क्या सुप्रीम कोर्ट 'हाथियों की अवैध कैद' की जांच में कदम उठाएगा?

सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने विशेष जांच टीम का गठन किया है।
- जांच का उद्देश्य वन्यजीव संरक्षण कानून का पालन सुनिश्चित करना है।
- हाथियों की अवैध खरीद-फरोख्त के आरोप गंभीर हैं।
नई दिल्ली, 14 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। गुजरात के जामनगर में स्थित वंतारा वाइल्डलाइफ फैसिलिटी में हाथियों की कथित अवैध खरीद-फरोख्त और अवैध कैद से संबंधित गंभीर आरोपों पर दाखिल जनहित याचिका (पीआईएल) की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट सोमवार को पुनः करेगी।
पहले, 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति प्रसन्न बी वराले की पीठ ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन करने का आदेश दिया था। यह टीम सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर की अध्यक्षता में बनाई गई है।
इस एसआईटी में उत्तराखंड और तेलंगाना उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राघवेंद्र चौहान, पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त हेमंत नागराले और वरिष्ठ आईआरएस अधिकारी अनीश गुप्ता शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, एसआईटी को जिन बिंदुओं की जांच करनी है, उनमें भारत और विदेश से लाए गए जानवरों (विशेषकर हाथियों की खरीद), वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 का पालन, लुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की जिम्मेदारियों का पालन, पशु कल्याण और पशु चिकित्सा देखभाल के मानक, कथित तौर पर निजी शोकेस या शौक के लिए जानवरों का संग्रह, जल एवं कार्बन क्रेडिट के दुरुपयोग के आरोप और वित्तीय अनियमितताओं और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप शामिल हैं।
एसआईटी ने 12 सितंबर को अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को लिफाफे और पेन ड्राइव में सौंपी है, जिसमें मुख्य रिपोर्ट और उसके सभी परिशिष्ट शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लेने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति मित्तल की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि यह जांच केवल तथ्यों की जानकारी के लिए की जा रही है और इससे किसी भी सरकारी संस्था या वंतारा निजी संस्था पर कोई पूर्वाग्रह नहीं माना जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा, "यह आदेश याचिकाओं में लगाए गए आरोपों पर कोई राय नहीं व्यक्त करता है और ना ही इसे किसी प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर संदेह के रूप में देखा जाना चाहिए।"