क्या जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने 'वंदे मातरम' को अनिवार्य करने का विरोध किया?

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क्या जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने 'वंदे मातरम' को अनिवार्य करने का विरोध किया?

सारांश

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने 'वंदे मातरम' के अनिवार्य गाए जाने का विरोध किया है। मौलाना मदनी ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया। जानिए इस विवाद के पीछे के तथ्य और संविधान की धारा 25 का महत्व।

Key Takeaways

  • वंदे मातरम का गाना धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
  • मौलाना मदनी ने संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला दिया।
  • सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों में धार्मिक विश्वासों का सम्मान आवश्यक है।

नई दिल्ली, 8 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने विभिन्न राज्यों के ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों द्वारा सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों में ‘वंदे मातरम’ के गाने को अनिवार्य करने और उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भेजने के निर्देशों की कड़ी निंदा की है। उन्होंने इसे संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) का स्पष्ट उल्लंघन बताया।

मौलाना मदनी ने कहा कि यह कदम अत्यधिक चिंताजनक है और यह मुस्लिम समुदाय की आस्थाओं पर हमला कर रहा है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘वंदे मातरम’ की रचना बैंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित उपन्यास ‘आनंदमठ’ में है, जो पूरी तरह से शिर्कीय अकीदे पर आधारित है। विशेष रूप से इसके चार शेष पदों में मातृभूमि को देवी दुर्गा के रूप में चित्रित किया गया है, जो एकेश्वरवादी इस्लाम की मूल भावना के खिलाफ है।

मौलाना ने कहा कि मुसलमान केवल एक ईश्वर की इबादत करते हैं, इसलिए ऐसे गीत का गाना उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है। मौलाना ने संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का हवाला देते हुए कहा कि किसी को भी अपनी आस्था के विरुद्ध कोई गीत या नारा गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने निर्णयों में स्पष्ट किया है कि किसी भी व्यक्ति को धार्मिक विश्वासों के खिलाफ गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। 26 अक्टूबर 1937 को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर सलाह दी थी कि ‘वंदे मातरम’ के केवल पहले दो पदों को ही राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया जाए, क्योंकि शेष पद एकेश्वरवादी धर्मों से टकराते हैं।

उसी सलाह पर 29 अक्टूबर 1937 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने निर्णय लिया कि केवल दो पदों को ही मान्यता दी जाएगी।

Point of View

यह कहना उचित है कि धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करना आवश्यक है। शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे कदमों से सामाजिक समरसता को चुनौती मिलती है, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर समुदाय की आस्था का सम्मान किया जाए।
NationPress
08/11/2025

Frequently Asked Questions

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने 'वंदे मातरम' के खिलाफ क्यों विरोध किया?
जमीयत उलेमा-ए-हिंद का मानना है कि 'वंदे मातरम' का गाना मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
क्या सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर कोई निर्णय दिया है?
हां, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी को भी धार्मिक विश्वासों के खिलाफ गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।