क्या गलवान के वीरों को नमन करने का पर्वतारोहण अभियान है?

Click to start listening
क्या गलवान के वीरों को नमन करने का पर्वतारोहण अभियान है?

सारांश

गलवान घाटी में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को सम्मानित करने के लिए एक साहसिक पर्वतारोहण अभियान आयोजित किया गया। 28 पर्वतारोहियों की टीम ने दुर्गम बर्फीले पहाड़ों पर चढ़ाई की, जो साहस और बलिदान की एक अद्भुत कहानी बयां करती है। आइए जानते हैं इस अभियान के बारे में और क्या संदेश है इसमें।

Key Takeaways

  • गलवान के शहीदों को श्रद्धांजलि देने का एक साहसिक प्रयास।
  • 28 पर्वतारोहियों ने दुर्गम बर्फीले पहाड़ों पर चढ़ाई की।
  • यह अभियान सैन्य उत्कृष्टता का प्रतीक है।
  • लद्दाख में साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने का प्रयास।
  • सैन्य की शारीरिक और मानसिक दृढ़ता को दर्शाने वाला अभियान।

नई दिल्ली, 18 जून (राष्ट्र प्रेस)। गलवान घाटी में शहीद हुए भारतीय सेना के वीरों को एक विशेष तरीके से श्रद्धांजलि दी गई है। सेना के जवानों ने अपने साथियों के बलिदान को याद करते हुए बेहद ऊंचाई वाले दुर्गम पर्वतों पर चढ़ाई की। बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर यह पर्वतारोहण का अभियान अत्यंत जटिल था, लेकिन साहसी जवानों ने इसे सफलतापूर्वक पूरा किया।

जून 2020 में गलवान में भारतीय सेना और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प के दौरान 20 भारतीय सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दिया था। इस घटना को 2025 में पांच वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस अवसर पर सेना ने पर्वतारोहण का यह अभियान गलवान के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित किया।

गलवान घाटी भारत-चीन की सीमा के पास स्थित है और यह केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में अक्साई चिन क्षेत्र में आता है। शहीदों को श्रद्धांजलि देने के साथ-साथ लद्दाख में सीमावर्ती पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारतीय सेना ने माउंट शाही कांगरी और माउंट सिल्वर पीक तक सफलतापूर्वक एक पर्वतारोहण अभियान आयोजित किया। यह अभियान 28 मई को प्रारंभ हुआ और 18 जून को फायर एंड फ्यूरी कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला द्वारा संपन्न किया गया। यह अभियान शहीदों के अदम्य साहस और बलिदान को श्रद्धांजलि देने के लिए था।

इस अभियान में 28 कुशल सैन्य पर्वतारोहियों की टीम ने भाग लिया, जिन्होंने बर्फीले और पथरीले क्षेत्र में संचालन हेतु विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया था। उन्होंने अत्यधिक ऊंचाई वाले दुर्गम पर्वतीय इलाके में असाधारण धैर्य, साहस और तकनीकी दक्षता का प्रदर्शन किया। ये पर्वत शृंखलाएं काराकोरम रेंज में देपसांग मैदान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं।

खास बात यह है कि पहाड़ों की ये चोटियां पूरे वर्ष बर्फ से ढकी रहती हैं। सेना के अनुसार, पर्वतारोहियों ने दक्षिण-पूर्व दिशा से एक छोटा, लेकिन अत्यंत खतरनाक मार्ग अपनाया। इस मार्ग में उन्हें गहरी दरारों (क्रेवास), बर्फीले शिखरों (कॉर्निस) और ग्लेशियरों को पार करना पड़ा, जो सैनिकों की शारीरिक और मानसिक दृढ़ता का परिचायक है। सेना का कहना है कि यह अभियान न केवल सैन्य उत्कृष्टता का प्रतीक बना, बल्कि इस क्षेत्र में साहसिक पर्यटन की संभावनाओं को भी उजागर करता है।

Point of View

बल्कि यह दर्शाता है कि हमारे सैनिकों की साहसिकता और समर्पण किसी भी कठिनाई को पार कर सकता है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि देश के प्रति हमारी जिम्मेदारी क्या है।
NationPress
19/06/2025

Frequently Asked Questions

गलवान घाटी का महत्व क्या है?
गलवान घाटी भारत-चीन सीमा के निकट स्थित एक संवेदनशील क्षेत्र है, जो रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
इस अभियान में भाग लेने वाले पर्वतारोहियों की संख्या कितनी थी?
इस अभियान में 28 कुशल सैन्य पर्वतारोहियों की टीम ने भाग लिया।
अभियान का उद्देश्य क्या था?
इस अभियान का उद्देश्य गलवान के शहीदों को श्रद्धांजलि देना और लद्दाख में साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देना था।
यह अभियान कब शुरू हुआ था?
यह अभियान 28 मई को प्रारंभ हुआ और 18 जून को संपन्न हुआ।
क्या यह अभियान खतरनाक था?
हाँ, इस अभियान में पर्वतारोहियों को गहरी दरारों और बर्फीले शिखरों को पार करना पड़ा, जो इसे बेहद खतरनाक बनाता है।