क्या रांची में सीआईपी की १४७ एकड़ भूमि पर अवैध कब्जा है? हाईकोर्ट ने केंद्र-राज्य से जवाब मांगा
सारांश
Key Takeaways
- हाईकोर्ट ने अधिकारियों की लापरवाही पर नाराजगी जताई।
- केंद्र और राज्य सरकार को चार सप्ताह में जवाब देना होगा।
- अगली सुनवाई २७ जनवरी को होगी।
- अतिक्रमण हटाने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है।
- सीआईपी की भूमि पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण की आशंका है।
रांची, २४ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड हाईकोर्ट ने रांची के कांके में स्थित केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (सीआईपी) की महत्वपूर्ण भूमि पर अतिक्रमण हटाने के मामले में केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों की निष्क्रियता पर गहरी नाराजगी व्यक्त की है।
मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने बुधवार को इस मामले में दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि यह चौंकाने वाला है कि सरकारी संपत्तियों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार अधिकारी नींद में रहे, और उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की पहल पर जागना पड़ा जो बिहार का निवासी है।
अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सीआईपी की भूमि से अतिक्रमण हटाने का यह मामला किसी अन्य अदालत या प्राधिकरण के समक्ष नहीं ले जाया जाएगा। मामले की अगली सुनवाई २७ जनवरी को निर्धारित की गई है। यह जनहित याचिका बिहार निवासी विकास उर्फ गुड्डू बाबा द्वारा दायर की गई है।
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने अपने १९ नवंबर २०२५ के पूर्व आदेश का हवाला दिया। कोर्ट ने बताया कि उक्त आदेश में सीआईपी की भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की गई थी और दो सप्ताह के भीतर सीमांकन कर आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए थे।
हालांकि, भूमि सुधार उप समाहर्ता द्वारा दाखिल शपथपत्र से यह सामने आया कि सीआईपी के वास्तविक कब्जे में केवल २२९.२९ एकड़ भूमि है, जबकि सीआईपी प्रबंधन के अनुसार संस्थान के नाम कुल ३७६.२२२ एकड़ भूमि दर्ज है।
इस तरह लगभग १४७ एकड़ भूमि का कोई स्पष्ट विवरण सामने नहीं आने से बड़े पैमाने पर अतिक्रमण की आशंका जताई गई।
कोर्ट ने इस स्थिति को गंभीर बताया और अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाए। अदालत ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि शपथपत्र में केवल सीआईपी के मुख्य गेट के पास से अतिक्रमण हटाने की जानकारी दी गई है, जबकि अन्य स्थानों पर हुए अतिक्रमण को लेकर कोई ठोस और स्पष्ट विवरण प्रस्तुत नहीं किया गया।
हाईकोर्ट ने इसे अपने आदेशों के पालन में गंभीर लापरवाही करार दिया और मामले को अत्यंत संवेदनशील बताते हुए सख्त रुख अपनाया।