क्या बॉक्सिंग एक खूनी खेल है, जिसमें बदलने पड़े नियम, आज ओलंपिक में दमखम दिखा रहा है?
सारांश
Key Takeaways
- बॉक्सिंग एक कॉम्बैट स्पोर्ट है जो ताकत, गति, धैर्य, और रणनीति का मिश्रण है।
- इस खेल की शुरुआत प्राचीन मिस्र में हुई थी।
- भारत ने बॉक्सिंग में कई ओलंपिक पदक जीते हैं।
- महिलाओं का इस खेल में भाग लेना अब सामान्य हो गया है।
- आधुनिक बॉक्सिंग नियमों ने खिलाड़ियों की सुरक्षा का ध्यान रखा है।
नई दिल्ली, 28 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। बॉक्सिंग, एक अत्यधिक लोकप्रिय कॉम्बैट स्पोर्ट, ने विश्वभर में अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है। इस खेल में दो खिलाड़ी बॉक्सिंग ग्लव्स पहनकर एक-दूसरे के साथ मुकाबला करते हैं, जिसमें शक्ति, गति, धैर्य और रणनीति का अद्भुत संयोजन होता है। निर्धारित समय के भीतर, बॉक्सर्स एक-दूसरे पर मुक्के मारकर अंक प्राप्त करते हैं। इस खेल का मुख्य उद्देश्य शारीरिक फिटनेस और आत्मविश्वास को बढ़ाना है।
इस खेल की शुरुआत लगभग 3,000 ईसा पूर्व प्राचीन मिस्र में हुई थी। यहां की प्रारंभिक कलाकृतियों में मुक्केबाजी का उल्लेख किया गया है। धीरे-धीरे, यह खेल कई सदियों में विकसित होता गया।
लगभग 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व में यूनानियों ने इस खेल को प्राचीन ओलंपिक में समाहित किया। उस समय यह एक खूनी खेल बन गया था, जिसमें धातु से जड़े चमड़े के दस्ताने का प्रयोग किया जाता था।
18वीं शताब्दी में, ब्रिटेन में मुक्केबाजी का आयोजन शुरू हुआ, जिसमें विजेताओं को इनाम के रूप में पैसे प्रदान किए जाते थे।
साल 1743 में, जैक ब्रॉटन ने आधुनिक बॉक्सिंग के लिए पहले नियम स्थापित किए। साल 1867 में, क्वींसबेरी नियमों के तहत आधुनिक बॉक्सिंग को परिभाषित किया गया, जिसमें दस्तानों के उपयोग को अनिवार्य बनाया गया। इसके साथ ही, मुक्केबाजों की सुरक्षा का भी ध्यान रखा गया। साल 1880 में पहली बार आधिकारिक बॉक्सिंग चैंपियनशिप का आयोजन हुआ।
आखिरकार, 1904 में, इस खेल को आधुनिक ओलंपिक में शामिल किया गया, लेकिन 1912 में इसे ओलंपिक से बाहर रखा गया। इसके पश्चात, यह खेल हर ओलंपिक में शामिल होता रहा।
भारत में भी मुक्केबाजी का एक प्राचीन इतिहास है। महाभारत में इससे मिलते-जुलते युद्ध का वर्णन मिलता है। साल 1949 में इंडियन एमेच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन की स्थापना की गई, लेकिन इससे एक वर्ष पहले ही 1948 ओलंपिक खेलों में भारत ने बॉक्सिंग के इवेंट में भाग लिया था।
भारत में पहली राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप 1950 में मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम में आयोजित की गई थी। बाबू लाल, मुक्केबाजी में भारत को पहला ओलंपिक पदक दिलाने वाले खिलाड़ी थे।
1970 के दशक में, महिलाओं ने भी इस खेल को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था, लेकिन महिलाओं की मुक्केबाजी को ओलंपिक में स्थान प्राप्त करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। अंततः, 2012 लंदन ओलंपिक में पहली बार महिला बॉक्सर्स रिंग में उतरीं। मैरी कॉम भारत को मुक्केबाजी में ओलंपिक पदक दिलाने वाली पहली महिला हैं।
भारतीय मुक्केबाज ओलंपिक में अपनी पहचान बना चुके हैं। भारतीय मुक्केबाजों का ओलंपिक भविष्य बहुत उज्ज्वल दिखता है। प्रतिभाशाली खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार मजबूत प्रदर्शन कर रहे हैं। अत्याधुनिक ट्रेनिंग सुविधाएं, विदेशी कोचिंग और सरकार का समर्थन बढ़ने से भारत पदकों के दावेदार के रूप में उभर रहा है। ऐसे में आगामी ओलंपिक में इस खेल में भारत के पदकों की संख्या बढ़ने की संभावना है।