क्या मोपला विद्रोह ने आंदोलन को नरसंहार में बदल दिया था?

सारांश
Key Takeaways
- मोपला विद्रोह ने सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दिया।
- इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ दिया।
- हजारों लोगों की जानें गईं और हिंदू-मुस्लिम संबंधों में दरार आई।
- यह विद्रोह खिलाफत आंदोलन से प्रेरित था।
- महात्मा गांधी ने इसे शुरू में समर्थन दिया लेकिन बाद में दूरी बना ली।
नई दिल्ली, 19 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कई घटनाएं ऐसी हैं, जिनका आरंभिक उद्देश्य भले ही नेक रहा हो, लेकिन उनके परिणाम इतिहास के पन्नों में एक काले अध्याय के रूप में अंकित हो गए हैं। 104 वर्ष पूर्व 20 अगस्त 1921 को केरल के मालाबार क्षेत्र में शुरू हुआ मोपला विद्रोह इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
यह विद्रोह ब्रिटिश शासन और जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ प्रारंभ हुआ था, लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि यह विद्रोह जल्द ही एक भयावह सांप्रदायिक नरसंहार में बदल जाएगा। इस विद्रोह के कारण अनगिनत लोगों की जानें गईं। हालात यह थे कि धार्मिक स्थलों को भी निशाना बनाया गया।
मोपला विद्रोह को मोपला नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है। यह विद्रोह आरंभ में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और स्थानीय जमींदारों के खिलाफ था, जो खिलाफत आंदोलन से प्रेरित था। हालांकि, यह जल्दी ही सांप्रदायिक हिंसा में बदल गया, जिसमें सैकड़ों निर्दोषों की हत्या, लूटपाट, और महिलाओं के साथ अत्याचार किए गए।
इस घटना का उल्लेख डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुस्तक 'पाकिस्तान और द पार्टिशन ऑफ इंडिया' में भी मिलता है, जिसमें उन्होंने इस विद्रोह की आड़ में हुई क्रूरता और सांप्रदायिक प्रकृति पर प्रकाश डाला है। उन्होंने लिखा कि इस घटना से पूरे दक्षिण भारत में हर विचारधारा के हिंदुओं में भय और आक्रोश की लहर फैल गई थी।
विद्रोह की शुरुआत अंग्रेजी शासन के पुलिस थानों पर हमले और उन्हें जलाने से हुई। यह हिंसा धीरे-धीरे बढ़ती गई और लोगों को जिंदा जलाने तक पहुंच गई। जहां तक नजर जाती, वहां खून से सनी जमीन और लाशों के ढेर ही दिखाई देते थे। इतिहासकारों ने इस नरसंहार को 'मोपला विद्रोह' का नाम दिया, जबकि कुछ ने इसे 'किसान विद्रोह' कहा। इसे 'मप्पिला दंगा' के नाम से भी जाना जाता है।
सी. गोपालन नायर ने अपनी पुस्तक 'द मोपला रिबेलियन' में मोपला विद्रोह के कारणों का विस्तार से उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि वरियामकुनाथ कुंजाहमद हाजी ने 1921 के मोपला विद्रोह में अहम भूमिका निभाई थी। वे उन तीन प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिन्होंने इस आंदोलन को धार्मिक रंग दिया।
बताया जाता है कि मोपला विद्रोह 1921 में मालाबार के एरनद और वल्लुवानद तालुका में शुरू हुआ था। मोपला (मप्पिला) समुदाय, जो मुख्य रूप से मुस्लिम थे, और स्थानीय जमींदार, जो ज्यादातर हिंदू थे, ब्रिटिश शासन के खिलाफ लंबे समय से असंतुष्ट थे। यह विद्रोह खिलाफत आंदोलन से प्रेरित था, जो तुर्की में खलीफा की सत्ता को बचाने के लिए शुरू हुआ था। जमींदारी प्रथा, भारी कर और सामाजिक-आर्थिक शोषण ने मोपला किसानों में असंतोष को बढ़ावा दिया।
अगस्त 1921 में मोपला किसानों ने ब्रिटिश अधिकारियों और जमींदारों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह शुरू किया। शुरुआत में यह विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ था, लेकिन जल्द ही यह सांप्रदायिक हिंसा में बदल गया। विद्रोहियों ने हिंदू जमींदारों और स्थानीय हिंदू समुदाय को निशाना बनाया, जिससे व्यापक हिंसा फैल गई।
शुरुआत में इस आंदोलन को महात्मा गांधी और अन्य भारतीय नेताओं का समर्थन प्राप्त था, लेकिन जैसे ही यह हिंसक रूप लेने लगा, उन्होंने इससे दूरी बना ली।
कई इतिहासकारों का मानना है कि मप्पिला क्षेत्र में किसानों और जमींदारों के बीच बार-बार संघर्ष हुए। 19वीं और 20वीं सदी में इन जमींदारों को ब्रिटिश सरकार का समर्थन प्राप्त था। 1921 के अंत तक अंग्रेजों ने इस विद्रोह को पूरी तरह दबा दिया था, लेकिन तब तक भारी नुकसान हो चुका था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन दंगों में 10,000 से अधिक हिंदुओं की हत्या की गई। विद्रोह के दौरान सैकड़ों हिंदुओं की हत्या की गई, उनके घर और मंदिर लूटे गए और जलाए गए। हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार और अन्य अत्याचारों की घटनाएं भी दर्ज की गईं।
मोपला विद्रोह ने मालाबार क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम संबंधों को गहरा नुकसान पहुंचाया। इसने सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सांप्रदायिक मुद्दों को उजागर किया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस विद्रोह ने बाद में भारत के विभाजन की मांग को और मजबूत किया।