में सहायक होता है; सूजन कम होती है और दर्द में राहत मिलती है।
चरक संहिता में इसे त्रिदोषनाशक बताया गया है। चिकित्सा ग्रंथों के अनुसार, हरीतकी के सूखे फूलों को चूर्ण में बदलकर सेवन किया जाता है। पाउडर के सेवन से मुंह के छाले, खांसी और गले की खराश जैसी समस्याओं से राहत मिलती है। यदि आप झड़ते हुए बालों से परेशान हैं, तो हरीतकी चूर्ण को आंवला और रीठा के साथ मिलाकर पानी में उबालें, छानकर इस पानी से बाल धोएं। इससे बालों का झड़ना कम होगा और बाल मजबूत रहेंगे।
हरीतकी शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने और चयापचय को बढ़ावा देने में मदद करती है, जिससे वजन प्रबंधन में सहायता मिलती है। हालांकि, इसका सेवन किसी भी चिकित्सीय सलाह के बिना नहीं करना चाहिए।