क्या शिवगिरी केवल एक तीर्थ है या सामाजिक जागृति की यात्रा? : उपराष्ट्रपति सीपी. राधाकृष्णन
सारांश
Key Takeaways
- शिवगिरी केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सामाजिक जागृति का प्रतीक है।
- श्री नारायण गुरु की शिक्षाएं समाज को जागरूक करती हैं।
- तीर्थयात्रा का उद्देश्य शिक्षा और स्वच्छता है।
- समानता और मानवता के मूल्यों को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- केंद्र सरकार शिवगिरी के विकास के लिए योजनाएं लागू कर रही है।
नई दिल्ली, 30 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत के उपराष्ट्रपति सीपी. राधाकृष्णन ने मंगलवार को केरल के वर्कला स्थित शिवगिरी मठ में 93वीं शिवगिरी तीर्थयात्रा का उद्घाटन किया।
उन्होंने शिवगिरी को केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि समाज को जागरूक करने वाली एक जीवंत विचारधारा बताया। उन्होंने कहा कि शिवगिरी श्री नारायण गुरु द्वारा कल्पित सामाजिक चेतना और परिवर्तन की यात्रा का प्रतीक है।
उपराष्ट्रपति ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि शिवगिरी आध्यात्मिक साधना और सामाजिक जिम्मेदारी के संतुलन का उदाहरण है। यहां आस्था समाज को ऊपर उठाने का माध्यम बनती है और तर्क भक्ति के साथ आगे बढ़ता है। शिवगिरी तीर्थयात्रा को किसी कर्मकांड के रूप में नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वच्छता, संगठन, श्रम और आत्म-सम्मान के जरिए समाज को जागरूक करने के आंदोलन के रूप में शुरू किया गया था।
उपराष्ट्रपति ने श्री नारायण गुरु के उस विचार का उल्लेख किया, जिसने समाज की सोच को बदल दिया। उन्होंने कहा कि गुरु ने यह सवाल उठाया कि एक इंसान को दूसरे इंसान से कमतर क्यों माना जाए। इसी अन्याय के जवाब में गुरु ने 'एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर' का संदेश दिया, जिसने सदियों पुराने भेदभाव को चुनौती दी।
उन्होंने कहा कि श्री नारायण गुरु की क्रांति शांतिपूर्ण, करुणामय और स्थायी थी, जो समानता, गरिमा और मानवता के मूल्यों पर आधारित थी। श्री नारायण गुरु ने आस्था के साथ-साथ तर्क को भी महत्व दिया। उन्होंने अंधविश्वास का विरोध किया और तार्किक सोच को अपनाने का संदेश दिया। आध्यात्मिकता और तर्कवाद के इस मेल ने गुरु को न केवल अपने समय का संत बनाया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी मार्गदर्शक बनाया।
भारत की सभ्यतागत परंपरा पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय आध्यात्मिकता में प्रेम को पूजा का सर्वोच्च रूप माना गया है। श्री नारायण गुरु ने अपने जीवन और कार्यों से यह दिखाया कि समाज की सेवा किसी भी कर्मकांड से बड़ी होती है और मानवता के प्रति प्रेम ही सच्ची भक्ति है। केरल का विश्व को दिया गया सबसे बड़ा योगदान आदि शंकराचार्य और श्री नारायण गुरु हैं, जिनके विचार आज भी मानवता को प्रेरित कर रहे हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में तीर्थयात्रा केवल पर्यटन नहीं, बल्कि आत्मिक और सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है। शिवगिरी इस सोच का सशक्त उदाहरण है। केंद्र सरकार की योजनाओं जैसे प्रसाद योजना, वंदे भारत ट्रेनों और बेहतर कनेक्टिविटी के माध्यम से तीर्थस्थलों के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जा रहा है, जिससे देश में एकता और सद्भाव को बढ़ावा मिल रहा है।
अपने संबोधन के अंत में उपराष्ट्रपति ने विशेष रूप से युवाओं से अपील की कि वे श्री नारायण गुरु की शिक्षाओं से प्रेरणा लें और समानता, भाईचारे और न्याय जैसे संवैधानिक मूल्यों को अपनाएं। उन्होंने विश्वास जताया कि शिवगिरी से मिलने वाला यह ज्ञान भारत को सामाजिक न्याय, गरिमा और सार्वभौमिक भाईचारे की दिशा में आगे ले जाएगा।
इससे पहले उपराष्ट्रपति ने शिवगिरी मठ में श्री नारायण गुरु की समाधि पर प्रार्थना कर श्रद्धांजलि अर्पित की। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने श्री नारायण गुरु के जीवन और दर्शन पर आधारित चार पुस्तकों का विमोचन भी किया।