क्या हैं डॉ. ब्रह्म प्रकाश के योगदान, जिन्होंने धातु विज्ञान में विश्वस्तरीय पहचान बनाई और वीएसएससी के पहले निदेशक बने?

सारांश
Key Takeaways
- डॉ. ब्रह्म प्रकाश का जन्म 21 अगस्त 1912 को हुआ।
- उन्होंने M.I.T. से पीएचडी की।
- वे वीएसएससी के पहले निदेशक बने।
- उन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
- उनकी उपलब्धियां भारतीय विज्ञान को नई पहचान दिलाती हैं।
नई दिल्ली, 20 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। कल्पना कीजिए एक ऐसा समय, जब भारत विज्ञान की नई किरण बन रहा था, तब वहां एक महान आत्मा थी, जिसने विज्ञान और देशभक्ति की ज्वाला को अपने भीतर जीवित रखा। आज, यदि भारत चांद पर ध्वज फहराता है और मंगल तक पहुँचता है, तो उसके पीछे डॉ. ब्रह्म प्रकाश जैसे महान व्यक्तित्व की कथाएं हैं। इस जन्म जयंती विशेष में हम जानते हैं डॉ. ब्रह्म प्रकाश की प्रेरणादायक कहानी।
21 अगस्त 1912 को लाहौर में एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसके सपने आसमान को छूने की ऊँचाई तक पहुँच रहे थे। बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल, ब्रह्म प्रकाश ने रसायन विज्ञान में गहरी रुचि दिखाई, लेकिन उनकी असली यात्रा धातु विज्ञान की ओर थी।
क्या आपने कभी सोचा है कि उस समय इंग्लैंड या अमेरिका की भूमि पर पहुँचने का सपना कौन देख सकता था? ब्रह्म प्रकाश ने यूएसए के प्रतिष्ठित M.I.T. में प्रवेश पाया और वहां मेटलर्जिकल थर्मोडायनामिक्स में दूसरी बार पीएचडी की। विदेश में डिग्री प्राप्त करने के बाद, कई वैज्ञानिक वहीं बसने का निर्णय लेते, लेकिन ब्रह्म प्रकाश ने अपने देश की ओर रुख किया।
डॉ. होमी भाभा जैसे महान वैज्ञानिक ने उन्हें परमाणु ऊर्जा संगठन के लिए चुना। यहीं से उनकी 'मिशन इंडिया' की यात्रा प्रारंभ हुई। इसके बाद बंगलोर के IISc में पहुंचे, जहां उन्होंने मेटलर्जिकल विभाग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और सैकड़ों वैज्ञानिकों को प्रशिक्षित किया।
हर महान व्यक्तित्व की असली पहचान तब होती है, जब उसे अपने देश और कौशल को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करने का अवसर मिलता है। ब्रह्म प्रकाश संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भारत के वैज्ञानिक सचिव बने और पूरी दुनिया ने जाना कि यह भारतीय वैज्ञानिक कितनी ऊँचाई की सोच रखते हैं।
उनकी उपलब्धियां केवल धातु विज्ञान तक सीमित नहीं रहीं। वे NFC, हैदराबाद के निर्माण निदेशक बने, यूरेनियम कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष रहे और 'साइरस' रिएक्टर के लिए भारतीय ईंधन निर्माण की नींव रखी। जिस मिश्रधातु निगम (मिधानी) का नाम आज भारतीय रक्षा उत्पादन में गर्व से लिया जाता है, वहां भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अब बात करते हैं उनकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका की। विक्रम साराभाई के असमय निधन के बाद, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम संकट में था। ऐसे समय में प्रो. सतीश धवन ने ब्रह्म प्रकाश पर विश्वास किया। 1972 में जब उन्होंने वीएसएससी के निदेशक का कार्यभार संभाला, तब उन्होंने बिखरी हुई छोटी इकाइयों को एकजुट किया और इसरो को नया आत्मविश्वास दिया। उनकी नेतृत्व क्षमता में वीएसएससी ने नई ऊंचाइयों को छुआ।
यह गौरव की बात है कि ब्रह्म प्रकाश को भारत ने 1961 में 'पद्म श्री' और 1968 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया। वे अपने जीवन के अंतिम समय तक स्पेस कमीशन के सदस्य बने रहे।
3 जनवरी 1984 को उनका निधन उन सभी वैज्ञानिकों के लिए एक व्यक्तिगत क्षति थी, जिनकी दुनिया वही थी।