क्या बर्थडे स्पेशल में हम जान सकते हैं 'काकाबाबू' के जासूसी किरदार और सुनील गंगोपाध्याय के पहले उपन्यास के बारे में?

सारांश
Key Takeaways
- सुनील गंगोपाध्याय ने बंगाली साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- उनका पहला उपन्यास 'आत्मप्रकाश' उन्हें एक प्रभावशाली लेखक के रूप में स्थापित करता है।
- काकाबाबू का किरदार पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय है।
- उन्होंने समाज के परंपरागत विचारों को चुनौती दी।
- उनकी लेखनी ने सैकड़ों पाठकों को प्रेरित किया।
नई दिल्ली, 6 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। बंगाली साहित्य के सबसे प्रतिष्ठित और बहुआयामी लेखकों में से एक, सुनील गंगोपाध्याय ने बंगाली साहित्य की दुनिया में बतौर कवि अपने सफर की शुरुआत की। 1953 में उन्होंने कृत्तिबास नाम की पत्रिका की स्थापना की, जो बाद में युवा कवियों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बन गई। इसके बाद 1965 में उन्होंने अपना पहला उपन्यास 'आत्मप्रकाश' लिखा, लेकिन कवि से उपन्यासकार बनने का यह अनुभव उनके लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था।
इस उपन्यास की लेखन शैली पर उस समय इतनी आलोचना हुई कि सुनील गंगोपाध्याय को कोलकाता (जिसे पहले कलकत्ता कहा जाता था) से कुछ समय के लिए दूर जाना पड़ा।
यह कहानी पूर्वी पाकिस्तान के एक युवक सुनील की है, जो कोलकाता की अंधेरी गलियों में अपनी पहचान की खोज में है। इसमें लेखक ने बचपन, विस्थापन, मानव संबंध, खोई हुई यादें और शहर की अस्थिरताओं को बखूबी दर्शाया है।
बोहेमियन जीवनशैली पर आधारित यह उपन्यास उस समय के अन्य बंगाली उपन्यासों से बिल्कुल अलग था, जो रूढ़िवादी आलोचकों को पसंद नहीं आया। उन्होंने इसे आक्रामक और उत्तेजक शैली का माना। बोहेमियन जीवनशैली पारंपरिक सामाजिक नियमों से मुक्त होती है, जो खोजपूर्ण, कलात्मक और स्वतंत्र होती है।
अपने पहले उपन्यास के लिए सुनील गंगोपाध्याय को कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, जिसके चलते उन्होंने कुछ समय के लिए कलकत्ता छोड़ दिया था।
एक बार फिल्म निर्देशक रितुपर्णो घोष के साथ बातचीत में, सुनील गंगोपाध्याय ने बताया कि शादी से पहले उनके बहनोई ने 'आत्मप्रकाश' पढ़ा था, जिसके बाद उन्होंने सोचा कि सुनील उनकी बहन के लिए परफेक्ट मैच नहीं हैं। हालांकि, बाद में उनका रिश्ता जुड़ गया।
फिर भी, 'आत्मप्रकाश' ने उन्हें बंगाली साहित्य में एक प्रभावशाली उपन्यासकार के रूप में स्थापित किया, और उनकी कहानीकार के रूप में यात्रा शुरू हुई, जिसमें उन्होंने कई बेस्टसेलर उपन्यास लिखे।
सुनील गंगोपाध्याय का जन्म 7 सितंबर 1934 को ब्रिटिश भारत के मदारीपुर, पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में एक बंगाली परिवार में हुआ था। वे बचपन में ही कलकत्ता चले आए।
1954 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बंगाली में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद, सुनील गंगोपाध्याय ने 'आत्मप्रकाश' के बाद एक ऐतिहासिक उपन्यास 'सेई सोमॉय' लिखा। यह वह समय था जब बंगाल में पुनर्जागरण चल रहा था।
'सेई सोमॉय' में 19वीं सदी के बंगाल की झलक दिखाई गई है, जिसके लिए उन्हें 1985 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
1970 में, सत्यजीत रे के निर्देशन में फिल्म 'अरण्येर दिन रात्रि' आई, जो सुनील गंगोपाध्याय के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित थी। यह चार दोस्तों की कहानी है, जो कोलकाता की व्यस्त जिंदगी से ऊबकर बिहार के जंगलों में छुट्टियां मनाने जाते हैं। जैसे-जैसे वे प्रकृति के करीब आते हैं, उनके भीतर छिपे संवेदनात्मक, सामाजिक और नैतिक पहलू बाहर आने लगते हैं।
साहित्यकार सुनील गंगोपाध्याय ने पाठकों के लिए जासूसी किरदार 'काकाबाबू' भी गढ़ा। इस सीरीज पर कई बंगाली फिल्में और टीवी शो बने हैं। काकाबाबू एक अपाहिज इतिहासकार हैं और हर कहानी में कोई रहस्य, ऐतिहासिक खोज या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मिशन होता है।
यह पात्र न केवल बच्चों में बल्कि वयस्कों में भी उतना ही लोकप्रिय है जितना टिनटिन और शेरलॉक होम्स। काकाबाबू का हर मिशन रोमांचक है।
सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बेबाक बोलने के लिए जाने जाने वाले सुनील गंगोपाध्याय ने अपनी लेखनी के माध्यम से परंपरागत सोच का विरोध किया और 200 से अधिक किताबें लिखीं। 23 अक्टूबर 2012 को दक्षिण कोलकाता स्थित अपने आवास पर हृदयाघात से उनका निधन हो गया।
तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा था कि सुनील गंगोपाध्याय अपने समकालीनों में सर्वश्रेष्ठ बुद्धिजीवियों में से एक थे, और उनके निधन से उत्पन्न शून्य को कभी भी भरा नहीं जा सकता।