क्या आर्चरी प्रीमियर लीग भारतीय तीरंदाजी में एक नया अध्याय है?

सारांश
Key Takeaways
- आर्चरी प्रीमियर लीग ने भारतीय तीरंदाजी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।
- इसमें 36 भारतीय और 12 विदेशी तीरंदाजों ने भाग लिया।
- लीग ने खिलाड़ियों को आर्थिक मदद प्रदान की है।
- उच्च दबाव वाले मुकाबलों का अनुभव खिलाड़ियों को ओलंपिक के लिए तैयार करेगा।
- लीग की मदद से तीरंदाजी को जनता के बीच लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
नई दिल्ली, 15 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। आर्चरी प्रीमियर लीग 2025 का सफल आयोजन भारतीय तीरंदाजी संघ द्वारा किया गया, जिसमें विश्वभर के कई शीर्ष तीरंदाजों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। इस प्रतियोगिता में कुल छह टीमों ने भाग लिया, जिसमें 48 तीरंदाज शामिल थे, जिनमें 36 भारतीय और 12 विदेशी थे।
आर्चरी प्रीमियर लीग (एपीएल) में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी एक साथ खेलते हैं, जिससे युवा तीरंदाजों को अपनी क्षमताओं को दिखाने का एक सुनहरा मौका मिला। इसमें विदेशी दिग्गज भी शामिल थे, जो भारतीय खिलाड़ियों के लिए उच्च स्तरीय मुकाबले का अनुभव लाए। इससे निश्चित रूप से उनके प्रदर्शन और मानसिक मजबूती में सुधार हुआ है।
आर्चरी प्रीमियर लीग 2025 का पहला राउंड-रॉबिन चरण 2-6 अक्टूबर और दूसरा 7-11 अक्टूबर के बीच आयोजित किया गया। इस दौरान प्रत्येक टीम में कम से कम एक विदेशी तीरंदाज शामिल था, जिन्होंने मिश्रित रिकर्व और कंपाउंड तीरंदाजी स्पर्धाओं में भाग लिया।
आर्चरी प्रीमियर लीग 2025 में दो राउंड-रॉबिन चरण हुए, जिसके बाद नॉकआउट मुकाबले हुए, जिनमें सेमीफाइनल और फाइनल शामिल थे।
राउंड-रॉबिन चरण में रोजाना तीन मुकाबले हुए। फ्लडलाइट में खेले गए प्रत्येक मैच की अवधि 20 मिनट थी। हर तीरंदाज को 15 सेकंड का समय दिया गया, जबकि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में यह समय 20 सेकंड होता है।
इस लीग में एरो शूटिंग की दूरी ओलंपिक मानक के अनुसार थी। रिकर्व के लिए 70 मीटर, जबकि कंपाउंड के लिए 50 मीटर की दूरी निर्धारित की गई।
आर्चरी प्रीमियर लीग (एपीएल) में इन छह टीमों ने राउंड-रॉबिन चरण में एक-दूसरे का सामना किया। दोनों राउंड-रॉबिन चरणों के बाद, शीर्ष चार टीमें नॉकआउट चरण में पहुंची, जिसके बाद सेमीफाइनल और फाइनल खेले गए। राजस्थान की टीम राजपूताना रॉयल्स ने दिल्ली की पृथ्वीराज योद्धा को हराकर गोल्डन ट्रॉफी अपने नाम की।
तीरंदाजी की जड़ें बहुत पुरानी हैं। मध्य पाषाण युग के उत्तरार्ध से धनुष-बाण का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन ओलंपिक ने इसे आधुनिक खेल के रूप में लोकप्रिय बनाया। 1900, 1904, 1908 और 1920 के ओलंपिक में तीरंदाजी शामिल की गई थी। ओलंपिक 1904 में यह महिलाओं की स्पर्धा को शामिल करने वाले पहले खेलों में से एक था। लेकिन तीरंदाजी के प्रारूप असंगत थे। यह अक्सर स्थानीय नियमों पर आधारित होते थे। ऐसे में तीरंदाजी को ओलंपिक से हटा दिया गया।
इसके बाद, 1931 में विश्व तीरंदाजी की स्थापना की गई, ताकि इस खेल को फिर से ओलंपिक में लाया जा सके। 52 साल के इंतजार के बाद, 1972 में म्यूनिख ओलंपिक खेलों में तीरंदाजी एक बार फिर लौटी। अगले ही साल, 1973 में भारतीय तीरंदाजी संघ (एएआई) की स्थापना हुई।
ओलंपिक खेलों में तीरंदाजी इवेंट में 1972 से 1984 तक व्यक्तिगत स्पर्धाएं थीं। इसके बाद, 1988 में टीम स्पर्धाएं जोड़ी गईं। 2020 में मिश्रित टीम स्पर्धा को भी शामिल किया गया। भारत ने ओलंपिक में अब तक तीरंदाजी के खेल में एक भी मेडल नहीं जीता है। उम्मीद की जा रही है कि आर्चरी प्रीमियर लीग के जरिए भारतीय तीरंदाजों को वैश्विक मंच पर बेहतर प्रदर्शन करने के लिए एक अच्छा बूस्ट मिला है।
एपीएल को न सिर्फ सोशल मीडिया, बल्कि टीवी कवरेज और स्पॉन्सरशिप भी मिली है। उम्मीद की जा रही है कि क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल और कबड्डी की तरह इस तीरंदाजी के खेल को भी आम जनता के बीच अधिक लोकप्रिय बनाया जा सकेगा।
इस लीग ने खिलाड़ियों को आर्थिक रूप से भी मदद की है। उन्हें कॉन्ट्रैक्ट के साथ प्राइज मनी भी मिली है। यह मदद उन्हें पेशेवर तरीके से तीरंदाजी को अपनाने का अवसर देगी।
इस लीग के दौरान खिलाड़ियों ने उच्च दबाव वाले मुकाबलों का अनुभव किया, जो उन्हें ओलंपिक, एशियन गेम्स और विश्व चैंपियनशिप के लिए तैयार करेगा। इस लीग की वजह से ट्रेनिंग सेंटर, कोचिंग सुविधाएं और आधुनिक तकनीक में निवेश बढ़ने की उम्मीद है, जिससे भारत में तीरंदाजी का विकास होगा।