क्या एनपीए पर सियासत का खेल जारी है: कांग्रेस ने कर्जदारों की सूची मांगी, भाजपा ने पारदर्शिता को बताया उपलब्धि का कारण?

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क्या एनपीए पर सियासत का खेल जारी है: कांग्रेस ने कर्जदारों की सूची मांगी, भाजपा ने पारदर्शिता को बताया उपलब्धि का कारण?

सारांश

क्या एनपीए पर सियासत का खेल जारी है? कांग्रेस ने कर्जदारों की सूची मांगी, जबकि भाजपा ने पारदर्शिता को अपनी सफलता का कारण बताया। जानें इस मुद्दे पर क्या हो रहा है और क्या है इसके पीछे की सच्चाई।

Key Takeaways

  • एनपीए दर में कमी बैंकिंग क्षेत्र की सफलता का संकेत है।
  • कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनीतिक आरोप जारी हैं।
  • बैंकों की पारदर्शी नीतियाँ वित्तीय स्थिरता में योगदान कर रही हैं।

नई दिल्ली, 23 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। बैंकिंग क्षेत्र में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में कमी से संबंधित वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट पर राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हैं। वित्त मंत्रालय ने संसद में बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सकल एनपीए दर 3 प्रतिशत से नीचे आ गई है। मार्च 2025 में यह दर 2.58 प्रतिशत दर्ज की गई।

हालांकि, इसके बाद कांग्रेस ने सवाल उठाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने सरकार से आग्रह किया है कि वह बैंकों से कर्ज लेने वाले व्यक्तियों की सूची प्रस्तुत करे।

मनीष तिवारी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "बुनियादी मुद्दा यह है कि जब से आईबीसी कानून लागू हुआ है, 2016 से 2019 के बीच बैंकों ने लोगों को बड़े कर्ज दिए हैं, और ये लोग कौड़ियों के दाम पर बच निकले हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "सरकार को बताना चाहिए कि पिछले 9-10 वर्षों में कितने ऐसे लोग हैं जिन्होंने बैंकों से कर्ज लिया और केवल 4-5 प्रतिशत राशि चुकाकर बाहर निकल गए, जिससे बैंकों को बड़ा नुकसान हुआ।"

इस मुद्दे पर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राजीव शुक्ला ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने संक्षेप में कहा, "एनपीए बहुत अधिक है। इससे छोटे लोग बहुत परेशान हैं।"

विपक्ष के आरोपों पर भारतीय जनता पार्टी के सांसद दामोदर अग्रवाल ने पलटवार किया। राष्ट्र प्रेस से बातचीत में उन्होंने कहा, "एनपीए कांग्रेस के शासन में 10 प्रतिशत था। कांग्रेस के राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कई ऐसे व्यक्तियों को कर्ज दिया गया था जो उसे चुकता नहीं कर सकते थे, जिससे बैंकों को वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा।"

भाजपा सांसद ने आगे कहा, "यह खुशी की बात है कि हाल के समय में केंद्र सरकार की पारदर्शी नीतियों के कारण और अनुचित दबाव से मुक्त होकर बैंकों ने योग्य व्यक्तियों को लोन दिया है। इसीलिए पहले 9 प्रतिशत से अधिक की एनपीए दर अब 3 प्रतिशत से कम है। यह सरकार की बैंकिंग क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है।"

Point of View

यह महत्वपूर्ण है कि हम इस एनपीए विवाद को एक व्यापक दृष्टिकोण से देखें। बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता केवल राजनीतिक बयानबाजियों से नहीं, बल्कि ठोस नीतियों से आती है। सभी पक्षों को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए और आम जनता के हित में काम करना चाहिए।
NationPress
23/07/2025

Frequently Asked Questions

एनपीए क्या है?
एनपीए का अर्थ है गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां, जो उस स्थिति को दर्शाता है जब किसी उधारकर्ता ने बैंकों को निर्धारित समय में भुगतान नहीं किया है।
कांग्रेस ने एनपीए के मुद्दे पर क्या कहा?
कांग्रेस ने सरकार से बैंकों से कर्ज लेने वाले व्यक्तियों की सूची मांगी और आरोप लगाया कि कई बड़े कर्जदार बिना चुकता किए बचे हैं।
भाजपा का एनपीए पर क्या कहना है?
भाजपा ने कहा है कि एनपीए की दर कांग्रेस सरकार के समय में 10 प्रतिशत थी, और वर्तमान में यह 3 प्रतिशत से भी कम है, जो केंद्र सरकार की पारदर्शी नीतियों का परिणाम है।