क्या कंगना रनौत ने कुल्लू की देव परंपरा को याद कर ऋषभ शेट्टी को धन्यवाद कहा?

सारांश
Key Takeaways
- कंगना रनौत ने देव परंपरा को सराहा।
- ऋषभ शेट्टी की फिल्म 'कांतारा चैप्टर 1' का महत्व।
- हिमाचल की देव संस्कृति का विशेष स्थान।
- स्थानीय समुदायों की पहचान।
- देवताओँ की पूजा का सामाजिक महत्व.
नई दिल्ली, 14 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बॉलीवुड की प्रतिभाशाली अभिनेत्री कंगना रनौत राजनीति और फिल्म उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, और दोनों क्षेत्रों में संतुलन बनाने का प्रयास कर रही हैं। कंगना एक ओर जहाँ देश के हित में खादी पहनकर कार्य करती हैं, वहीं दूसरी ओर अपने पेशेवर जीवन को बनाए रखने के लिए रैंप पर वॉक भी करती हैं। हाल ही में, उन्होंने फिल्म 'कांतारा चैप्टर 1' की सराहना की और कुल्लू की देव संस्कृति को एक महत्वपूर्ण योगदान बताया है।
कंगना ने अपने सोशल मीडिया पर एक अद्यतन साझा किया, जिसमें उन्होंने निर्माता-निर्देशक ऋषभ शेट्टी को प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने देव आत्माओं का एक वीडियो साझा करते हुए लिखा, "कांतारा भले ही दक्षिण भारत के देव आत्माओं की कहानी हो, लेकिन यह हिमालय के आदिवासी और छोटे-छोटे गांवों और समुदायों की नींव है। छोटे-छोटे गांवों के अपने देवता, रीति-रिवाज और परंपराएँ होती हैं। ऋषभ शेट्टी, छोटे समुदायों की कहानियों को विश्व के सामने लाने के लिए धन्यवाद, हमारे मंडी में भी देवताओं की पूजा होती है और ये वीडियो उन्हीं के हैं।"
आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश और अन्य कई राज्यों में देवताओं की पूजा की जाती है। ये आमतौर पर ग्राम के या किसी समुदाय के देवता होते हैं। लोगों का मानना है कि देवता उन्हें हर बुरी बला से बचाते हैं और गांव की हर आपदा से रक्षा करते हैं। हर शुभ अवसर पर देवताओं की पूजा की जाती है और उन्हें विशेष स्थान भी मिलता है। हिमाचल में डोम देवता की भी पूजा की जाती है, जिनकी पालकी हर साल निकलती है। एक मोटे लकड़ी के टुकड़े पर कलावा बांधकर, उस पर सोने या चांदी का छत्र रखा जाता है और इसे साल के कपड़े से ढक दिया जाता है।
डोम देवता को नारायण का प्रतीक माना जाता है और लोगों का मानना है कि कई जिलों और गांवों के मसले डोम देवता के माध्यम से ही हल होते हैं।
'कांतारा चैप्टर 1' की कहानी गुलिगा और पंजुरली नामक देवताओं पर आधारित है, जो प्रकृति, आस्था और अध्यात्म को जोड़ते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार वराह देव के पांच पुत्र हुए थे, जिनमें से एक पुत्र खो जाता है। मां पार्वती उसकी देखभाल करती हैं और उसे कैलाश में रखती हैं। जब वराह पुत्र बड़ा होता है, तो वह उत्पात मचाने लगता है। भगवान शिव उसकी हत्या करने का विचार करते हैं लेकिन मां पार्वती उन्हें रोक लेती हैं। इस प्रकार, भगवान शिव वराह पुत्र को वरदान देते हैं कि वह पृथ्वी पर फसलों की रक्षा करेंगे और फसलों के देवता के रूप में पूजे जाएंगे।