क्या ट्रेडिशनल तौर पर फर्मेंटेड फूड विविध आबादी को स्वस्थ रखने में मदद कर सकता है?

सारांश
Key Takeaways
- फर्मेंटेड फूड में बायोएक्टिव पेप्टाइड्स होते हैं।
- ये पेप्टाइड्स स्वास्थ्य समस्याओं को नियंत्रित कर सकते हैं।
- भारत की जनसंख्या के लिए व्यक्तिगत पोषण की आवश्यकता है।
- फर्मेंटेशन के दौरान विभिन्न स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं।
- पारंपरिक खाद्य पदार्थों को जन स्वास्थ्य में शामिल किया जाना चाहिए।
नई दिल्ली, 14 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। सरकार ने बताया कि फर्मेंटेड फूड पर किए गए एक नए अध्ययन से यह सामने आया है कि इनमें मौजूद बायोएक्टिव पेप्टाइड्स का प्रभाव विभिन्न जनसंख्या समूहों पर भिन्न होता है।
इन परिणामों के आधार पर, भारत की विविध जनसंख्या के लिए व्यक्तिगत पोषण रणनीतियों को तैयार करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
गुवाहाटी स्थित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उन्नत अध्ययन संस्थान (आईएएसएसटी) द्वारा हाल ही में किए गए इस अध्ययन में पारंपरिक किण्वित खाद्य पदार्थों के स्वास्थ्य लाभों पर प्रकाश डाला गया है।
अध्ययन में यह पाया गया है कि इन खाद्य पदार्थों में मौजूद बायोएक्टिव पेप्टाइड्स (बीएपी) जो 2 से 20 अमीनो एसिड वाले छोटे प्रोटीन अंश होते हैं, रक्तचाप, रक्त शर्करा, प्रतिरक्षा और सूजन को नियंत्रित करने में सहायक हो सकते हैं।
यह शोध फूड केमिस्ट्री में प्रकाशित हुआ है। आईएएसएसटी के निदेशक प्रोफेसर आशीष के. मुखर्जी के नेतृत्व में, डॉ. मलोयजो जॉयराज भट्टाचार्य, डॉ. आशीष बाला और डॉ. मोजिबर खान ने मिलकर इस शोध को किया है। इस अध्ययन से पता चला है कि दही, इडली, मिसो, नट्टो, किमची और फर्मेंटेड मछली जैसे खाद्य पदार्थों में इन पेप्टाइड्स की उच्च मात्रा होती है।
किण्वन (फर्मेंटेशन) के दौरान बनने वाले ये छोटे पेप्टाइड्स, इलेक्ट्रोस्टैटिक बलों, हाइड्रोजन बॉंडिंग और हाइड्रोफोबिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से जैव-अणुओं के साथ परस्पर क्रिया करके रोगाणुरोधी, उच्च रक्तचाप रोधी, एंटीऑक्सीडेंट और प्रतिरक्षा-संशोधक प्रभाव डालते हैं।
ये हृदय क्रिया, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया और चयापचय स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, आनुवंशिक विविधता, आंत माइक्रोबायोटा संरचना, आहार संबंधी आदतें और स्वास्थ्य स्थितियां इनकी जैव उपलब्धता और प्रभावशीलता को विभिन्न जनसंख्या में भिन्न बनाती हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार, यह डेटा विभिन्न भारतीय जनसंख्या के लिए सटीक पोषण और लक्षित स्वास्थ्य हस्तक्षेपों की आवश्यकता पर बल देता है। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि पारंपरिक किण्वित खाद्य पदार्थों को जन स्वास्थ्य कार्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए और ग्रामीण खाद्य प्रणालियों में ‘ओमिक्स-आधारित’ अनुसंधान को बढ़ावा देकर भारत को व्यक्तिगत पोषण में अग्रणी बनाया जा सकता है।