क्या अमेरिका के तीन वैज्ञानिकों ने फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार जीता?

सारांश
Key Takeaways
- जॉन क्लार्क, माइकल डेवोरेट, और जॉन मार्टिनिस ने फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार जीता।
- इनकी खोज क्वांटम मैकेनिज्म पर आधारित है।
- यह खोज क्वांटम क्रिप्टोग्राफी और क्वांटम कंप्यूटर के विकास में सहायक होगी।
- पहला भारतीय नोबेल विजेता सर सीवी रमन थे।
- नोबेल पुरस्कार समारोह हर साल 10 दिसंबर को आयोजित होता है।
नई दिल्ली, 7 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। स्वीडन में आज फिजिक्स के नोबेल पुरस्कार की घोषणा की गई। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने दोपहर 3:15 बजे विजेताओं के नाम का ऐलान किया। इस वर्ष फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार अमेरिका के जॉन क्लार्क, माइकल डेवोरेट, और जॉन मार्टिनिस को प्रदान किया गया।
पुरस्कार की घोषणा करते समय क्वांटम मैकेनिज्म के प्रभावों को समझाया गया। इस वर्ष के नोबेल विजेताओं ने एक इलेक्ट्रिकल सर्किट पर प्रयोग किए, जिसमें उन्होंने एक ऐसी प्रणाली में क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और क्वांटाइज्ड एनर्जी लेवल, दोनों का प्रदर्शन किया जो हाथ में पकड़ने लायक थी।
ये खोज क्वांटम क्रिप्टोग्राफी, क्वांटम कंप्यूटर, और क्वांटम सेंसर जैसी क्वांटम तकनीक को अधिक समझने में मदद करेगी।
आमतौर पर क्वांटम मैकेनिक्स के नियम बहुत छोटे कणों (जैसे इलेक्ट्रॉन) पर लागू होते हैं। इनका व्यवहार माइक्रोस्कोपिक कहलाता है, क्योंकि ये इतने छोटे होते हैं कि सामान्य माइक्रोस्कोप से भी दिखाई नहीं देते। लेकिन अब इन वैज्ञानिकों ने पहली बार बिजली के सर्किट में बड़े पैमाने (मैक्रोस्कोपिक) पर क्वांटम टनलिंग और ऊर्जा के स्तरों की खोज की है।
जानकारी के अनुसार, (नोबेलप्राइज डॉट ओआरजी के अनुसार) 1901 से अब तक 118 वैज्ञानिकों को भौतिकी पुरस्कार प्रदान किए जा चुके हैं। इनमें सबसे कम उम्र के विजेता 25 साल के लॉरेंस ब्रैग (1915) थे जबकि 96 साल के आर्थर अश्किन (2018) सबसे उम्रदराज वैज्ञानिक थे।
पहले भारतीय जिन्हें इस श्रेणी में पुरस्कृत किया गया, वे सर सीवी रमन थे। उन्हें यह सम्मान 1930 में दिया गया। उनकी खोज ने बताया कि जब प्रकाश किसी पदार्थ से टकराता है, तो उसका रंग बदल सकता है। इसे रमन इफेक्ट कहते हैं। यह खोज आज लेजर और मेडिकल तकनीकों में इस्तेमाल होती है। वहीं दूसरे भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर थे। इन्हें 1983 में तारों (स्टार्स) के जीवन और मृत्यु की खोज के लिए सम्मानित किया गया। उन्होंने बताया कि बड़े तारे अंत में ब्लैक होल बन सकते हैं।
6 से 13 अक्टूबर के बीच विभिन्न श्रेणियों में नोबेल प्राइज दिए जाते हैं। 6 अक्टूबर 2025 को मेडिसिन के लिए मैरी ई. ब्रंकॉ, फ्रेड राम्सडेल और शिमोन साकागुची को यह पुरस्कार दिया गया है। इन्हें यह प्राइज पेरीफेरल इम्यून टॉलरेंस के क्षेत्र में किए गए रिसर्च के लिए प्रदान किया गया है।
विजेता को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (10.3 करोड़ रुपए), सोने का मेडल और सर्टिफिकेट मिलेंगे। यदि एक से अधिक वैज्ञानिक जीतते हैं, तो यह प्राइज मनी उनके बीच बाँट दी जाती है। पुरस्कार 10 दिसंबर को स्टॉकहोम में प्रदान किए जाएंगे।