क्या 'गतिशील छवि' का अविष्कार फोटोग्राफिक रिवॉल्वर ने किया?
सारांश
Key Takeaways
- विज्ञान और सिनेमा का अद्भुत मेल।
- गतिशील छवि के अविष्कार ने फिल्म उद्योग में क्रांति लाई।
- फोटोग्राफिक रिवॉल्वर का महत्व।
नई दिल्ली, ८ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। विज्ञान और सिनेमा - ये दोनों अलग-अलग संसारों को एक ही धागे में जोड़ने की कहानी ९ दिसंबर १८७४ को लिखी गई। यह एक रोचक किस्सा है। इस दिन दुनिया ने पहली बार “गतिशील छवि” (मूविंग इमेज) जैसी किसी चीज को कैद करने का प्रयास किया, और किसी को भी अंदाजा नहीं था कि यह प्रयास आगे चलकर फिल्मों, कैमरा तकनीक और मनोरंजन की पूरी दुनिया का आधार बन जाएगा।
उस समय फोटोग्राफिक तकनीक बेहद प्रारंभिक अवस्था में थी और किसी शुक्र ग्रह के ट्रांजिट को कैद करना लगभग असंभव माना जाता था, लेकिन वैज्ञानिकों ने फ्रांसीसी खगोलशास्त्री पियरे जानसेन के बनाए “फोटोग्राफिक रिवॉल्वर” का इस्तेमाल कर ऐसा कर दिखाया।
यह रिवॉल्वर देखने में एक हथियार जैसा था, लेकिन इसमें गोलियों के स्थान पर फोटोग्राफिक प्लेटें होती थीं, जिन्हें एक के बाद एक तेजी से एक्सपोज किया जा सकता था। ९ दिसंबर को जैसे ही शुक्र ग्रह सूरज की सतह से गुजरा, इस उपकरण ने लगातार कई फ्रेम कैद किए—जो आज की भाषा में “फ्रेम-बाय-फ्रेम रिकॉर्डिंग” जैसा था। दिलचस्प यह है कि उस समय लोग यह सोच भी नहीं सकते थे कि इन लगातार ली गई छवियों ने अनजाने में “मोशन पिक्चर” की दिशा में पहला क्रांतिकारी कदम रखा है।
आज फिल्म इतिहास के विशेषज्ञ मानते हैं कि यह घटना केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं थी, बल्कि सिनेमा की जड़ें भी यहीं कहीं छिपी थीं। अगर यह रिवॉल्वर कभी न बनाया गया होता, तो शायद आगे चलकर कैमरा की शटर प्रणाली, फ्रेम रेट का विचार और लगातार छवियों की कहानी कहने की तकनीक अलग दिशा में जाती। यह वही प्रारंभिक प्रयोग था जिसने दुनिया को समझाया कि जब कई तस्वीरें तेजी से एक क्रम में ली जाएं, तो वे किसी घटना की गति को सचमुच “जीवित” बना सकती हैं—यही सिनेमा का मूल सिद्धांत है।
इस घटना का रोमांच यह भी है कि किसी वैज्ञानिक मिशन ने अनजाने में मानव इतिहास की सबसे प्रभावशाली कला—फिल्म—का बीज बो दिया। एक ओर वैज्ञानिक यह समझने में लगे थे कि ग्रहों की चाल कितनी सटीक है, और दूसरी ओर इसी रिकॉर्डिंग तकनीक से आने वाले समय में कहानियां, भावनाएं, सपने और कल्पनाएं बड़े पर्दे पर जीवंत होनी थीं।