क्या है नागुला चौथी? जानें सर्प पूजा का महत्व और कथाएं
सारांश
Key Takeaways
- नागुला चौथी का पर्व कार्तिक मास में मनाया जाता है।
- इस दिन सर्पों की पूजा की जाती है।
- चींटियों की पहाड़ियों पर दूध चढ़ाने की परंपरा है।
- पौराणिक कथाएँ इस पर्व की गहराई को दर्शाती हैं।
- यह पर्व प्राकृतिक संरक्षण का प्रतीक है।
नई दिल्ली, २४ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदू धर्म में प्रकृति और इसके सभी जीवों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का विशेष महत्व है। गाय, कछुआ, सर्प आदि के पूजन का विशेष महत्व है। दक्षिण भारत में सर्प पूजा का त्यौहार मनाया जाता है, जिसे 'नागुला चौथी' कहा जाता है।
यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, जो दीपावली के चौथे दिन आता है। इस दिन कई लोग व्रत रखते हैं, जो अनंत, वासुकि और शेषनाग सहित १२ नागों को समर्पित किया जाता है। यह पर्व आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे दक्षिण भारत के प्रमुख राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जहाँ लोग नागदेवताओं की मूर्तियों की स्थापना कर पूजा करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि चीटियों की पहाड़ियों पर भी नाग देवताओं का निवास होता है। इस दिन लोग चींटियों की पहाड़ियों पर जाकर दूध चढ़ाते हैं और मिठाई अर्पित करते हैं।
नागुला चौथी से जुड़ी दो प्रमुख पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। पहली कथा के अनुसार, जब देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन किया, तब सर्पराज वासुकि को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया था। इस प्रक्रिया में हलाहल विष निकला, जिसे भगवान शिव ने समस्त संसार की रक्षा के लिए ग्रहण किया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा।
मान्यता है कि इस विष की एक बूंद धरती पर गिरी थी। इस विष के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए मानवजाति ने सर्पों की पूजा शुरू की, जिससे नागुला चौथी पर्व की शुरुआत हुई।
दूसरी पौराणिक कथा में राजा जन्मेजय और नाग देवताओं की कहानी है। कथा के अनुसार, राजा जन्मेजय ने नाग जाति के विनाश के लिए सर्पमेध यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ के प्रभाव से सभी सर्प और नाग यज्ञ की ओर खींचे चले आए थे। नागराज तक्षक ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए देवताओं से मदद मांगी। लेकिन यज्ञ की शक्ति इतनी प्रबल थी कि इंद्र सहित अन्य देवता भी यज्ञ की ओर खिंचने लगे थे।
भय से देवता और सर्पों ने ब्रह्माजी से सहायता मांगी, जिन्होंने मनसा देवी के पुत्र अस्तिका से सहायता लेने की सलाह दी। मनसा देवी की आज्ञा पर अस्तिका ने सर्पमेध यज्ञ को रोक दिया और सभी नागों व देवताओं की रक्षा की। यह घटना नाग चौथी के दिन हुई थी। तब से मनसा देवी ने आशीर्वाद दिया कि जो भी इस दिन सर्पों की पूजा करेगा और इस कथा का श्रवण करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।