क्या मुहर्रम को लेकर संभल में ताजिया की तैयारी अंतिम चरण में है?

सारांश
Key Takeaways
- ताजिया निर्माण में पारंपरिक परंपराओं का पालन किया जाता है।
- प्रशासनिक गाइडलाइन के अनुसार ताजियों की ऊंचाई सीमित की गई है।
- मुहर्रम का आयोजन सामुदायिक सौहार्द का प्रतीक है।
- कारीगरों की मेहनत इस आयोजन को विशेष बनाती है।
- ताजिया का जुलूस धार्मिक आस्था को दर्शाता है।
संभल, 4 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश के संभल में मुहर्रम के अवसर पर ताजिया निर्माण का कार्य अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है। यह परंपरा ईद उल फितर के बाद से शुरू होती है और यह कई पीढ़ियों से चली आ रही है। चमन सराय निवासी आसिफ खान का परिवार पिछले 50 वर्षों से ताजिया निर्माण में लगा हुआ है। 10 से 12 कारीगर एक ताजिया के निर्माण के लिए तीन महीने पहले से कार्यरत होते हैं।
संभल के अलावा, रामपुर, बदायूं, बिजनौर और अमरोहा जैसे क्षेत्रों में भी ताजिया भेजे जाते हैं। इस वर्ष आसिफ खान ने 30 से 35 ताजिए बनाए हैं, जबकि पहले यह संख्या 50 तक होती थी। प्रशासनिक गाइडलाइन के अनुसार अब ताजियों की अधिकतम ऊंचाई 10-12 फुट निर्धारित की गई है, जो पहले 35-40 फुट तक थी। इससे निर्माण लागत और बिक्री दोनों पर असर पड़ा है।
करीब 30 वर्षों से ताजिया निर्माण में लगे कारीगर शाहिद मसूदी ने बताया कि इस बार के सभी ताजिए गाइडलाइन के अनुसार तैयार किए गए हैं। आयोजन को पूरी तरह से शांतिपूर्ण रखने के लिए विशेष सावधानी बरती जा रही है। हमें विश्वास है कि यह वर्ष भी आस्था और भाईचारे का प्रतीक बनेगा।
6 जुलाई को संभल शहर के विभिन्न मोहल्लों से ताजियों का पारंपरिक जुलूस निकाला जाएगा। इसको लेकर लोगों और कारीगरों में विशेष उत्साह देखा जा रहा है।
बिलारी तहसील के गांव मुंडिया राजा निवासी महबूब अली ने बताया कि उन्होंने शासन की गाइडलाइन का पालन करते हुए 10 फीट का ताजिया खरीदा है। उनका कहना है, "जो लोग 20-30 फीट के ताजिए ले रहे थे, वह गलत कर रहे थे। प्रशासन की व्यवस्थाओं के अनुसार चलना ही सही है।"
संभल में मुहर्रम का यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द और सामाजिक सहभागिता का भी उदाहरण है। कारीगरों की मेहनत और श्रद्धालुओं की आस्था इसे विशेष बनाती है।