क्या माइक्रोबायोम: आपकी आंत में छिपा 'सेकंड ब्रेन' आपके मूड और इम्यूनिटी को प्रभावित करता है?
सारांश
Key Takeaways
- माइक्रोबायोम का मूड और इम्यूनिटी पर गहरा प्रभाव है।
- असंतुलित माइक्रोबायोम मानसिक समस्याएं पैदा कर सकता है।
- संतुलित आंत के लिए प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स का सेवन करें।
- आंत और मस्तिष्क में दोतरफा संवाद होता है।
- जागरूकता से स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
नई दिल्ली, 6 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। मूड स्विंग को लोग अक्सर मन से जोड़ते हैं। मन, जो दिल और दिमाग का मेल हो सकता है, लेकिन हालिया शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि इसके पीछे हमारे डाइजेस्टिव सिस्टम, यानि पाचन तंत्र का भी हाथ है। जब कभी आप ध्यान दें, तो पाएंगे कि मूड में अचानक बदलाव और तनाव के साथ ही पेट भी अपसेट हो जाता है। यह दर्शाता है कि मूड का संबंध दिमाग से नहीं बल्कि पेट या आंत के अंदर छिपा है।
विज्ञान ने यह रहस्य उजागर किया है कि हमारी आंत केवल भोजन पचाने का केंद्र नहीं, बल्कि एक जटिल और बुद्धिमान नेटवर्क है जिसे वैज्ञानिक सेकंड ब्रेन के नाम से जानते हैं। और इस दूसरे दिमाग का नियंत्रण हमारे माइक्रोबायोम के हाथ में होता है, यानि आंतों में मौजूद लाखों सूक्ष्म जीवाणुओं की वह अदृश्य दुनिया जो हमारे स्वास्थ्य, मूड और इम्यूनिटी को प्रभावित करती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि मानव शरीर में जितनी कोशिकाएं हैं, उससे ज्यादा सूक्ष्म जीव हमारे अंदर निवास करते हैं। इनमें से अधिकांश आंत में होते हैं, जो पाचन, पोषण अवशोषण और रोग प्रतिरोधक क्षमता को नियंत्रित करते हैं। हालिया शोधों ने यह भी दिखाया है कि माइक्रोबायोम मस्तिष्क से लगातार संवाद करता है। इसे कहा जाता है “गट-ब्रेन ऐक्सिस,” यानि आंत और दिमाग के बीच जैविक पुल।
2022 में प्रकाशित नेचर माइक्रोबायोलॉजी के एक अध्ययन में पाया गया कि कुछ विशेष बैक्टीरिया सेरोटोनिन और डोपामिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर के स्तर को प्रभावित करते हैं। ये वही रसायन हैं जो हमारे मूड, नींद और भावनाओं को नियंत्रित करते हैं। इसका मतलब है कि एक असंतुलित माइक्रोबायोम सीधे तौर पर डिप्रेशन, एंग्जायटी और थकान जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है। इसलिए कई मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ अब इसे मूड का गुप्त इंजन कहने लगे हैं।
इम्यून सिस्टम पर इसका प्रभाव और भी गहरा है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, शरीर की लगभग 70 प्रतिशत रोग प्रतिरोधक क्षमता का आधार हमारी आंत में ही होता है। माइक्रोबायोम यह तय करता है कि कौन से तत्व खतरनाक हैं और किनसे रक्षा करनी है। यही वजह है कि जिन लोगों की आंत की सेहत बार-बार एंटीबायोटिक्स लेने, अत्यधिक प्रोसेस्ड फूड खाने या नींद की कमी के कारण खराब होती है, उनमें इन्फेक्शन और सूजन संबंधी समस्याएं ज्यादा पाई जाती हैं।
संतुलित माइक्रोबायोम बनाए रखने के लिए पोषण विज्ञान अब प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स पर जोर दे रहा है। दही, छाछ, फर्मेंटेड फूड, केले, ओट्स और हरी सब्जियां आंत के अच्छे बैक्टीरिया को मजबूत करते हैं, जबकि तनाव, फास्ट फूड और अनियमित दिनचर्या उन्हें कमजोर बना देती है।
आंत का यह सेकंड ब्रेन हमें हर दिन याद दिलाता है कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को अलग नहीं किया जा सकता।
इसलिए अगली बार जब आपका मन अचानक बेचैन हो या शरीर थका हुआ लगे, तो सिर्फ दिमाग को नहीं, पेट को भी सुनिए, क्योंकि कभी-कभी मूड का जवाब मन में नहीं, आंत में छिपा होता है।