क्या ऐसा अत्याचार अंग्रेजों ने भी किया था? आपातकाल का दंश झेल चुके लोग बोले

सारांश
Key Takeaways
- आपातकाल के दौरान कई लोगों को अत्याचार सहने पड़े।
- कई परिवारों का भविष्य बर्बाद हुआ।
- सरकार से अपील है कि वे प्रभावित लोगों की मदद करें।
- इस घटना ने भारतीय लोकतंत्र को गहरा प्रभावित किया।
- आपातकाल के खिलाफ आंदोलन को आजादी की दूसरी लड़ाई माना जाता है।
नई दिल्ली, २५ जून (राष्ट्र प्रेस)। आपातकाल का dhan झेल चुके लोगों ने इसके ५० साल पूरे होने पर अपने कड़वे अनुभव साझा किए। उन्होंने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि ऐसा अत्याचार तो अंग्रेजों ने भी नहीं किया था, जैसा कांग्रेस ने किया। पांच दशक बीत जाने के बाद भी जब हम उन दिनों को याद करते हैं, तो रूह कांप जाती है.
आपातकाल की पीड़ा सह चुके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सदस्य जय भारत ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि आज आपातकाल को ५० साल हो चुके हैं। आज भी आपातकाल के दृश्य मेरे मन में ताजा हैं। तत्कालीन सरकार की यातनाएं याद कर मेरी रूह कांप जाती है। जब आपातकाल लागू हुआ, तब मैं १८ साल का था। मुझे सत्याग्रह में शामिल होने के लिए कहा गया और हम जेल में भेज दिए गए। वहां मुझे बहुत यातनाएं सहनी पड़ीं। पुलिस ने बहुत क्रूरता की, जिसके कारण मुझे अपना हाथ कटवाना पड़ा और मेरी नौकरी भी चली गई।
उन्होंने बताया कि इसीलिए वह जीवन भर संघर्ष करते रहे। हमारी सरकार से अपील है कि वो हमारे लिए कुछ करे। जिस प्रकार सरकार ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करने वालों के लिए कई कदम उठाए थे, वैसे ही हमारी सरकार से मांग है कि वो हमारे बारे में भी सोचे। आपातकाल के कारण कई परिवार तबाह हुए, कई लोगों की जिंदगी बर्बाद हो गई और कई बच्चों की पढ़ाई अधूरी रह गई। आपातकाल के खिलाफ आंदोलन को आजादी की दूसरी लड़ाई माना जा सकता है।
एक अन्य पीड़िता ने कहा कि इतने वर्षों बाद भी जब मैं उन दिनों को याद करती हूं, तो मेरी रूह कांप जाती है। इंदिरा गांधी ने सत्ता के दुरुपयोग करते हुए आपातकाल लगाया। कांग्रेस ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया। मैं यह पूछती हूं कि क्या इस देश में कोई और सक्षम व्यक्ति नहीं था, जो शासन कर सके? निश्चित रूप से था, लेकिन इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र को ताक पर रख दिया।
सुधीर मदान ने कहा कि इससे बुरा समय कभी नहीं आया। वह काला दिन था, जब कोई एक-दूसरे से बात नहीं करता था। मैं १९ महीने जेल में रहा, जहां खाने की भी समस्या थी। मेरी कार बिक गई और मेरे घर की स्थिति भी खराब हो गई। जेल में हालत बहुत खराब थी, कई लोग तड़प-तड़प कर मरे।
राजन डीगरा ने कहा कि समाज को पता होना चाहिए कि आपातकाल के दौरान क्या हुआ। प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई, जो सरकार के खिलाफ बोलता था, उस पर रोक लगाई जाती थी। यह सब कुछ जबरन किया गया। आपातकाल के दौरान कई लोग दिव्यांग हो गए।
मैं कहूंगा कि ऐसा अत्याचार तो अंग्रेजों ने भी नहीं किया था, जैसा कांग्रेस ने किया। कई विद्यार्थियों का भविष्य बर्बाद हुआ। आज भी हम सरकार की नजर में राष्ट्रद्रोही हैं। हमारी सरकार से अपील है कि वह हमारे ऊपर लगे इस राष्ट्रद्रोह के धब्बे को मिटाए।