क्या दलेर मेहंदी ने 11 साल की उम्र में घर से भागकर एक नई कहानी लिखी?

सारांश
Key Takeaways
- दलेर मेहंदी का जन्म 18 अगस्त 1967 को हुआ।
- 11 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ा।
- उनका सबसे प्रसिद्ध गाना 'तुनक तुनक तुन' है।
- उन्होंने कई विवादों का सामना किया, लेकिन हार नहीं मानी।
- दलेर ने बॉलीवुड में भी गाने गाए हैं।
मुंबई, 17 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। दलेर मेहंदी भारतीय पॉप संगीत के एक लोकप्रिय नाम हैं। पंजाबी संगीत में फ्यूजन का अनोखा तड़का लगाने और साधारण शब्दों को संगीत में पिरोने की उनकी बेजोड़ कला उन्हें खास बनाती है। गायक का जन्मदिन 18 अगस्त को है और उनकी गायकी, अद्वितीय शैली और ऊर्जा ने उन्हें म्यूजिक इंडस्ट्री में एक विशेष स्थान दिलाया है। 'तुनक तुनक तुन' और 'हो जाएगी बल्ले-बल्ले' जैसे गाने आज भी शादियों में धूम मचाते हैं। ऐसे समारोहों में जब ये गाने बजते हैं, तो सभी थिरकने पर मजबूर हो जाते हैं। हालांकि, इस चमक-दमक के पीछे की कहानी उतनी ही संघर्षपूर्ण है।
11 वर्ष की आयु में घर से भागने से लेकर जेल की सलाखों तक, दलेर की जीवन यात्रा किसी प्रेरणादायक कथा से कम नहीं है।
दलेर मेहंदी का जन्म 18 अगस्त 1967 को पंजाब के पटियाला में हुआ था। संगीत के प्रति उनका लगाव बचपन से ही था। उन्होंने बचपन में ही गुरबानी और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली, लेकिन 11 साल की उम्र में उनका विद्रोही स्वभाव उभरा। उन्होंने घर छोड़कर लुधियाना में एक तबला वादक के साथ रहना शुरू कर दिया। यह उनके जीवन का पहला महत्वपूर्ण कदम था, जिसने उन्हें संगीत की दुनिया में प्रवेश दिलाया।
1990 के दशक में दलेर ने भांगड़ा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। 1995 में उनका एल्बम 'बोलो तारा रा' सुपरहिट रहा, लेकिन असली पहचान उन्हें 1997 में 'तुनक तुनक तुन' से मिली। यह गाना न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में लोकप्रिय हुआ और आज भी डांस ट्रैक की टॉप लिस्ट में स्थान रखता है।
एक इंटरव्यू में दलेर ने इस गाने के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि उनकी माँ उन्हें 'तुनक तुनक' गुनगुनाते हुए सुनाया करती थीं। जब उन्होंने एक डायरेक्टर को बताया कि यह गाना उनकी माँ की देन है, तो उसने कहा, 'फिर इसमें आपका योगदान क्या है?' और उन्हें घमंडी कह दिया।
दलेर ने उस आलोचना को नजरअंदाज करते हुए अपने मेहनत से इस गाने को विश्वभर में मान्यता दिलाई।
दलेर की पेशेवर जिंदगी जितनी रंगीन रही, उनकी निजी जिंदगी उतनी ही विवादों में घिरी रही। 2003 में उन पर कबूतरबाजी का आरोप लगा, जिसके चलते उन्हें कुछ रातें जेल में बितानी पड़ीं। हालाँकि, बाद में वह बरी हो गए, लेकिन इस घटना ने उनकी छवि को प्रभावित किया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, बल्कि अपने प्रयासों से फिर से अपने करियर को नया मोड़ दिया। उन्होंने बॉलीवुड में 'रंग दे बसंती' और 'मिर्जया' जैसी फिल्मों में गाने गाकर अपनी कला का जादू फिर से बिखेरा।