क्या वीर बाल दिवस 'साहिबजादों' की अद्वितीय कुर्बानी का प्रतीक है?

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क्या वीर बाल दिवस 'साहिबजादों' की अद्वितीय कुर्बानी का प्रतीक है?

सारांश

वीर बाल दिवस, साहिबजादों की अद्वितीय कुर्बानी का प्रतीक है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि उम्र कभी भी वीरता में बाधा नहीं बनती। आइए इस दिन को मनाकर हम उन बच्चों की शहादत को याद करें जिन्होंने बलिदान दिया और अपने धर्म की रक्षा की।

Key Takeaways

  • वीरता
  • सत्य और न्याय
  • साहिबजादों की कहानी हमें प्रेरणा देती है।
  • हमेशा धर्म के प्रति अडिग रहना चाहिए।
  • बचपन में भी वीरता का प्रदर्शन संभव है।

नई दिल्ली, २५ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। ‘वीरता उम्र से नहीं, बल्कि आंतरिक शक्ति से आती है।’ २६ दिसंबर का यह ऐतिहासिक दिन इस वाक्य को पूरी तरह से प्रमाणित करता है। सिख धर्म के १०वें गुरु के दो छोटे पुत्रों ने मुगली आक्रांता के सामने ऐसी दृढ़ता दिखाई कि भले ही उन्हें छोटी उम्र में बलिदान देना पड़ा, लेकिन वे भारत के गौरवशाली इतिहास में अमर हो गए।

यह दिन सिख धर्म के दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे पुत्रों, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह, की अद्भुत वीरता, अटूट आस्था और बलिदान की याद में समर्पित है। मात्र ९ और ७ वर्ष की कोमल आयु में इन बालकों ने वह साहस दिखाया जिसके सामने बड़े-बड़े योद्धा भी नतमस्तक हो जाते हैं।

सन् १७०४-१७०५ की सर्दियों में आनंदपुर साहिब पर मुगल सेना और पहाड़ी राजाओं ने घेराबंदी कर दी थी। गुरु गोबिंद सिंह जी को अपने परिवार और सिखों के साथ किले को छोड़ना पड़ा। सरसा नदी पार करते समय युद्ध हुआ। इतने में परिवार बिखर गया। माता गुजरी जी (गुरु जी की मां) अपने दो नाती, जोरावर सिंह (९ वर्ष) और फतेह सिंह (७ वर्ष), के साथ अलग हो गईं।

थकान और भूख से व्याकुल माता-पोते एक पुराने नौकर गंगू के घर पहुंचे। गंगू ने पहले तो शरण दी, किंतु लालच में वह उन्हें नवाब वजीर खां के पास सरहिंद ले गया और सौंप दिया। दोनों छोटे साहिबजादों को ठंडे बुर्ज में कैद कर लिया गया। वहां की कड़कड़ाती ठंड और यातनाओं के बावजूद माता गुजरी जी ने दोनों बच्चों को सिखाया, “बेटा, हमारा धर्म हमें कभी झुकने नहीं देगा। हम सत्य और न्याय के लिए जीते हैं, मरते हैं।”

नवाब वजीर खां ने दोनों बालकों को अपने दरबार में बुलाया। उनसे कहा, “तुम्हारे पिता ने हमसे विद्रोह किया है। यदि तुम इस्लाम कबूल कर लो, तो हम तुम्हें बहुत सारा सोना-चांदी, महल और सुख-सुविधाएं देंगे।” छोटे फतेह सिंह ने निडर होकर जवाब दिया, “हमारा धर्म हमारा सबसे अनमोल रत्न है। हम इसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे।”

जोरावर सिंह ने और भी दृढ़ता से कहा, “हमारे पिता, गुरु गोबिंद सिंह जी, ने हमें सिखाया है कि अन्याय के सामने कभी सिर नहीं झुकाना चाहिए। हम मर सकते हैं, किंतु विश्वासघात नहीं कर सकते।”

नवाब क्रोधित हो गया। उसने सबसे क्रूर सजा सुनाते हुए दोनों निर्दोष बालकों को जिंदा दीवार में चुनवाने का आदेश दिया। २६ दिसंबर, १७०५ को ठंडी सुबह में दोनों साहिबजादों को खड़ा कर दिया गया। ईंट-गारे से धीरे-धीरे दीवार बनने लगी। पहले फतेह सिंह के कंधे तक, फिर गले तक। दोनों बच्चे अडिग खड़े रहे। उनकी आंखों में न कोई आंसू था, न भय। केवल गुरु की याद और सीख धर्म की ज्योति चमक रही थी।

पोते की शहादत पर माता गुजरी जी ने भी सदमे और दुःख से प्राण त्याग दिए।

यह बलिदान केवल दो बच्चों का नहीं था; यह आस्था, साहस और स्वाभिमान की मिसाल था। इन छोटे वीरों की शहादत ने लाखों दिलों में बलिदान की ज्वाला प्रज्वलित की। आज भी स्कूलों, गुरुद्वारों और घरों में उनकी कहानी सुनाई जाती है, ताकि नई पीढ़ी सीखे कि सच्चाई और धर्म के लिए उम्र कोई बाधा नहीं होती।

वीर बाल दिवस हमें याद दिलाता है कि बचपन में भी कोई वीर बन सकता है, यदि उसके मन में सत्य और न्याय का प्रकाश हो। जोरावर सिंह और फतेह सिंह अमर हैं, क्योंकि उन्होंने साबित किया कि वीरता उम्र से नहीं, बल्कि आंतरिक शक्ति से आती है।

इस दिन का भारतीय इतिहास में विशेष स्थान है। साल २०२२ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व पर घोषणा की कि २६ दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाएगा। यह भारत में पहला ऐसा राष्ट्रीय दिवस है, जो बच्चों के बलिदान और वीरता को सम्मानित करता है।

Point of View

NationPress
25/12/2025

Frequently Asked Questions

वीर बाल दिवस कब मनाया जाता है?
वीर बाल दिवस हर साल २६ दिसंबर को मनाया जाता है।
यह दिन किसकी शहादत को समर्पित है?
यह दिन गुरु गोबिंद सिंह जी के पुत्रों, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह की शहादत को समर्पित है।
साहिबजादों ने किस प्रकार का बलिदान दिया?
साहिबजादों ने अपने धर्म की रक्षा के लिए मुगली आक्रांता के सामने अपनी जान दे दी।
वीर बाल दिवस का महत्व क्या है?
यह दिन हमें प्रेरित करता है कि वीरता और बलिदान की भावना उम्र की मोहताज नहीं होती।
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