क्या विनायक चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं?
सारांश
Key Takeaways
- विनायक चतुर्थी पर पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- इस दिन गणेश जी की विशेष पूजा का महत्व है।
- व्रत करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- भगवान गणेश भक्तों के सभी दुख दूर करते हैं।
- पौराणिक कथाएं इस दिन की पूजा को और भी महत्वपूर्ण बनाती हैं।
नई दिल्ली, २४ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी मनाई जाती है, जो कि इस वर्ष शनिवार को आएगी। इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा का बड़ा महत्व है। पुराणों के अनुसार, इस दिन दो बार पूजा करने की खासियत है, एक बार दोपहर में और दूसरी बार मध्य रात्रि में। कहा जाता है कि विनायक चतुर्थी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी कार्य सफल होते हैं और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन की सभी समस्याएं और दुख समाप्त हो जाते हैं। इस दिन व्रत और पूजा करने से सुख-समृद्धि, आर्थिक विकास, ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है। गणपति बप्पा अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं और उनके मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करते हैं। अगर यह व्रत सही तरीके से किया जाए, तो व्यक्ति की हर इच्छा पूरी हो जाती है।
विनायक चतुर्थी पर एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है, जिसमें बताया गया है कि एक बार माता पार्वती और भगवान शिव मिलकर चौपड़ खेल रहे थे। खेल के दौरान हार-जीत का निर्णय नहीं हो पा रहा था। माता पार्वती ने घास से एक बालक बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा की। खेल में पार्वती जी तीन बार विजेता रहीं, लेकिन बालक ने गलती से भगवान शिव को विजेता घोषित कर दिया। इससे क्रोधित होकर माता पार्वती ने बालक को कीचड़ में रहने का श्राप दे दिया। बालक ने खेद व्यक्त किया, तो माता ने कहा कि एक वर्ष बाद नागकन्याएं आएंगी, जिनसे विनायक चतुर्थी का व्रत करने से कष्ट समाप्त होंगे।
एक वर्ष बाद नागकन्याएं आईं और उन्होंने बालक को श्री गणेश के व्रत की विधि बताई। विधि जानकर बालक ने लगातार २१ दिन तक गणेश की विधि-विधान के साथ पूजा की। उसकी श्रद्धा देखकर गजानन प्रसन्न हुए और बालक को इच्छित फल प्राप्त करने के लिए कहा। बालक ने ठीक होने की इच्छा जताई और कैलाश पर्वत पर पहुंचाने की प्रार्थना की।
बालक को वरदान देकर श्री गणेश अदृश्य हो गए। इसके बाद बालक कैलाश पर्वत पर पहुँच गया और अपनी कहानी भगवान शिव को सुनाई। चौपड़ वाले दिन माता पार्वती भगवान शिव से नाराज थीं, लेकिन अंततः उन्होंने भी बालक के बताए अनुसार २१ दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इस व्रत के फलस्वरूप माता पार्वती की नाराजगी समाप्त हो गई।
भगवान शिव ने माता पार्वती को व्रत विधि बताई। यह सुनकर माता पार्वती में अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। माता पार्वती ने भी २१ दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया और दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन किया। व्रत के २१वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वती से मिल आए।