क्या उडुपी रामचंद्र राव और यशपाल ने एक ही दिन दुनिया को अलविदा कहा?

सारांश
Key Takeaways
- उडुपी रामचंद्र राव ने भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट का प्रक्षेपण किया।
- यशपाल ने विज्ञान को जन जन तक पहुंचाने के लिए कई कार्यक्रमों का संचालन किया।
- दोनों वैज्ञानिकों ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई दिशा दी।
- उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
- उनका योगदान आज भी प्रेरणादायक है।
नई दिल्ली, 23 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। आज भारत अंतरिक्ष विज्ञान में नए आयाम छू रहा है, और इसके पीछे हैं भारतीय वैज्ञानिकों की लगन, मेहनत और दूरदर्शिता। इन वैज्ञानिकों के प्रयासों ने न केवल अंतरिक्ष में भारत का मान बढ़ाया है, बल्कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को वैश्विक पहचान भी दिलाई है। आज हम उन दो महान वैज्ञानिकों के बारे में चर्चा करेंगे, जिन्होंने 24 जुलाई, 2017 को इस धरती को अलविदा कहा, लेकिन अपने अमूल्य योगदान से भारत को सदैव प्रेरित किया।
उडुपी रामचंद्र राव और यशपाल भारत के दो अविस्मरणीय वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान दिया। उडुपी रामचंद्र राव को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का एक प्रमुख स्तंभ माना जाता है। उन्होंने इसरो को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहीं, यशपाल ने वैज्ञानिक अनुसंधान में ही नहीं, बल्कि शिक्षा और विज्ञान संचार के क्षेत्र में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी। दोनों ने अपने कार्यों से भारत को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
उडुपी रामचंद्र राव का जन्म 10 मार्च, 1932 को कर्नाटक के उडुपी में हुआ। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और मैसूर विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की और बाद में अमेरिका के एमआईटी से पीएचडी की। 1960 में अपने करियर की शुरुआत के बाद से, रामचंद्र राव ने भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे इसरो के उपग्रह केंद्र के पहले निदेशक बने और 1976 से 1984 तक उपग्रह प्रौद्योगिकी के विकास में अग्रणी रहे। 1972 में भारत में उपग्रह प्रौद्योगिकी की नींव रखने की जिम्मेदारी संभाली। उनके कुशल मार्गदर्शन में 1975 में भारत का पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ सहित 18 से अधिक उपग्रहों का डिजाइन और प्रक्षेपण किया गया, जो संचार, सुदूर संवेदन, और मौसम विज्ञान सेवाओं के लिए समर्पित थे।
रामचंद्र राव ने 1984 से 1994 तक इसरो के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। उनके कार्यकाल में इसरो ने कई ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल कीं। 1984 में अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव का कार्यभार संभालने के बाद, उन्होंने रॉकेट प्रौद्योगिकी के विकास को तेज किया। इसके परिणामस्वरूप, एएसएलवी रॉकेट और परिचालनात्मक पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) का सफल प्रक्षेपण हुआ, जो ध्रुवीय कक्षा में 2 टन वजन वाले उपग्रहों को प्रक्षिप्त करने में सक्षम था।
उन्होंने इनसैट (संचार उपग्रह) और पीएसएलवी जैसे कार्यक्रमों को मजबूती प्रदान की, जो भारत के अंतरिक्ष मिशनों की रीढ़ बने। उनके प्रयासों ने चंद्रयान-1 जैसे महत्वाकांक्षी मिशनों की नींव रखी, जिसने चंद्रमा पर पानी की खोज में योगदान दिया।
रामचंद्र राव ने भारत को स्वदेशी रॉकेट और उपग्रह प्रौद्योगिकी विकसित करने में सक्षम बनाया, जिससे भारत अंतरिक्ष अनुसंधान में आत्मनिर्भर हुआ। उनके योगदान के लिए 1976 में पद्म भूषण और 2017 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार प्राप्त हुए, जिनमें नासा का डिस्टिंग्विश्ड सर्विस मेडल शामिल है। 24 जुलाई 2017 को बेंगलुरु में उनका निधन हो गया।
वैज्ञानिक यशपाल का जन्म 26 नवंबर, 1926 को झांग (पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक शहर) में हुआ। यशपाल ने पंजाब यूनिवर्सिटी से 1949 में फिजिक्स में मास्टर्स किया और 1958 में उन्होंने मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से फिजिक्स में पीएचडी की।
यशपाल ने अपने करियर की शुरुआत मुंबई के टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान से की, जहां उन्होंने कॉस्मिक किरणों और उच्च-ऊर्जा भौतिकी में महत्वपूर्ण शोध किया। 1973 में वे अहमदाबाद स्थित अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के पहले निदेशक नियुक्त हुए, जहां उन्होंने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों को बढ़ावा दिया। इसके बाद, उन्होंने 1983-84 तक योजना आयोग में मुख्य सलाहकार और 1984-86 तक विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग में सचिव के रूप में कार्य किया। इसके अलावा, 1986 से 1991 तक वे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे।
यशपाल की गिनती भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के 'जनक' में होती है। उन्होंने विज्ञान को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए दूरदर्शन पर 'टर्निंग पॉइंट' जैसे प्रोग्राम को होस्ट किया, जिसने विज्ञान को रोचक और समझने योग्य बनाया। इसके अलावा, वे 'भारत की छाप' जैसे अन्य टीवी विज्ञान कार्यक्रमों के सलाहकार मंडल के सदस्य भी रहे, जिसके जरिए उन्होंने वैज्ञानिक चेतना को व्यापक स्तर पर प्रसारित किया।
यशपाल को 1976 में पद्म भूषण और 2010 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए। 24 जुलाई 2017 को नोएडा में उनका निधन हुआ।