क्या बच्चों में अस्थमा के इलाज में नई उम्मीद मिली है?

सारांश
Key Takeaways
- बच्चों में अस्थमा
- अस्थमा फ्लेयर-अप का अनुभव होने पर तुरंत चिकित्सा सहायता लें।
- टाइप 2 सूजन कई बच्चों में अस्थमा लक्षणों को बढ़ा सकती है।
- सामाजिक रूप से, बच्चों की स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान देना आवश्यक है।
- नवीनतम अध्ययन ने अस्थमा के इलाज की नई संभावनाएं खोली हैं।
नई दिल्ली, 2 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। वर्तमान समय में बच्चों में अस्थमा एक गंभीर चुनौती बन चुका है, जो उनकी सांस लेने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। इनहेलर या अन्य दवाइयों का उपयोग करने के बावजूद, अक्सर बच्चों की तबीयत अचानक बिगड़ जाती है, जिसे 'अस्थमा फ्लेयर-अप' कहा जाता है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया है, जिसमें पता चला है कि कुछ विशेष जैविक प्रक्रियाएं शरीर में ऐसी सूजन को बढ़ा देती हैं, जो सामान्य इलाज से ठीक नहीं होती।
अमेरिका के शिकागो में स्थित एन एंड रॉबर्ट एच. लूरी चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन में अस्थमा की जटिलताओं को समझने में मदद की है, जिससे बेहतर इलाज की दिशा में नई संभावनाएं खुली हैं।
अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जिसमें फेफड़ों और सांस की नली में सूजन हो जाती है, जिससे सांस लेना कठिन हो जाता है। वैज्ञानिकों ने यह भी पाया है कि बच्चों में अस्थमा के विभिन्न कारण होते हैं, जिनमें सूजन के कई रास्ते सक्रिय रहते हैं। इनमें से एक प्रमुख तरीका है टाइप 2 इन्फ्लेमेशन, जो इयोसिनोफिल्स नामक सफेद रक्त कणों को बढ़ा देता है, जिससे फेफड़ों में सूजन बढ़ती है और अस्थमा के लक्षण गंभीर हो जाते हैं।
शोध में यह भी पाया गया कि दवाइयां जो विशेष रूप से टाइप 2 सूजन को कम करने के लिए होती हैं, फिर भी कुछ बच्चों को अस्थमा के दौरे पड़ते हैं। अध्ययन के प्रमुख डॉक्टर राजेश कुमार का कहना है, "ऐसी दवाइयां जो खास तौर पर टाइप 2 सूजन को कम करती हैं, उनका उपयोग करने के बावजूद कुछ बच्चों को अस्थमा के दौरे जारी रहते हैं। इससे यह साफ होता है कि टी2 सूजन के अतिरिक्त भी और कारण हैं जो अस्थमा को बढ़ाते हैं।"
इस अध्ययन को जेएएमए पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित किया गया है, जिसमें वैज्ञानिकों ने 176 बार उन बच्चों के नाक से नमूने लिए, जब वे अचानक सांस की बीमारी से पीड़ित थे। इन नमूनों की विस्तृत जांच की गई, जिससे यह पता चला कि उनके शरीर में क्या बदलाव हो रहे हैं। इस दौरान वैज्ञानिकों ने तीन मुख्य सूजन के कारणों की पहचान की।
पहला कारण एपिथेलियम इन्फ्लेमेशन पाथवे है, जो उन बच्चों में ज्यादा पाया गया जो मेपोलिजुमैब दवा ले रहे थे। दूसरा मैक्रोफेज-ड्राइवेन इन्फ्लेमेशन है, जो खासकर वायरल सांस की बीमारियों से संबंधित है, जहां शरीर के सफेद रक्त कण अधिक सक्रिय हो जाते हैं। तीसरा कारण है म्यूकस हाइपरसेक्रेशन और सेलुलर स्ट्रेस रिस्पॉन्स, जिसमें फेफड़ों में अधिक बलगम बनता है और कोशिकाओं का तनाव बढ़ता है, जो दोनों तरह के बच्चों में अस्थमा के दौरे के दौरान बढ़ जाता है।
डॉक्टर राजेश कुमार ने कहा, "हमने पाया कि जिन बच्चों को दवा लेने के बाद भी अस्थमा का अटैक आता है, उनमें एलर्जी से जुड़ी सूजन कम होती है, लेकिन फेफड़ों की सतह पर अन्य सूजन के रास्ते सक्रिय होते हैं। इसका मतलब है कि अस्थमा बहुत जटिल है और हर बच्चे में अलग-अलग वजहें होती हैं।"
शहरों में रहने वाले बच्चों में अस्थमा की समस्या अधिक पाई जाती है। इस शोध से मिली जानकारियां खासकर उनके लिए आशा की नई किरण हैं। इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि किस बच्चे को किस प्रकार की सूजन ज्यादा है, और उसके अनुसार सही इलाज किया जा सकेगा।