क्या दीपावली के बाद डिटॉक्स के लिए आयुर्वेदिक उपाय अपनाने चाहिए?

सारांश
Key Takeaways
- त्योहारों के बाद हल्का आहार लें।
- अभ्यंग से शारीरिक थकान दूर करें।
- प्राणायाम से मानसिक शांति प्राप्त करें।
- त्रिकटु और हिंगवाष्टक का सेवन करें।
- डिटॉक्स के लिए आयुर्वेदिक उपाय अपनाएं।
नई दिल्ली, 19 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। त्योहारों की चमक और मिठाइयों का स्वाद हर किसी को आकर्षित करता है, लेकिन इसके उपरांत हमारा शरीर और मन अक्सर थकान और असंतुलन का अनुभव करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, यह टॉक्सिन्स के निर्माण का परिणाम है जो अग्नि (पाचनशक्ति) के कमज़ोर होने से उत्पन्न होता है। चरक संहिता और अष्टांग हृदयम में इस स्थिति को ध्यान देने योग्य बताया गया है।
सुश्रुत संहिता में 'त्योहार' शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन अतिभोजन, अनियमित दिनचर्या या उल्लास के बाद आहार-संयम की बात की गई है। इसे “अतिसेवनात् उत्पन्न दोष” के रूप में परिभाषित किया गया है – यानी जब व्यक्ति आनंद या उत्सव में स्वाद के पीछे ज़्यादा खा लेता है, तो अग्नि कमज़ोर होती है और आम जमा होता है। ऐसे समय लघु, सुपाच्य आहार लेने की सलाह दी गई है।
ग्रंथों के अनुसार, जब अग्नि कमज़ोर होती है और अत्यधिक भोजन या अनियमित दिनचर्या से दोष उत्पन्न होते हैं, तो हल्का, सुपाच्य आहार लेना सबसे उपयुक्त उपाय है। ग्रंथों में कहा गया है – “मन्देअग्नौ लघुपानभोजनं हितम्” (अध्याय 46, अन्नपान विधि) अर्थात् मंद अग्नि के समय हल्का और सुपाच्य भोजन ही हितकारी है। यही कारण है कि दिवाली के बाद हल्की खिचड़ी, दाल-चावल, या सुपाच्य मांड जैसी चीजें आदर्श मानी जाती हैं।
त्योहारों के दौरान बढ़ा हुआ कफ और वात, पेट फूलना, भारीपन, गैस और फेफड़ों में जमा धुआं जैसी समस्याएँ उत्पन्न करते हैं। आयुर्वेद में इस स्थिति में शोधन और अभ्यंग की सलाह दी गई है। अभ्यंग, यानी तिल या हल्के आयुर्वेदिक तेल से शरीर की मालिश, वात दोष को शांत करती है, रक्त संचार बढ़ाती है और मानसिक थकान को दूर करती है। यह केवल शारीरिक विश्राम ही नहीं देती, बल्कि मन को भी स्थिर करती है।
इसके अलावा, चरक संहिता में उल्लेख किया गया है कि अत्यधिक भोज या उत्सव के बाद त्रिकटु (सौंठ, काली मिर्च और पिप्पली) और हिंगवाष्टक जैसी जड़ी-बूटियों का सेवन पाचन अग्नि को पुनर्जीवित करने में मदद करता है। ये मसाले पेट की अम्लता और गैस को संतुलित करते हैं और पाचन तंत्र को सामान्य स्थिति में लौटाते हैं।
मन की शांति के लिए प्राणायाम और मौन का अभ्यास भी अत्यंत लाभकारी है। आयुर्वेद में कहा गया है कि अत्यधिक शोर, रोशनी और सामाजिक गतिविधियों के कारण मन में चिड़चिड़ापन और बेचैनी पैदा होती है। ऐसे में योग कारगर है। अनुलोम-विलोम, भ्रामरी और पांच मिनट का मौन ध्यान शरीर और मन दोनों के लिए एक प्राकृतिक शुद्धि का काम करता है।