क्या ग्रिगोरी रासपुतिन एक चमत्कारी 'बाबा' था जिसकी रूस में तूती बोलती थी?
सारांश
Key Takeaways
- ग्रिगोरी रासपुतिन का प्रभाव रूस की राजशाही पर गहरा था।
- उसकी हत्या ने सत्ता के भीतर की साजिशों को उजागर किया।
- रासपुतिन की भविष्यवाणियाँ उसकी हत्या से जुड़ी थीं।
- उसकी कहानी आज भी सांस्कृतिक संदर्भों में जीवित है।
- रूस में रासपुतिन की हत्या ने 1917 की क्रांति में योगदान दिया।
नई दिल्ली, 29 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। रासपुतिन, एक ऐसा नाम जो सौ साल बीत जाने के बाद भी चर्चाओं में बना हुआ है। रूस का वह बाबा जो तंत्र-मंत्र में इतना कुशल था कि रूसी शाही परिवार ने भी उसकी प्रशंसा की। भविष्यवक्ता होने के नाते, रासपुतिन को शराब पीने और उच्छृंखल जीवन के लिए बदनाम किया गया। इसी व्यक्ति की 30 दिसंबर 1916 को हत्या की गई थी, और उसने अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी भी कर दी थी।
रूस की राजधानी पेट्रोग्राड (जिसे आज सेंट पीटर्सबर्ग कहा जाता है) में ग्रिगोरी येफिमोविच रासपुतिन की हत्या की गई। वह एक रहस्यमय साधु और आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे, जिन्होंने रूसी सम्राट जार निकोलस द्वितीय और विशेष रूप से महारानी एलेक्जेंड्रा पर गहरा प्रभाव डाला। इतिहासकारों के अनुसार, रासपुतिन की हत्या को 1917 की रूसी क्रांति से पहले की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक माना जाता है।
इतिहासकार ऑरलैंडो फाइजेस अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "अ पीपल्स ट्रेजेडी: द रशियन रेवोल्यूशन 1891–1924" में उल्लेख करते हैं कि रासपुतिन की उपस्थिति ने राजशाही की छवि को कमजोर कर दिया। जार के पुत्र अलेक्सी हीमोफीलिया नामक गंभीर बीमारी से ग्रस्त थे, और यह माना जाता था कि रासपुतिन की प्रार्थनाओं और उपचार विधियों ने उनकी हालत को बेहतर करने में मदद की। इसलिए, महारानी एलेक्जेंड्रा ने रासपुतिन को ईश्वर का दूत मान लिया।
रासपुतिन का बढ़ता राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव रूसी अभिजात वर्ग, सेना और चर्च के एक बड़े हिस्से को अस्वीकार्य लगने लगा। अमेरिकी इतिहासकार डगलस स्मिथ अपनी किताब "रासपुतिन: फेथ, पावर एंड द ट्विलाइट ऑफ द रोमनोवस" में लिखते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रूस की हार, आर्थिक संकट और जनता की नाराजगी के बीच रासपुतिन को सत्ता के पतन का प्रतीक माना जाने लगा था। आम लोगों के बीच यह धारणा बन गई थी कि वह शासन को भीतर से कमजोर कर रहा है।
30 दिसंबर 1916 की रात, राजकुमार फेलिक्स युसुपोव, ग्रैंड ड्यूक दिमित्री पावलोविच और कुछ अन्य कुलीनों ने मिलकर रासपुतिन की हत्या की योजना बनाई। कई ऐतिहासिक संदर्भों में बताया गया है कि पहले उसे जहर दिया गया, फिर गोली मारी गई, और अंततः उसका शव नेवा नदी में फेंका गया। हालांकि हत्या के तरीके को लेकर आज भी भिन्नता है, लेकिन यह निश्चित है कि यह कृत्य राजशाही को “बचाने” के नाम पर किया गया था।
इतिहासकार मानते हैं कि रासपुतिन की हत्या से राजशाही को कोई लाभ नहीं हुआ। इसके विपरीत, यह स्पष्ट हो गया कि सत्ता के भीतर गहरी साजिशें और अस्थिरता व्याप्त थीं। कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ रशिया जैसे अकादमिक ग्रंथों में रासपुतिन की हत्या को उस पतनशील व्यवस्था का संकेत माना गया है, जो कुछ ही महीनों बाद फरवरी 1917 की क्रांति में ध्वस्त हो गई।
इस प्रकार, 30 दिसंबर 1916 को हुई ग्रिगोरी रासपुतिन की हत्या केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं थी, बल्कि यह रूसी साम्राज्य के अंत की पूर्वसूचना बनी। उसने निकोलस द्वितीय को लिखे एक पत्र में कहा था कि अगर उसकी हत्या रईस परिवार के लोगों द्वारा की गई, तो यह रूस की राजशाही के अंत की शुरुआत होगी। और वास्तव में, 1917 में रूसी क्रांति ने न केवल निकोलस द्वितीय के शासन को समाप्त किया, बल्कि पूरी राजशाही को समाप्त कर दिया।
यह घटना आज भी सत्ता, अंधविश्वास और राजनीतिक पतन के खतरनाक मेल की चेतावनी के रूप में याद की जाती है।
रासपुतिन की मृत्यु के बाद भी उसकी कहानी समाप्त नहीं हुई। 1978 में जर्मन-कैरेबियन पॉप ग्रुप बोनी.एम ने “रासपुतिन” नामक एक गीत जारी किया, जिसने विश्वभर में धूम मचाई। इस गीत में रासपुतिन को “रशियन ग्रेटेस्ट लव मशीन” कहा गया, और उसकी रहस्यमयी छवि को नृत्य और संगीत के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। यह दर्शाता है कि रासपुतिन की कहानी कितनी गहरी और वैश्विक प्रभाव वाली है।