क्या है भारत की धार्मिक राजधानी, जहां काशी के नाथ देवता 'विश्वनाथ' ब्रह्मांड के शासक के रूप में विराजते हैं?

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क्या है भारत की धार्मिक राजधानी, जहां काशी के नाथ देवता 'विश्वनाथ' ब्रह्मांड के शासक के रूप में विराजते हैं?

सारांश

काशी, जिसे 'भारत की धार्मिक राजधानी' माना जाता है, में विश्वनाथ का मंदिर है। यहां शिव और भैरव का अद्भुत संगम है। इस लेख में काशी की ऐतिहासिकता और धार्मिकता के बारे में जानें।

Key Takeaways

  • काशी को भारत की धार्मिक राजधानी माना जाता है।
  • विश्वनाथ का मंदिर एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
  • यहां की संस्कृति और परंपरा अद्वितीय हैं।
  • मोक्ष की नगरी होने के कारण यहां लोग अंतिम समय बिताने आते हैं।
  • काशी का इतिहास पौराणिक और ऐतिहासिक है।

नई दिल्ली, 12 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित, और बारह ज्योतिर्लिंग में से एक देवों के देव महादेव यहां ज्योति स्वरूप में विराजते हैं। जिनके निवास स्थान को मोक्ष की नगरी कहा जाता है। उस वाराणसी में विश्वनाथ या विश्वेश्वर के रूप में महादेव विराजमान हैं। यह उत्तर प्रदेश की आध्यात्मिक नगरी है, जिसकी हवाओं में शिव के प्राण रस बहते हैं। यह शिव और काल भैरव की अद्भुत नगरी है, जिसे सप्तपुरियों में शामिल किया गया है।

इस नगरी के बारे में कहा जाता है कि यह इस धरती का हिस्सा नहीं है। काशी तो शिव के त्रिशुल पर बसी है। इस मोक्ष की नगरी और पाप नाशिनी भी कहा जाता है। इतिहास में उल्लेख मिलता है कि यह भगवान विष्णु की नगरी थी। यहां श्रीहरि के आनंदाश्रु गिरे थे। जहां भगवान के आनंद के आंसू गिरे थे, वहां एक सरोवर बन गया, जहां प्रभु बिंधुमाधव के रूप में पूजे गए। कहा जाता है कि शिव को यह नगरी इतनी भा गई कि उन्होंने भगवान श्रीहरि से इसे अपने निवास के लिए मांग लिया।

काशी विश्वनाथ के मंदिर को कई बार आक्रांताओं द्वारा क्षति पहुँचाने का प्रयास किया गया, लेकिन हिंदू आस्था हर बार इतनी शक्तिशाली रही कि मंदिर का पुनर्निर्माण भव्य तरीके से किया गया। साथ ही, काशी विश्वनाथ के साथ इस नगरी में शिव के गण और पार्वती के अनुचर भैरव काशी के कोतवाल के रूप में विराजते हैं। ऐसे में काशी विश्वनाथ के दर्शन से पहले भैरव के दर्शन की परंपरा है। इस मंदिरों के शहर की हर गली सनातन की समृद्ध परंपरा की गवाही देती है। यह मोक्ष की नगरी है, जहां लोग अपने जीवन का अंतिम समय बिताने आते हैं।

पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, वाराणसी दुनिया का सबसे प्राचीन शहर है। ऋग्वेद में भी काशी का उल्लेख मिलता है। वहीं महाभारत और उपनिषद में भी इसके बारे में वर्णित है। यहां काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में बाबा का ज्योतिर्लिंग ईशान कोण में स्थित है, जो दिशा शास्त्र और वास्तु के अनुसार विद्या, कला, साधना और ब्रह्मज्ञान का प्रतीक है। ईशान कोण में शिव का वास यह दर्शाता है कि यहां भगवान का नाम केवल शंकर ही नहीं, ईशान के रूप में विद्या और तंत्र का अधिपति स्वरूप भी है।

यहां काशी में बाबा विश्वनाथ और मां भगवती हर पल विराजते हैं। मां भगवती यहां अन्नपूर्णा के रूप में हर जीव का पोषण करती हैं, और बाबा विश्वनाथ मृत्यु के उपरांत आत्मा को तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। यह शिव-शक्ति का दुर्लभ संयोग काशी को दिव्यता, पूर्णता और सनातन ऊर्जा का स्रोत बनाता है।

यहां मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुखी है, और बाबा का मुख उत्तर दिशा की ओर अर्थात अघोर दिशा में स्थित है। जब भक्त मंदिर में प्रवेश करता है, तो सबसे पहले उसे शिव के अघोर रूप के दर्शन होते हैं, जो समस्त पापों, तापों और बंधनों को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं।

महादेव के इस ज्योतिर्लिंग को लेकर द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में लिखा गया है।

सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्। वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥

जो स्वयं आनन्दकन्द हैं और आनंदपूर्वक आनन्दवन (काशीक्षेत्र) में वास करते हैं, जो पाप समूह के नाश करने वाले हैं, उन अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की शरण में मैं जाता हूं।

काशी विश्वनाथ मंदिर के पास, देवी अन्नपूर्णा का महत्वपूर्ण मंदिर है, जिसे “अन्न की देवी” माना जाता है। वहीं सिंधिया घाट के पास, संकट विमुक्ति दायिनी देवी देवी संकटा का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। इसके परिसर में शेर की एक विशाल प्रतिमा है। इसके अलावा यहां 9 ग्रहों के नौ मंदिर हैं।

विशेसरगंज में हेड पोस्ट ऑफिस के पास वाराणसी का महत्वपूर्ण एवं प्राचीन मंदिर है। भगवान काल भैरव जिन्हें 'वाराणसी के कोतवाल' के रूप में माना जाता है, बिना उनकी अनुमति के कोई भी काशी में नहीं रह सकता है। यहीं कालभैरव मंदिर के निकट दारानगर के मार्ग पर भगवान शिव का मृत्युंजय महादेव मन्दिर स्थित है। इस मंदिर का पानी कई भूमिगत धाराओं का मिश्रण है और कई रोगों को नष्ट करने के लिए उत्तम है।

इस शिव की नगरी में तुलसी मानस मन्दिर भी है। यह मंदिर भगवान राम को समर्पित है, यह उस स्थान पर स्थित है जहां रामचरित मानस के रचियेता गोस्वामी तुलसीदास रहते थे, जहां उन्होंने इस ग्रंथ की रचना की थी। पास में दुर्गा मंदिर स्थित है जो शक्ति को समर्पित है। यहां मां दुर्गा कुष्मांडा स्वरूप में विद्यमान हैं। इसके साथ ही यहां भगवान हनुमान का प्रसिद्ध संकटमोचन मन्दिर भी है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित किया गया है।

इसके अलावा काशी की हर गली में मंदिरों की श्रृंखला मौजूद है। इसी कारण काशी को ‘मंदिरों का शहर’, ‘भारत की पवित्र नगरी’, ‘भारत की धार्मिक राजधानी’ आदि नामों से जाना जाता है।

Point of View

मंदिर और आस्था इसे अद्वितीय बनाते हैं। एक राष्ट्रीय संपादक के रूप में, मैं यह कह सकता हूं कि काशी की पहचान को संजोना और उसे बढ़ावा देना हमारी जिम्मेदारी है।
NationPress
05/08/2025

Frequently Asked Questions

काशी विश्वनाथ का मंदिर कब बना था?
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है, और इसे कई बार पुनर्निर्मित किया गया है। इसे पहले 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पुनर्निर्मित कराया था।
काशी क्यों मोक्ष की नगरी कहलाती है?
काशी को मोक्ष की नगरी माना जाता है क्योंकि यहां की मान्यता है कि जो व्यक्ति यहां की धरती पर अंतिम सांस लेता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
काशी में कौन-कौन से मंदिर हैं?
काशी में कई प्रमुख मंदिर हैं, जैसे काशी विश्वनाथ मंदिर, दुर्गा मंदिर, संकटमोचन मंदिर, और तुलसी मानस मंदिर।
काशी में क्या विशेष है?
काशी की विशेषता इसकी धार्मिकता, ऐतिहासिकता और संस्कृति में निहित है। यहां की हर गली में मंदिर और धार्मिक स्थल हैं।
काशी विश्वनाथ की पूजा कैसे की जाती है?
काशी विश्वनाथ की पूजा विशेष रूप से दिन में होती है। भक्त जन यहां आकर जल, फूल और अन्य सामग्री अर्पित करते हैं।