क्या 'विकसित भारत-जी राम जी' बिल से रोजगार और इंफ्रास्ट्रक्चर को मिलेगा बढ़ावा? प्रह्लाद जोशी का बयान
सारांश
Key Takeaways
- विकसित भारत-जी राम जी बिल का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण भारत को सशक्त बनाना है।
- रोजगार के अवसर 100 से बढ़ाकर 125 दिन किए गए हैं।
- केंद्र और राज्य सरकार की हिस्सेदारी 60:40 होगी।
- काम नहीं मिलने पर भत्ता देने का प्रावधान है।
- ग्रामीण बुनियादी ढांचे में सुधार का लक्ष्य है।
नई दिल्ली, 21 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 'विकसित भारत-जी राम जी' बिल के संबंध में कांग्रेस के आरोपों को पूरी तरह से निराधार बताया है। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि कांग्रेस और कुछ अन्य लोग यह गलत प्रचार कर रहे हैं कि यह बिल प्रगतिशील नहीं है और इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर घटेंगे। यह दावा पूरी तरह से झूठ है।
प्रह्लाद जोशी ने स्पष्ट किया कि 'विकसित भारत-जी राम जी' बिल का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण भारत को सशक्त बनाना है। यह योजना न केवल रोजगार के अवसर बढ़ाएगी, बल्कि ग्रामीण बुनियादी ढांचे को भी सुधारने का कार्य करेगी। इस बिल के तहत रोजगार के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 दिन कर दी गई है, जिससे गांवों में निवास करने वाले लोगों को अधिक काम और आय मिल सकेगी।
केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि 125 दिनों के रोजगार के अवसर मिलने से गांवों से शहरों की ओर होने वाला पलायन कम होगा। उन्होंने आश्वासन दिया कि प्रत्येक कार्य पर संबंधित अधिकारी नजर रखेंगे, ताकि पारदर्शिता बनी रहे और योजनाओं का लाभ सही लोगों तक पहुंचे।
प्रह्लाद जोशी ने पूर्ववर्ती योजनाओं पर सवाल उठाते हुए कहा कि अब तक मनरेगा में दो लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश हुआ है, लेकिन इसके बावजूद ठोस बुनियादी ढांचा स्थापित नहीं हो सका है।
उन्होंने बताया कि वर्तमान सरकार की मंशा स्पष्ट है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत बुनियादी ढांचा तैयार किया जाए और लोगों को अपने गांवों में ही रोजगार उपलब्ध कराएं ताकि उन्हें पलायन न करना पड़े।
'विकसित भारत-जी राम जी' बिल के अंतर्गत हर ग्रामीण परिवार को कम से कम 125 दिन का काम दिया जाएगा। रोजगार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के माध्यम से दिया जाएगा। मजदूरी पर होने वाले खर्च में केंद्र और राज्य सरकार की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में होगी। वहीं, पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए यह अनुपात 90:10 रखा गया है। विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेशों में पूरी लागत केंद्र सरकार वहन करेगी।
इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति काम मांगने के 15 दिनों के भीतर रोजगार नहीं पाता है, तो उसे भत्ता दिया जाएगा, जिसका पूरा खर्च सरकार उठाएगी। योजना में 60 दिनों की 'नो वर्क' विंडो का भी प्रावधान किया गया है।