क्या विवादित ढांचे पर नरसिम्हा राव का रुख अस्पष्ट था? राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे का दावा

सारांश
Key Takeaways
- राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे का बयान मुद्दे पर नई बहस को जन्मा सकता है।
- नरसिम्हा राव की पूजा के अर्थ को लेकर विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं।
- विवादित ढांचे का मामला भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
नांदेड़, १५ जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने बताया कि अयोध्या में विवादित ढांचे के गिरने के समय, जब शरद पवार नरसिम्हा राव से मिलने गए थे, तब वह पूजा कर रहे थे। इस पूजा के संदर्भ में दो अलग-अलग अर्थ निकाले जा सकते हैं। या तो राव ईश्वर से ढांचे को बचाने की प्रार्थना कर रहे थे या फिर इसके गिरने की।
बागडे ने आगे कहा कि इस पूजा का संदर्भ दो अर्थों में समझा जा सकता है। एक यह है कि भगवान मस्जिद को बचाएं और दूसरा यह कि भगवान इसे गिरने दें। हरिभाऊ बागडे ने महाराष्ट्र के नांदेड़ में आयोजित डॉ. शंकरराव चव्हाण की पुण्यतिथि और कुसुमताई चव्हाण स्मृती पुरस्कार के अवसर पर ये बातें कहीं।
राजस्थान के राज्यपाल ने कहा, "१९९२ में विवादित ढांचे के गिरने से पहले मैं अयोध्या गया था और यह बात उस समय के सभी अखबारों में छपी थी। मैं एक समिति का सदस्य होने के नाते वहां गया था और मैंने वहां सब कुछ अंदर से देखा था। उस समय रामलला की मूर्ति पहले से स्थापित थी। लेकिन जब शंकरराव चव्हाण वहां गए थे, तो वहां पर रामलला की मूर्ति नहीं थी। स्वाभाविक रूप से उन्होंने पूछा कि यहां मस्जिद कहां है? तो लोगों ने उन्हें बताया कि यहां पर मस्जिद नहीं है। केवल ये तीन गुंबद हैं और यही लोग मस्जिद मानते हैं।"
विवादित ढांचे को गिराए जाने का जिक्र करते हुए हरिभाऊ बागडे ने कहा, "१९९२ में गुंबद गिरा और इतिहास इसी तरह से बनता है। अगर १९९२ का इतिहास नहीं बदलता तो रामलला का मंदिर नहीं बन पाता। आज हम रामलला का भव्य मंदिर नहीं देख पाते। फिर भी कुछ का मानना है कि इसमें किसी की गलती नहीं थी। नरसिम्हा राव ने अपने मंत्रिमंडल में कहा था कि उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की भाजपा सरकार थी। अगर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाता, तो मस्जिद को बचाना संभव हो सकता था। लेकिन कुछ मंत्रियों, जैसे शरद पवार, ने इसका विरोध किया और राष्ट्रपति शासन की बजाय अन्य उपायों की बात की।"
उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का उल्लेख करते हुए कहा, "१९९२ में विवादित ढांचे के मुद्दे पर कुछ नेताओं ने कहा था कि राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद ३५६) लगाने की आवश्यकता नहीं है। यह बात किस संदर्भ में कही गई, यह स्पष्ट नहीं है, क्योंकि उनके शब्दों के कई अर्थ हो सकते हैं। फैसला उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार और तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर निर्भर था। कल्याण सिंह ने कहा था कि वे गोली नहीं चलवाएंगे। उस समय शरद पवार, तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से मिलने गए तो वह पूजा कर रहे थे। इसका दो अर्थ निकाला जा सकता है। एक तो यह कि भगवान मस्जिद को बचाए, और दूसरा यह कि भगवान उसे गिरने दे। इसका हम दोनों तरफ से मतलब निकाल सकते हैं।