क्या भाद्रपद की अजा एकादशी पर त्रिपुष्कर का उत्तम योग है, और श्री हरि को कैसे करें प्रसन्न?

सारांश
Key Takeaways
- अजा एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण है।
- त्रिपुष्कर योग से सफलता प्राप्त होती है।
- भगवान विष्णु की पूजा विधि का पालन करें।
- दान-पुण्य का विशेष महत्व है।
- इस दिन का व्रत मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है।
नई दिल्ली, 18 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी, जिसे अजा एकादशी या अन्नदा एकादशी के नाम से जाना जाता है, 19 अगस्त को मनाई जाएगी। दृक पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि 18 अगस्त को शाम 5:22 बजे से शुरू होकर 19 अगस्त को दोपहर 3:32 बजे तक रहेगी। इस दिन उत्तम त्रिपुष्कर योग का विशेष महत्व है।
इस दिन सूर्योदय सुबह 5:52 बजे होगा और सूर्यास्त शाम 6:57 बजे होगा। चंद्रमा मिथुन राशि में स्थित रहेगा और आर्द्रा नक्षत्र 20 अगस्त को प्रातः 1:07 बजे तक रहेगा। राहुकाल दोपहर 3:40 बजे से 5:19 बजे तक रहेगा। इस दिन का त्रिपुष्कर योग इसे और भी शुभ बनाता है।
अजा एकादशी का विशेष महत्व है, क्योंकि यह भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। यह माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि अजा एकादशी का व्रत अश्वमेध यज्ञ के समान फल देता है। इसकी कथा में राजा हरिश्चंद्र का उल्लेख है, जिन्होंने इस व्रत के प्रभाव से अपने खोए हुए राज्य, पुत्र और पत्नी को पुनः प्राप्त किया था।
धर्म शास्त्रों में अजा एकादशी की पूजा विधि दी गई है। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को साफ कर पूर्व दिशा में भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पीले वस्त्र पर कलश रखें। फूल, फल, तुलसी, चंदन और घी का दीपक जलाएं।
भगवान श्री हरि को पंचामृत, जल से स्नान कराने के बाद जनेऊ पहनाएं और इत्र लगाएं। इसके बाद वस्त्र पहनाएं और चंदन-रोली लगाएं। पीले फूल, तुलसी आदि नारायण को अति प्रिय हैं। विधि-विधान से पूजन के बाद 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' और 'विष्णवे नम:' मंत्र का जप करें। विष्णु सहस्रनाम और भगवद्गीता का भी पाठ करें। निर्जला व्रत रखें और रात्रि में जागरण करें। अगले दिन द्वादशी पर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें और फिर व्रत का पारण करें।
त्रिपुष्कर योग एक शुभ योग है, जो कुछ नक्षत्रों, वार और तिथियों के संयोग से बनता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह योग कार्यों में तिगुनी सफलता प्रदान करता है। इस दिन शुरू किए गए कार्यों में स्थायी लाभ और समृद्धि मिलती है। इस योग में भगवान विष्णु की पूजा और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। अजा एकादशी और त्रिपुष्कर योग का संयोग इस दिन को अत्यंत फलदायी बनाता है।