क्या आप 'रेनॉड्स सिंड्रोम' के शिकार हैं? सर्द मौसम में ध्यान देना जरूरी!

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क्या आप 'रेनॉड्स सिंड्रोम' के शिकार हैं? सर्द मौसम में ध्यान देना जरूरी!

सारांश

सर्दियों में हाथ-पैरों का रंग बदलना और सुन्न होना सामान्य ठंड नहीं, बल्कि 'रेनॉड्स सिंड्रोम' का संकेत हो सकता है। इसे नजरअंदाज न करें।

Key Takeaways

  • रेनॉड्स सिंड्रोम ठंड से प्रभावित रक्त नलिकाओं की समस्या है।
  • महिलाएं पुरुषों से अधिक प्रभावित होती हैं।
  • समय पर जांच और सही देखभाल से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
  • दस्ताने और गर्म मोजे पहनने से राहत मिल सकती है।
  • तनाव कम करना और धूम्रपान छोड़ना मददगार है।

नई दिल्ली, 25 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। सर्दियों में कई लोगों के हाथ-पैर अचानक बर्फ की तरह ठंडे हो जाते हैं, रंग बदल जाता है और कुछ समय के लिए उनमें संवेदना नहीं रहती। अक्सर, लोग इसे सामान्य ठंड समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यह एक विशेष चिकित्सा स्थिति हो सकती है, जिसे रेनॉड्स सिंड्रोम कहा जाता है।

सरल शब्दों में, ठंडी हवा या तनाव के कारण हाथ-पैर की छोटी रक्त नलिकाएं अचानक अत्यधिक सिकुड़ जाती हैं। जैसे ही रक्त का प्रवाह कम होता है, अंगों का रंग पहले सफेद, फिर नीला और अंत में लाल हो जाता है। इस दौरान ये सुन्न पड़ जाते हैं।

यह शरीर की एक ऐसी प्रतिक्रिया है जो ठंड से खुद को बचाने के लिए होती है, लेकिन कुछ व्यक्तियों में यह अत्यधिक तीव्र हो जाती है। महिलाएं पुरुषों की तुलना में इससे अधिक प्रभावित होती हैं, और यह समस्या प्रायः किशोरावस्था या युवावस्था में विकसित होती है। भावनात्मक तनाव भी इसका एक बड़ा कारण हो सकता है—जब मन घबराता है, शरीर की नसें सिकुड़ सकती हैं और उंगलियां ठंडी पड़ सकती हैं।

वैज्ञानिकों ने इसकी दो प्रकारें बताई हैं। पहली, प्राइमरी रेनॉड्स—जो अपने आप होती है और गंभीर नहीं मानी जाती। दूसरी, सेकेंड्री रेनॉड्स—जो किसी अन्य बीमारी जैसे स्क्लेरोडर्मा या ल्युपस से जुड़ी हो सकती है और कभी-कभी उंगलियों में घाव का कारण बन सकती है। इसलिए यदि यह अक्सर और बहुत तीव्र रूप से हो, तो डॉक्टर से जांच कराना आवश्यक है।

एक महत्वपूर्ण अध्ययन (2023), लैंसेट रूमेटोलॉजी में प्रकाशित हुआ, जिसमें पाया गया कि जिन मरीजों में सेकेंड्री रेनॉड्स होता है, उनमें माइक्रोवेस्कुलर (बहुत छोटी रक्त नलिकाओं) को होने वाली क्षति जल्दी पकड़ में आ जाती है। शुरुआती पहचान से गंभीर जटिलताओं को रोका जा सकता है। एक और अध्ययन, जो जर्नल ऑफ ऑटोइम्युनिटी में प्रकाशित हुआ, इस बात पर जोर देता है कि रेनॉड्स कई बार ऑटोइम्यून रोगों का पहला संकेत हो सकता है, इसलिए इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।

दैनिक जीवन में छोटे-छोटे बदलाव इस समस्या को नियंत्रित कर सकते हैं, जैसे सर्दी से बचाव के लिए हमेशा दस्ताने और गर्म मोजे पहनना, अचानक तापमान परिवर्तन से बचना, धूम्रपान छोड़ना, तनाव कम करना और ऐसी चीजों से दूर रहना जिनमें हाथों पर कंपन अधिक पड़ता हो। कुछ व्यक्तियों को गर्म पानी में हाथ-पैरों को डुबोना तुरंत राहत देता है। जिन मरीजों में यह अधिक गंभीर होता है, डॉक्टर ब्लड वेसल्स फैलाने वाली दवाइयां देते हैं ताकि रक्त का प्रवाह ठीक बना रहे।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस समस्या को शर्म या नजरअंदाज करने की चीज न समझें। यदि हाथ-पैर बार-बार सफेद-नीले हो रहे हों, दर्द और सुन्नपन लंबे समय तक बना रहे या त्वचा पर घाव बनने लगें, तो यह संकेत है कि शरीर किसी बड़ी दिक्कत की ओर इशारा कर रहा है। समय पर जांच और सही देखभाल से रेनॉड्स को पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है और सामान्य जीवन जीया जा सकता है।

Point of View

जिसे समय पर पहचाना जाना आवश्यक है। यह न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर असर डालता है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी प्रभाव डाल सकता है। समाज को इस मुद्दे पर जागरूक करना चाहिए ताकि लोग सही समय पर चिकित्सा सहायता प्राप्त कर सकें।
NationPress
25/11/2025

Frequently Asked Questions

रेनॉड्स सिंड्रोम क्या है?
रेनॉड्स सिंड्रोम एक चिकित्सा स्थिति है जिसमें ठंड या तनाव के कारण हाथ-पैर की रक्त नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं।
इसका इलाज कैसे किया जाता है?
दस्ताने पहनना, तनाव प्रबंधन, और डॉक्टर द्वारा दिए गए दवाएं इसके इलाज में सहायक हो सकते हैं।
क्या यह गंभीर है?
यदि यह अधिक गंभीर हो जाए, तो यह अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत हो सकता है।
क्या यह महिलाओं में अधिक होता है?
हां, महिलाएं पुरुषों की तुलना में रेनॉड्स सिंड्रोम से अधिक प्रभावित होती हैं।
क्या इसे हल्के में लेना चाहिए?
नहीं, इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। समय पर जांच जरूरी है।
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