क्या आप विनायक चतुर्थी पर गणपति के मंत्रों का जाप करेंगे?

सारांश
Key Takeaways
- विनायक चतुर्थी का दिन गणेश जी की पूजा का विशेष अवसर है।
- उपवास रखने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
- अभिवादन में दूर्वा और लड्डू का महत्व है।
- मंत्र जाप से विघ्नहर्ता का आशीर्वाद प्राप्त करें।
- संकटों से मुक्ति के लिए चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करें।
नई दिल्ली, 27 जून (राष्ट्र प्रेस)। हर माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायकी या विनायक चतुर्थी व्रत कहा जाता है। यह विशेष दिन भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा-अराधना करने के साथ व्रत रखना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की विनायक चतुर्थी इस वर्ष 28 जून को पड़ रही है।
दृक पंचांग के अनुसार, विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। भगवान से अपनी किसी भी मनोकामना की पूर्ति के आशीर्वाद को वरद कहते हैं। ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आप इस दिन उपवास कर सकते हैं। यह नैतिक गुण सदियों से मानवता के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं। जिन व्यक्तियों में यह गुण होते हैं, वे जीवन में उल्लेखनीय उन्नति करते हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं। इस दिन गणेश की उपासना से घर में सुख-समृद्धि, धन-दौलत, आर्थिक संपन्नता और ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति होती है।
पुराणों के अनुसार, शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। विनायकी व्रत की शुरुआत करने के लिए जातक को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए, इसके बाद पीले वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को साफ करना चाहिए और गंगाजल छिड़ककर इसे शुद्ध करना चाहिए।
इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष दूर्वा, सिंदूर, और लाल फूल अर्पित करने के बाद उन्हें बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को करें और 5 भगवान के चरणों में रखकर बाकी प्रसाद में वितरित करें।
पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। "ॐ गं गणपतये नमः" मंत्र का 108 बार जाप करें। शाम के समय गाय को हरी दूर्वा या गुड़ खिलाना शुभ माना जाता है।
संकटों से मुक्ति के लिए चतुर्थी की रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए "सिंहिका गर्भसंभूते चन्द्रमांडल सम्भवे। अर्घ्यं गृहाण शंखेन मम दोषं विनाशय॥" मंत्र बोलकर जल अर्पित करें। यदि संभव हो तो चतुर्थी का व्रत रखें, जिससे ग्रहबाधा और ऋण जैसे दोष शांत होते हैं।