क्या महंत दिग्विजयनाथ का जीवन लोक कल्याण के लिए समर्पित था?

सारांश
Key Takeaways
- महंत दिग्विजयनाथ का जीवन लोक कल्याण के प्रति समर्पित था।
- उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने का कार्य किया।
- उनका योगदान आज भी प्रेरणा देता है।
- वे अयोध्या में श्रीराम मंदिर आंदोलन के महत्वपूर्ण नेता थे।
- महंत जी का दृष्टिकोण और विचार आज भी प्रासंगिक हैं।
गोरखपुर, 9 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 56वीं पुण्यतिथि के अवसर पर एवं आश्विन कृष्ण चतुर्थी पर 11 सितंबर (गुरुवार) को ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ महाराज की 11वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में किया जाएगा। यह पुण्य स्मरण कार्यक्रम गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में आयोजित होगा, जहां देशभर के प्रमुख संतजन उपस्थित रहेंगे।
पुण्यतिथि समारोह के इस अवसर पर यह जानना महत्वपूर्ण है कि महंत दिग्विजयनाथ को युगपुरुष क्यों कहा जाता है। भले ही उनका भौतिक अस्तित्व न हो, लेकिन उनका व्यक्तित्व अपने कार्यों और विचारों से आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करता है। इसलिए वे सही मायने में युगपुरुष हैं।
वर्ष 1935 से 1969 तक नाथपंथ के इस प्रसिद्ध पीठ के कर्ता-धर्ता रहे महंत दिग्विजयनाथ की 56वीं पुण्यतिथि बुधवार (आश्विन कृष्ण तृतीया) को है। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को श्रद्धा भाव से न केवल नमन किया जाता है, बल्कि उनके आदर्शों को अपनाने का संकल्प भी लिया जाता है। महंत जी ने न केवल गोरखनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप को आकार दिया, बल्कि उनका संपूर्ण जीवन राष्ट्र, धर्म, अध्यात्म, संस्कृति, शिक्षा और समाजसेवा के माध्यम से लोक कल्याण को समर्पित रहा।
महंत जी ने तरुणाई से ही देश की आजादी की लड़ाई में भाग लिया और स्वतंत्रता के बाद सामाजिक एकता एवं उत्थान के लिए काम किया। शैक्षिक जागरण पर उनका विशेष जोर था। उनके जन्म का वर्ष 1894 में वैशाख पूर्णिमा के दिन चित्तौड़, मेवाड़ ठिकाना ककरहवां (राजस्थान) में हुआ था। उनका बचपन का नाम नान्हू सिंह था।
महंत दिग्विजयनाथ का आगमन गोरखपुर के नाथपीठ में 1899 में हुआ। उनकी शिक्षा गोरखपुर में ही हुई और उन्हें खेलों से गहरा लगाव था। 15 अगस्त 1933 को गोरखनाथ मंदिर में उनकी योग दीक्षा हुई और 15 अगस्त 1935 को वह इस पीठ के पीठाधीश्वर बने।
महंत जी ने अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1934 से 1949 तक उन्होंने इस आंदोलन को नई ऊंचाई दी। उन्होंने 22-23 दिसंबर 1949 को रामलला की मूर्ति प्रकट होने से पहले अखंड रामायण का पाठ शुरू किया, और स्वयं वहां उपस्थित थे।
महंत दिग्विजयनाथ के नेतृत्व में हुए आंदोलनों की नींव उनके शिष्य महंत अवेद्यनाथ ने रखी, और अब जब योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर हैं, तो अयोध्या के श्रीराम मंदिर का जिक्र करते हुए महंत दिग्विजयनाथ का नाम हमेशा याद किया जाएगा।
महंत जी ने शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की और गोरखपुर में शिक्षा की ज्योति जलाई।
उन्होंने 1949-50 में महाराणा प्रताप डिग्री कॉलेज की स्थापना की। महंत दिग्विजयनाथ की दूरदर्शिता और शिक्षा के प्रति उनके समर्पण ने गोरखपुर क्षेत्र में शिक्षा की क्रांति ला दी।
महंत जी ने राजनीति में भी गोरक्षपीठ की परंपरा को आगे बढ़ाया। 1937 में वह हिन्दू महासभा में शामिल हुए और 1944 में गोरखपुर में महासभा का ऐतिहासिक अधिवेशन कराया।
महंत जी का योगदान धर्म और सामाजिक एकता में अतुलनीय है। उन्होंने 1939 में अखिल भारतीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा की स्थापना की। 1967 में गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए। महंत जी 1969 में ब्रह्मलीन हुए, लेकिन उनके व्यक्तित्व और कार्यों की अमरता बनी हुई है।