क्या रास बिहारी बोस ने आजादी की नींव मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?

सारांश
Key Takeaways
- रास बिहारी बोस का जन्म 25 मई 1886 को हुआ।
- उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना की।
- उनकी पुण्यतिथि 21 जून है।
- उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व किया।
- रास बिहारी को भारत और जापान के बीच एक सेतु माना जाता है।
नई दिल्ली, 20 जून (राष्ट्र प्रेस)। रास बिहारी बोस एक अनोखे नेता थे, जिनकी संगठनात्मक क्षमता ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के बावजूद उन्होंने स्वतंत्रता की मशाल को हमेशा जलाए रखा। गदर क्रांति से लेकर आजाद हिंद फौज के गठन में उनका योगदान अद्वितीय है। कहा जा सकता है कि रास बिहारी बोस जैसे महान लोग भारत की स्वतंत्रता की आधारशिला हैं। मातृभूमि के प्रति उनका प्यार और समर्पण पूरे देश को प्रेरित करता है। 21 जून को महान स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस की पुण्यतिथि है।
रास बिहारी बोस का जन्म 25 मई 1886 को बंगाल के बर्धमान जिले में हुआ। इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने न केवल ब्रिटिश उपनिवेशवाद को चुनौती दी, बल्कि एक स्वतंत्र और अखंड भारत का सपना भी देखा। उनका नाम विशेष रूप से 1915 के बनारस षड्यंत्र और आजाद हिंद फौज की स्थापना से जुड़ा है, जिससे ब्रिटिश शासन की नींव हिल गई।
आजाद हिंद फौज को अक्सर सुभाष चंद्र बोस से जोड़ा जाता है, लेकिन इसकी वास्तविक स्थापना रास बिहारी बोस ने की। 1924 में जब रास बिहारी बोस ने 'भारतीय स्वतंत्रता लीग' की स्थापना की, उसी वर्ष सुभाष चंद्र बोस से उनकी मुलाकात हुई। इस ऐतिहासिक मुलाकात ने आजाद हिंद फौज के विचार को जन्म दिया। 1942 में उनका सपना आकार लेने लगा, जब आजाद हिंद फौज की स्थापना हुई। रास बिहारी ने सुभाष चंद्र बोस की क्षमता को पहचाना और उन्हें नेतृत्व सौंपा, जिससे एक मजबूत सशस्त्र बल का सपना साकार हुआ।
हालांकि इसके पहले ही रास बिहारी बोस वो कार्य कर चुके थे, जिसने भारत की आजादी के संघर्ष में ब्रिटिशों के समक्ष सीधी चुनौती खड़ी कर दी। बंगाल के क्रांतिकारियों की लहर में जब तेजी आई तो रास बिहारी बोस अग्रणी चेहरा बने। उनका नाम पहली बार 1908 के अलीपुर बम केस के दौरान चर्चा में आया।
युवा क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश राज के खिलाफ हथियार उठाए और वायसराय लॉर्ड हार्डिंग की हत्या की योजना बनाई। 23 दिसंबर 1912 को रास बोस ने बसंत कुमार विश्वास के साथ मिलकर वायसराय की सवारी पर बम फेंका। हालांकि, वायसराय बच निकले। इस स्थिति में रास बिहारी को अपना ठिकाना बदलना पड़ा।
20वीं सदी की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक आंदोलनों का दौर चल रहा था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना था। इस आंदोलन को गदर क्रांति नाम दिया गया था। बाद में रास बिहारी इस गदर आंदोलन के प्रमुख चेहरा बन गए। जब ब्रिटिश एजेंसियों को आंदोलन की भनक लगी, तो उन्होंने इसे नष्ट करने के लिए क्रांतिकारियों की जासूसी शुरू की। रास बिहारी गिरफ्तारी से बचते हुए 1915 में भारत छोड़कर जापान चले गए।
रास बिहारी को भारत और जापान के बीच एक सेतु के रूप में देखा जाता है। उनका योगदान केवल स्वतंत्रता आंदोलन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भारत और जापान के बीच स्थायी मित्रता और सहयोग की नींव रखी, जो आज भी मजबूत है। जापान में अपने प्रारंभिक 8 वर्षों में उन्होंने मजबूत संबंध बनाए और बाद में उन्हें जापानी नागरिकता भी मिल गई। 21 जून 1945 को जापान में ही रास बिहारी का निधन हुआ।